Monday 14 November 2016

भगवान भक्त के लिए बने नाई...

( भक्तमाल चरित्र--श्रीसेनजी)
भगवान ने गीता मे जो कुछ कहा उसे भगवान ने स्वयं करके दिखाया है -गीता मे भगवान ने बहुत सुंदर बात कही है की--- अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते --
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्"-- अर्थात् भगवान कहते है की जो अनन्यभाव से मेरा चिन्तन करता है,जो अनन्यभाव से मन मुझमे लगाकर रखता है उस अनन्यभक्त का मै योगक्षेम वहन करता हूं;---यानि भगवान हमेशा उस भक्त का कल्याण करने के लिए लगे रहते है--मनुष्य को केवल अनन्यभाव से भजन करना है--मन केवल भगवान मे रहे --तो उस निष्काम अनन्यभक्त का भगवान हमेशा हर परिस्थिति मे कल्याण करते है --भक्तमाल मे भी श्रीसेनजी महाराज का चरित्र देखने को मिलता है जिसमे भगवान ने सेनजी का काम करने के लिए स्वयं नाई का रुप बनाया ओर राजा को जाकर तेल लगाया--
भक्तमाल मे श्री नाभा जी महाराज ,श्रीसेनजी के विषय मे लिखते हुए कहते है की--
" प्रभु दास के काज रुप नापित को कीनौ--
छिप्र छुडहरी गही पानि दर्पन तंह लीनौ--
तादृश हवै तिहिं काल भूप के तेल लगायौ--
उलटि राव भयो शिष्य प्रगट परचौ जब पायौ--
स्याम रहत सनमुख सदा ज्यौं बच्छा हित धेन के--
विदित बात जग जानियै हरि भये सहायक सेन के--"
सेन जी भगवान के अनन्य निष्काम भक्त थे --एक बार सेन जी ,राजा वीरसिंह को तेल लगाने के लिए राजा के पास जा रहे थे तो रास्ते मे सेनजी को बहुत सारे संतो का दर्शन हुआ-- संतो का संग पाकर सेनजी बहुत आनंदित हूए ओर उन संतो के साथ हरि चर्चा करते करते वापिस आने लगे-- सेनजी के मन से राजा को तेल लगाने की बात निकल गयी --ओर सेनजी हरि चर्चा मे मग्न होकर संतो के साथ शामिल हो गये--भगवान ने सोचा की अगर सेनजी राजा वीरसिंह को तेल लगाकर नही आया तो राजा बहुत क्रोधित होगा ईसलिए अपने भक्त के कल्याण के लिए भगवान ने स्वयं सेनजी का रुप बनाया यानि भगवान ने स्वयं नाई का रुप बनाया( प्रभु दास के काज रुप नापित कौ कीनौ)--
भगवान ने पेटी को कंधे पर लटकाया ओर हाथ मे दर्पण लेकर राजा को तेल लगाने चल दिये--(छिप्र छुडहरी गही पानि दर्पन तंह लीनौ)-
भगवान ने सेनजी का रुप बनाकर राजा को तेल लगाया -(तादृश हवै तिहिं काल भूप के तेल लगायौ)--
ओर ईधर जब भक्त सेन को याद आया की राजा को तेल लगाने जाना था-- तो सेनजी महाराज घबराते हुए जल्दी जल्दी राजा के पास पहूंचे--
राजा ने सेनजी से पूछा की --सेनजी क्या हूआ??ईतने घबराए हूए क्यो हो??
भक्त सेन ने कहा की-- मुझे क्षमा कर दीजिये --मुझे आने मे देरी हो गयी ओर मै आपको तेल नही लगा पाया--
राजा तुरंत खडे हुए ओर सेनजी के चरणो मे गिर गये--
सेनजी ने कहा की आप मेरे चरणो मे क्यो गिर रहे है??
राजा ने कहा की -मुझे अब पता चल गया है की जो मुझे तेल लगाकर गया था वो भगवान ही थे जो स्वयं आपका रुप बनाकर मुझे तेल लगाने आये थे--राजा की बात सुनकर भक्त सेन की आंखो मे आंसु आ गये -- ओर फिर राजा भी भक्त सेन के शिष्य हो गये थे-- जिस तरह गाय अपने बछडे के हित के लिए लगी रहती है उसी प्रकार भगवान भी भक्त के कल्याण के लिए लगे रहते है-(स्याम रहत सनमुख सदा ज्यौं बच्छा हित धेन के)--
सेनजी महाराज के ईस प्रसंग से विशेष बात सीखने को मिलती है--
भगवान योगक्षेम तब वहन करते है जब मनुष्य अनन्यभाव से भजन करता है-- अनन्यभाव यानि केवल भगवान मे निष्काम भाव से मन लगाकर रखना है-- भगवान आनंदस्वरुप है ईसलिए मन अगर आनंदस्वरुप भगवान मे रहेगा तो आनंद प्राप्ति होगी ओर अगर मन संसारिक विषयो मे आसक्त रहेगा तो अशांति प्राप्त होगी (नर तन पाई विषय मन देहिं, पलटि सुधा ते सठ विष लेहिं)--
तो कहने का अभिप्राय: की मन की आसक्ति केवल भगवान के नाम ,रुप,गुण,लीला-कथा ओर साधु संग मे होनी चाहिये-- भक्त सेनजी अनन्यभाव से भजन करते थे ईसलिए भगवान ने सेनजी का काम करने के लिए नाई का रुप बनाकर राजा को तेल लगाया --
ओर दूसरी बात ये सीखने को मिलती है की जिस तरह संतो का संग पाकर भक्त सेन तेल लगाने का काम भुल गये थे उसी प्रकार संतो के चरणो मे जाकर भी संसारिक जिज्ञासाएं नही करनी चाहिये--संतो के चरणो मे जाकर केवल हरि चर्चा ही करनी चाहिये--संतो को हरि चर्चा से प्रसन्नता होती है--
बोलिए भक्तवत्सल भगवान की जय-- श्रीमद्भागवत महापुराण की जय-- भक्तमाल ग्रंथ की जय--सद्गुरुदेव भगवान की जय-- जय जय श्री राधे


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