Wednesday 23 November 2016

---भक्ति
में त्याग और प्रेमकी आबश्यकता ----
एक दिन नारद जी भगवान के लोक को जा रहे थे। रास्ते में एक संतानहीन दु:खी मनुष्य मिला। 
उसने कहा- 'नारद जी मुझे आशीर्वाद दे दो तो मेरे सन्तान हो जाय।नारद जी ने कहा- 'भगवान के पास जा रहा हूँ। उनकी जैसी इच्छा होगी लौटते हुए बताऊँगा।'नारद ने भगवान से उस संतानहीन व्यक्ति की बात पूछी तो उनहोंने उत्तर दिया कि उसके पूर्व कर्म ऐसे हैं कि अभी सात जन्म उसके सन्तान और भी नहीं होगी। नारद जी चुप हो गये।

इतने में एक दूसरे महात्मा उधर से निकले, उस व्यक्ति ने उनसे भी प्रार्थना की। महात्मा जल्दीमे थे तो कहदिया " पुत्रवान भव: " और दसवें महीने उसके पुत्र उत्पन्न हो गया। एक दो साल बाद जब नारद जी उधर से लौटे तो उनने कहा- 'भगवान ने कहा है- तुम्हारे अभी सात जन्म संतान होने का योग नहीं है।' इस पर वह व्यक्ति हँस पड़ा। उसने अपने पुत्र को बुलाकर नारद जी के चरणों में डाला और कहा- 'एक महात्मा के आशीर्वाद से यह पुत्र उत्पन्न हुआ है।'नारद को भगवान पर बड़ा क्रोध आया कि व्यर्थ ही वे झूठ बोले। मुझे आशीर्वाद देने की आज्ञा कर देते तो मेरी प्रशंसा हो जाती सो तो किया नहीं, उलटे मुझे झूठा और उस दूसरे महात्मा से भी तुच्छ सिद्ध कराया। नारद कुपित होते हुए भगवान के लोक में पहुँचे और कटु शब्दों में भगवान की भर्त्सना की। भगवान ने नारद को सान्त्वना दी और इसका उत्तर कुछ दिन में देने का वादा किया।
एक दिन भगवान ने कहा- 'नारद माता लक्ष्मी बीमार हैं, उसकी दवा के लिए किसी भक्त का कलेजा चाहिए। तुम जाकर माँग लाओ। नारद कटोरा लिये जगह-जगह घूमते फिरे पर किसी ने नहीदिया दिया। अन्त में उस महात्मा के पास पहुँचे जिसके आशीर्वाद से पुत्र उत्पन्न हुआ था। उसने भगवान की आवश्यकता सुनते ही तुरन्त अपना कलेजा निकालकर दे किया। नारद ने उसे ले जाकर भगवान के सामने रख दिया। 
भगवान ने उत्तर दिया- 'नारद ! यही तुम्हारे प्रश्न का उत्तर है। जो भक्त मेरे लिए कलेजा दे सकता है उसके लिए मैं भी अपना विधान बदल सकता हूँ। तुम्हारी अपेक्षा उसे श्रेय देने का भी क्या कारण है सो तुम समझो। जब कलेजे की जरूरत पड़ी तब तुमसे यह न बन पड़ा कि अपना ही कलेजा निकाल कर दे देते। तुम भी तो भक्त थे। तुम दूसरों से माँगते फिरे और उसने बिना कुछ सोचे तुरन्त अपना कलेजा दे दिया। त्याग और प्रेम के आधार पर ही मैं अपने भक्तों पर कृपा करता हूँ और उसी अनुपात से उन्हें श्रेय देता हूँ।' नारद चुपचाप सुनते रहे। उनका क्रोध शान्त हो गया और लज्जा से सिर झुका लिया।


यहाँ कलेजा का मतलब मन है, नारद पुराणमें स्वयं भगवान ने कहा है,' मन एवं मनुष्याणां कारणं बंद मोक्ष्ययो 'अर्थात: मन ही मनुष्य की बंदन और मोक्ष्यका कारण है... 

No comments:

Post a Comment