Saturday 12 November 2016

कैसे निर्मल होगा मन..

( मन की शुद्धता)
पुज्य गुरुदेव कहा करते है की मन की शुद्धता बहुत आवश्यक है- पद्मपुराण मे कहा गया की-- "शोकामर्षादिभिर
्भावैराक्रान्तं यस्य मानसम्--
कथं तत्र मुकुन्दस्य स्फूर्तिसम्भावना भवेत् "" अर्थात् जिसके मन मे शोक,मोह,काम,लोभ ,अहंकार आदि विकार बैठे है उस मन मे मुकुन्द भगवान कैसे प्रकट हो सकते है-- यानि जिस मन मे विकार है ,जिस मन मे अशुद्धि है उस मन मे भगवान नही आते---
ओर श्री रुप गोस्वामी जी ने भी कहा की -- " भुक्ति मुक्ति स्पृहा यावत् पिशाची हृदि वर्तते-- तावद् भक्तिसुखस्यात्र कथमभ्युदयो भवेत्।।---अर्थात् जिसके ह्रदय मे भुक्ति मुक्ति की कामना है उस ह्रदय मे भक्ति सुख कैसे आ सकता है-- यानि भुक्ति मुक्ति की कामना भी मन की अशुद्धि है ओर उस अशुद्ध मन मे भक्ति सुख प्रकट नही होता--" दानं पूजा तपश्चैव तीर्थसेवा श्रुतं तथा --सर्वमेव वृथा तस्य
यस्य शुद्धं न मानसम् ---"
" निर्मल मन जन सो मोहि पावा"- अर्थात् भगवान कहते है की निर्मल मन वाले भक्त को ही मेरी प्राप्ति होती है-- यानि प्रभु प्राप्ति के लिए मन की निर्मलता बहुत आवश्यक है-- ओर गीता मे भगवान कहते है की " अनन्यचेता: सततं यो मां स्मरति नित्यश:--
तस्याहं सुलभ: पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिन" अर्थात्
जो अनन्य भाव से मेरा स्मरण करता है उसके लिए मै सुलभ हुं यानि जल्दी मिल जाता हूं-- यानि जिसका मन भगवान मे अनन्य है उसका मन ही निर्मल है क्योकि जब तक मन संसार मे रहेगा या भौतिक कामनाओ मे अगर मन रहेगा तो मन अशुद्ध रहेगा ओर मन भगवान मे अनन्य नही बन पायेगा ओर जब तक मन अनन्य नही होगा तब तक भगवान नही मिलेंगे --ईसलिए मन का अनन्य होना बहुत आवश्यक है-- मन निर्मल करने के तीन उपाय है--
(1)-- साधु संग
(2)- भावपूर्वक नामजप
(3)- कथामृत का रसपान
--- साधु संग से मन निर्मल होता है क्योकि जब मनुष्य संतो के चरणो मे जाकर जिज्ञासाएं ओर कल्याणकारी प्रश्न पुछता है तो संत उस मनुष्य को समाधान बताते है -- ओर दुसरा उपाय नामजप है--- नाम मे बहुत शक्ति है-- नाम स्वयं चेतन रुप है-- नाम स्वयं कृष्ण है क्योकि नाम ओर नामी मे भेद नही है-- संसार जड है ईसलिए जब मन मे मनुष्य संसार को बसाता है तो जीवन मे जडता ,अशांति ,चिंता आती है लेकिन भगवान का नाम जड नही बल्कि भगवान का नाम चैतन्य रस विग्रह है-- भगवान का नाम भगवान की तरह चेतन है ईसलिए जब मनुष्य मन से उस चेतन रुप नाम का जाप करेगा तो मन शुद्ध होगा-- तभी तो महाप्रभु जी ने कहा की " चेतोदर्पणमार्जनं"- कृष्ण नाम संकीर्तन मन को निर्मल करता है--ओर तीसरा उपाय कथामृत का रसपान करना है-- रसपान यानि कथा को जीवन मे उतारना है-- सेब को देखने से रस नही मिलता बल्कि उस रस को लेने के लिए सेब खाना पडता है उसी प्रकार कथा सुनने के बाद उस कथारस को जीवन मे उतारने पर ही कल्याण होता है ओर मन शुद्ध होता है-- श्रीमद्भागवत कथा रसपान करने से मन शुद्ध होता है-- स्वयं सूत जी भागवत के विषय मे कहते है की " एतस्माद् अपरं किंचिद् मन:शुद्धो न विद्यते:"-- ईसलिए मन की शुद्धता बहुत आवश्यक है-- ईसलिए भगवान गीता मे कहते है की जो भक्त किसी से द्वेष नही करता,,जो अहंकार नही करता,,जो सुख दुख,,मान-अपमान,
निन्दा-स्तुति मे समान भाव रखता है-- यानि जिसका मन शुद्ध है वही भक्त मुझे प्रिय है-- क्योकि अगर मन मे द्वेष ,अहंकार आदि विकार होंगे तो मन अशुद्ध हो जाएगा ओर अशुद्ध मन मे भगवान नही आते ""अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्र: करुण एव च-
निर्ममो निरंहकार समदु:खसु:ख क्षमी--
सन्तुष्ट: सततं योगी यतात्मा दृढनिश्चय:--
मय्यार्पितमनोबुद्धिर्यो मद्भक्त: स मे प्रिय:-"बोलिए श्रीमद्भागवत महापुराण की जय-- सद्गुरुदेव भगवान की जय-- जय जय श्री राधे


No comments:

Post a Comment