Wednesday 2 November 2016

आत्म सुधार से मिलेंगे परमात्मा...

मार्गदर्शक चिंतनचाहे गलती कोई भी हो और किसी की भी हो मगर दूसरों को दोष देना, यही आज के इस आदमी की फितरत बन गयी है। आदमी गिरता है तो पत्थर को दोष देता है, डूबता है तो पानी को दोष देता है और कुछ नहीं कर पाता तो क़िस्मत को दोष देता है।
दूसरों को दोष देने का अर्थ ही मात्र इतना सा है कि स्वयं की गलती को स्वीकार करने का सामर्थ्य न रख पाना और अपने में सुधार की भावी संभावनाओं को स्वयं अपने हाथों से कुचल देना।
खुद के जीवन में दोष होने से भी ज्यादा घातक है दूसरों को दोष देना क्योंकि इसमें समय का अपव्यय व आत्मप्रवंचना दोनों होते हैं। अतः आत्मसुधार का प्रयास करो, जहाँ आत्म सुधार की प्रवृत्ति है, वहीँ परमात्मा से मिलन भी है।

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