मार्गदर्शक चिंतन-केवल
स्वाद के लिए खाना मूर्खता,
जीने
के लिए खाना आवश्यकता और
आत्मोन्नति के लिए खाना ही
साधना है। माना कि भोजन के
अभाव में जीवन जीने की कल्पना
व्यर्थ है लेकिन केवल भोजन
को ही जीवन मान लेना जीवन के
साथ अनर्थ है।
सही अर्थों में भोजन बना रहे इसलिए जीवन नहीं, अपितु जीवन बना रहे इसलिए भोजन है। शास्त्र कहते हैं - जिस दिन हमारे जीवन जीने का उद्देश्य परसुख से स्वसुख हो जाता है उसी दिन हम जीवन जीने के वास्तविक अर्थ से भी भटक जाते हैं।
अतः केवल स्वाद के लिए खाना भोजन को व्यर्थ बर्बाद करना, जीने के लिए खाना भोजन का उपयोग करना व पर सेवा की इच्छा रखते हुए अपने कल्याण के लिए खाना भोजन का सदुपयोग है।
सही अर्थों में भोजन बना रहे इसलिए जीवन नहीं, अपितु जीवन बना रहे इसलिए भोजन है। शास्त्र कहते हैं - जिस दिन हमारे जीवन जीने का उद्देश्य परसुख से स्वसुख हो जाता है उसी दिन हम जीवन जीने के वास्तविक अर्थ से भी भटक जाते हैं।
अतः केवल स्वाद के लिए खाना भोजन को व्यर्थ बर्बाद करना, जीने के लिए खाना भोजन का उपयोग करना व पर सेवा की इच्छा रखते हुए अपने कल्याण के लिए खाना भोजन का सदुपयोग है।
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