मार्गदर्शक चिंतन-
नीति
शास्त्र कहते हैं कि नीच और
अधम श्रेणी के मनुष्य-
कठिनाईयो
के भय से किसी उत्तम कार्य को
प्रारंभ ही नहीं करते। मध्यम
श्रेणी के मनुष्य -
कार्य
को तो प्रारंभ करते हैं मगर
विघ्नों को आते देख घबराकर
बीच में ही छोड़ देते हैं। ये
विघ्नों से लड़ने की सामर्थ्य
नहीं रख पाते।
उत्तम श्रेणी के मनुष्य- विघ्न बाधाओं से बार- बार प्रताड़ित होने पर भी प्रारंभ किये हुए उत्तम कार्य को तब तक नहीं छोड़ते, जब तक कि वह पूर्ण न हो जाए। कार्य जितना श्रेष्ठ होगा बाधाएं भी उतनी ही बड़ी होंगी। आत्मबल जितना ऊँचा होगा तो फिर सारी समस्याए स्वतः उतनी ही नीची नज़र आने लगेंगी।
ध्यान रहे इस श्रृष्टि में श्रेष्ठ की प्राप्ति उसी को होगी जिसने सामना करना स्वीकार किया, मुकरना नहीं। अतः जीवन में उत्कर्ष के लिए संघर्ष जरुरी है।
उत्तम श्रेणी के मनुष्य- विघ्न बाधाओं से बार- बार प्रताड़ित होने पर भी प्रारंभ किये हुए उत्तम कार्य को तब तक नहीं छोड़ते, जब तक कि वह पूर्ण न हो जाए। कार्य जितना श्रेष्ठ होगा बाधाएं भी उतनी ही बड़ी होंगी। आत्मबल जितना ऊँचा होगा तो फिर सारी समस्याए स्वतः उतनी ही नीची नज़र आने लगेंगी।
ध्यान रहे इस श्रृष्टि में श्रेष्ठ की प्राप्ति उसी को होगी जिसने सामना करना स्वीकार किया, मुकरना नहीं। अतः जीवन में उत्कर्ष के लिए संघर्ष जरुरी है।
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