Wednesday 2 November 2016

जानिए भगवत गीता ग्रंथ का रहस्य..इसके घर में रखने मात्र से क्या मिलता है..

गीता की महिमा...
भागवत की तरह गीता की भी अपनी एक अलग ही महिमा है-- परंतु आजकल लोगो ने गीता को लाल कपडे मे बांधकर मंदिर मे रख दिया है -- एसे लोगो से केवल ईतना कहना चाहूंगा की कृप्या एक बार गीता के 18 अध्याय का 68-69-70-71-- ईन चार श्लोको का अर्थ जरुर पढें-- भगवान ने खुद अपने मुख से गीता की महिमा कही है-- ओर ईन चार श्लोको को पढकर जरा विचार करें की गीता को लाल कपडे मे बांधकर रखना चाहिये या दिल रुपि बर्तन मे रखना चाहिये??-- गीता भगवान की वाणी है-- डाक्टर अगर कोई दवाई बताता है ओर अगर मरीज उस दवाई को ग्रहण ना करे तो मरीज ठीक नही होगा उसी प्रकार गीता भी भगवान की वाणी है ईसलिए गीता को भी हमे जीवन मे उतारना चाहिये-- अर्जुन मोह ममता के जाल मे उलझकर अपने युद्ध करने के कर्तव्य को भुल बैठा था-- उस परिस्थिति मे भगवान ने अर्जुन को गीता ज्ञान देकर अर्जुन के मोह का नाश किया ओर अर्जुन को जागृति प्राप्त हूई, अर्जुन को अपने कर्तव्य का बोध हूआ-- ईसी प्रकार मनुष्य भी संसारिक मोह ममता मे उलझकर अपने आत्म स्वरुप को ओर भगवान को भुल बैठा है-- मनुष्य भी अपने भजन करने के वास्तविक कर्तव्य को भुल बैठा है-- ओर गीता ज्ञान उस वास्तविक कर्तव्य का ज्ञान कराता है- अर्जुन ने भी गीता के अंतिम अध्याय मे कहा की --"नष्टो मोह: स्मृतिर्लब्धवा"- अर्थात् हे कृष्ण ,मेरा मोह नष्ट हो गया ओर मुझे स्मृति प्राप्त हो गयी-- स्मृति यानि कर्तव्य-अकर्तव्य की पहचान हो गयी-- मोह ही सब दूखो का कारण है-- "मोह निशा सब सोवन हारा,देखहि स्वपन अनेक प्रकारा"-- संसार के मोह मे फंसकर सब मोह रुपि रात्रि मे सोये हुए है ओर अनेको स्वपन देखते रहते है की एसा हो जाए ,वैसा हो जाए-- किंतु मौत किसी भी क्षण आ सकती है ईसलिए बिना देर किए अपने वास्तविक कर्तव्य को सत्संग के माध्यम से जान लेना चाहिये-- गीता को जीवन मे धारण करने से हमे अपने वास्तविक कर्तव्य की पहचान होती है-- संसारिक मोह का नाश होता है ओर प्रभु मे प्रेम बढता है-- ईसलिए एसे दिव्य गीतामृत को लाल कपडे मे बांधकर रखना एक अपराध ही होगा-- दवाई अगर रखी हो ओर मरीज उस दवाई को ना ले तो गलती दवाई की नही बल्कि गलती मरीज की है उसी प्रकार संसारिक दुख ओर मोह से मनुष्य दिन-प्रतिदिन परेशान रहता है ओर गीता रुपि दवाई घर मे लाल कपडे मे बांधकर रखी हूई है-- एसा करने से मनुष्य अशांत ही होता जाएगा-- गीता लाल कपडे मे बांधकर रखा जाने वाला ग्रंथ नही बल्कि जीवन मे धारण करने योग्य है-- वराह पुराण मे भी गीता की महिमा की विस्तार से वर्णन है--देखिये वराह पुराण से प्रमाण--★ गीतायाः पुस्तकं यत्र पाठः प्रवर्तते--
तत्र सर्वाणि तीर्थानि प्रयागादीनि तत्र वै--
अर्थात् जहां श्री गीता की पुस्तक होती है और जहां श्रीगीता का पाठ होता है वहां प्रयागादि सर्व तीर्थ निवास करते है--
सर्वे देवाश्च ऋषयो योगिनः पन्नगाश्च ये--
गोपालबालकृष्णोsपि नारदध्रुवपार्षदैः---
सहायो जायते शीघ्रं यत्र गीता प्रवर्तते---
अर्थात् जहां श्री गीता प्रवर्तमान है वहां सभी देवों,
ऋषियों, योगियों, नागो और गोपालबाल श्रीकृष्ण भी नारद, ध्रुव आदि सभी पार्षदों सहित जल्दी ही सहायक होते है--
यः श्रृणोति च गीतार्थ कीर्तयेच्च स्वयं पुमान्--
श्रावयेच्च परार्थ वै स प्रयाति परं पदम्----
अर्थात् जो मनुष्य स्वयं गीता का अर्थ सुनता है, गाता है और परोपकार हेतु सुनाता है वह परम पद को प्राप्त होता है--
नोपसर्पन्ति तत्रैव यत्र गीतार्चनं गृहे--
तापत्रयोद्भवाः पीडा नैव व्याधिभयं तथा----
अर्थात् जिस घर में गीता का पूजन होता है वहां (आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक) तीन ताप से उत्पन्न होने वाली पीड़ा तथा व्याधियों का भय नहीं आता---
मलनिर्मोचनं पुंसां जलस्नानं दिने दिने---
सकृद् गीताम्भसि स्नानं संसारमलनाशनम्---
अर्थात् हर रोज जल से किया हुआ स्नान मनुष्यों का मैल दूर करता है किन्तु गीतारूपी जल में एक बार किया हुआ स्नान भी संसाररूपी मैल का नाश करता है---
गीताशास्त्रस्य जानाति पठनं नैव पाठनम्--
परस्मान्न श्रुतं ज्ञानं श्रद्धा न भावना--
स एव मानुषे लोके पुरुषो विड्वराहकः--
यस्माद् गीतां न जानाति नाधमस्तत्परो जनः---
अर्थात् जो मनुष्य स्वयं गीता शास्त्र का पठन-पाठन नहीं जानता है, जिसने अन्य लोगों से वह नहीं सुना है, स्वयं को उसका ज्ञान नहीं है,
जिसको उस पर श्रद्धा नहीं है, भावना भी नहीं है, वह मनुष्य लोक में भटकते हुए शूकर जैसा ही है,उससे अधिक नीच दूसरा कोई मनुष्य नहीं है,
क्योंकि वह गीता को नहीं जानता है---
भगवत्परमेशाने भक्तिरव्यभिचारिणी--जायते सततं तत्र यत्र गीताभिनन्दनम्-- अर्थात् जहां निरन्तर गीता का अभिनंदन होता है वहां भगवान मे एकनिष्ठ भक्ति उत्पन्न होती है-- गीता की बहूत महिमा है ईसलिए भागवत रुपि रसामृत का पान करते करते गीता रुपि ज्ञानामृत का भी पान करना चाहिये--कम से कम गीता के दो अध्यायो का प्रतिदिन पाठ करके उसके अर्थ को जीवन मे उतारना चाहिये ओर केवल जिह्वा से गीता के पाठ का प्रभाव अंत:करण पर नही पडेगा-- गीता के श्लोको को ह्रदय मे उतारने पर ही अंत:करण शुद्ध होगा-- जिस तरह भागवत का पान करके से भक्ति जागृत होती है उसी प्रकार गीता रुपि ज्ञानामृत को भी जीवन मे उतारने पर लाभ होगा--ईसलिए सबको भागवत के स्कंधो के पाठ,श्रवण ,मनन,चिंतन ओर रसपान करने के साथ साथ गीता के अध्यायो का भी पाठ,श्रवण ,मनन,चिंतन ओर जीवन मे धारण करना चाहिये--श्रीमद्भागवत महापुराण की जय,गीता माता की जय,बोलिए सद्गुरुदेव भगवान की जय-- जय जय श्री राधे

7 comments:

  1. सत्य है लेकिन कमेन्ट किसी ने नही किया क्यूंकि
    मोह नीशा सब सोवनहारा।

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  2. Kya hum ghar pr geeta pd sakte h

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  3. Kya Geeta Ghar me rakh sakte hai Kya

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  4. Shri Geeta ko suru krne se pahle kya 2 jruri h sayd mujhe apse sikhne ko koi or nyi bat pta chal jaye

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  5. Kyy Gita padhne se ekagrta badhti h plzz btaye

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