Thursday 3 November 2016

क्या है कष्टों से मुक्ति का एकमात्र साधन..

किससे मिलेगी दैहिक,दैविक,भौतिक कष्टों से मुक्ति
संसार का कोई व्यक्ति यह नहीं कह सकता कि मुझे कब जाना है. प्रत्येक का जब आगमन हुआ तो प्रस्थान भी होगा.इसलिए विचार करने की आवश्यकता है.

निरंतर परमात्मा का स्मरण करते रहें. मनुष्य जीवन का उद्देश्य है ईश्वर लाभ. हमारा पूरा अस्तित्व बिना परमात्मा के अर्थहीन है. ईश्वर की अनुभूति हमें मृत्यु के भय से मुक्त कराएगी. हम मृत्यु से कांपते हुए मनुष्य न बनें, बल्कि उसको स्वीकार करके, जीवन का सही अर्थ समझते हुए भरपूर जिएं.
तीन तरह के ताप का विनाश करने वाले है श्रीकृष्ण. श्रीमद्भागवत के पहले श्लोक में ये बताया गया है.
"सच्चिदानन्दरूपाय विश्वोत्पत्त्यादिहेतवेतापत्रयविनाशाय श्रीकृष्णाय वयं नम:"
तापत्रय अर्थात आध्यात्मिक, आधिदैविक, आधिभौतिक तीन तरह के दु:ख होते हैं इंसान को. भागवत कितना सावधान ग्रंथ है. पापत्रयविनाशाये नहीं लिखा तापत्रयविनाशाय लिखा. पाप आता है चला जाता है. यदि आदमी पश्चाताप कर ले. लेकिन पाप का परिणाम क्या है "ताप'. पाप अपने पीछे ताप छोड़कर जाता है. आदमी को पता नहीं लगता इसी को संताप कहते हैं.
लिखा है आध्यात्मिक आदिदैविक, अदिभौतिक तीनों प्रकार के पापों को नाश करने वाले भगवान श्रीकृष्ण की हम वंदना करते हैं. अनेक लोगों को मन में यह प्रश्न उठता है कि वंदना करने से क्या लाभ है? वंदना करने से पाप जलते हैं. श्रीराधा व कृष्ण की वंदना करेंगे तो हमारे सारे पाप नष्ट होंगे. परंतु वंदना केवल शरीर से नहीं मन से भी करना पड़ेगी. अत: ईश्वर वंदनीय है. वंदना करने का अर्थ है अपनी क्रियाशक्ति को और बुद्धि शक्ति को श्रीभगवान को अर्पित करना.वंदन करने से अभिमान का बोझ कम होता है.

जय जय श्री राधे

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