जब
अकबर को हुए दिव्य वृंदावन
के दर्शन
.हर साल हजारों लोग श्री धाम वृंदावन जाते है,कई लोग खाने के लिए जाते है तो कोई घुमने के लिए,लेकिन श्री धाम वृंदावन साधारण नहीं है और हमारी द्रष्टि मायिक है इसलिए हम जिस वृन्दावन को देखते है, वह हमें और गाँव की तरह ही लगता है पर वास्तव में एक संत की द्रष्टि से वृंदावन को देखो क्योकि संत को वो वृदांवन दिखता है जो साक्षात गौलोंक धाम का खंड है.
.हर साल हजारों लोग श्री धाम वृंदावन जाते है,कई लोग खाने के लिए जाते है तो कोई घुमने के लिए,लेकिन श्री धाम वृंदावन साधारण नहीं है और हमारी द्रष्टि मायिक है इसलिए हम जिस वृन्दावन को देखते है, वह हमें और गाँव की तरह ही लगता है पर वास्तव में एक संत की द्रष्टि से वृंदावन को देखो क्योकि संत को वो वृदांवन दिखता है जो साक्षात गौलोंक धाम का खंड है.
जब
भगवान श्रीकृष्ण इस धारा धाम
पर अवतरित होने वाले थे तब
राधा रानी जी को बड़ा दुःख हुआ
कि 'अब
प्राणनाथ से मेरा वियोग हो
जायेगा '
यह
समझकर राधिका जी व्याकुल हो
गई और मूर्छित होकर गिर पड़ी.
श्री
राधिका जी ने कहा -
आप
पृथ्वी का भार उतारने के लिए
अवश्य पधारे परन्तु मेरी एक
प्रतिज्ञा है प्राणनाथ आपके
चले जाने पर एक क्षण भी मै यहाँ
जीवन धारण नहीं कर सकूँगी मेरे
प्राण इस शरीर से वैसे ही उड़
जायेगे जैसे कपूर के धूलिकण
श्री
भगवान ने कहा -तुम
विषाद मत करो!
मै
तुम्हारे साथ चलूँगा.
श्री
राधिका जी ने कहा -
परन्तु
प्रभु !जहाँ
वृंदावन नहीं है,
यमुना
नदी नहीं है,
और
गोवर्धन पर्वत भी नहीं है,
वहाँ
मेरे मन को सुख नहीं मिल सकता.तब
राधिका जी के इस प्रकार कहने
पर भगवान श्रीकृष्ण ने अपने
गौ लोक धाम से चौरासी कोस भूमि
,गोवर्धन
पर्वत और यमुना नदी को भूतल
पर भेजा.
प्रसंग
२ - स्वामी
श्री हरिदास जी के जीवन का
प्रसंग है जब अकबर को हरिदास
जी ख्याति के बारे में पता चला
तो वो उनके पास जाकर बोले -
कि
मै राजा हूँ,
ब्रज
के लिए कुछ करना चाहता हूँ.
आप
कोई सेवा बताइए?
हरिदास
जी को लगा -
कि
इसे अभी कुछ अहंकार है अपने
पद का,
पैसो
का,
तब
हरिदास जी ने समझ गए और सोचने
लगे कि इन्हें ऐसा काम देना
चाहिये जिससे इन्हें व्रज की
महिमा का पता भी चल जाए और इनका
अहंकार भी टूट जाए.
तो
हरिदास जी बोले -
यमुना
जी के किनारे तट पर सीढियों
में से एक सीढी का कुछ भाग टूट
गया है आप उसको बनवा दीजिए,
अकबर
ने जो ये बात सुनी तो जोर से
हसॅने लगे कि आप मुझे इतना
छोटा सा काम करने को दे रहे
हो,
सीढी
का एक छोटा सा हिस्सा बनवाना
है.
तो
हरिदास जी ने कुछ नहीं कहा और
यमुना जी के किनारे ले गए और
राधा जी की कृपा से कुछ समय के
लिए दिव्य दृष्टि अकबर केा
दे दी और अकबर ने देखा -
कि
यमुना जी के तट की एक-एक
सीढी में करोड-करोड
दिव्य पद्मराग मणियाँ जडी है
और यमुना जी की हर सीढी जगमगा
रही है.
ऐसी
एक भी मणि अकबर के खजाने में
नहीं है.
और
अकबर समझ कि मेरे अहंकार को
तोडने के लिए स्वामी ने ऐसा
किया है
और
हरिदास जी के चरणों में गिर
पडे.
और
कहा -
कि
यमुना जी की सीढी का जो हिस्सा
टूट गया है उसे मै नहीं बनवा
सकता उसमे जो पत्थर लगे है
उसको बनवाने के लिए मै पूरा
खजाना लगा दूँ तो भी मै नहीं
बनवा पाउगाँ,
मेरे
पास ऐसी एक भी मणि नहीं है.
प्रेम
से कहिये जय वृन्दावन धाम
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