Sunday 13 November 2016

क्या है कार्तिक पूर्णिमा का रहस्य..क्यों खास है सनातन धर्म में कार्तिक पूर्णिमा..

कार्तिक पूर्णिमा की महिमा..


हिन्दू पंचांग के अनुसार साल का आठवां महीना कार्तिक महीना होता है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा कार्तिक पूर्णिमा कहलाती है। प्रत्येक वर्ष पंद्रह पूर्णिमाएं होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 16 हो जाती है। कार्तिक पूर्णिमा के व्रत को त्रिपुरी पूर्णिमा या गंगा स्नान के नाम से भी जाना जाता है। आज के दिन ही भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक महाभयानक असुर का अंत किया था। तत्पश्चात वे त्रिपुरारी के रुप में पूजित किये गये थे। तभी से इस पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहा जाता हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन कृतिका में शिव शंकर के दर्शन करने से व्यक्ति सात जन्म तक ज्ञानी और धनवान बना रहता है। इस दिन चन्द्र जब आकाश में उदित हो रहा हो उस समय शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूया और क्षमा इन छः कृतिकाओं का पूजन करने से शिव जी की प्रसन्नता प्राप्त होती है। इस दिन गंगा नदी में स्नान करने से भी पूरे वर्ष स्नान करने का फल मिलता है। पुराणों मे मिलता है कि महाभारत काल में हुए 18 दिनों के विनाशकारी युद्ध में योद्धाओं और सगे संबंधियों को देखकर जब युधिष्ठिर कुछ विचलित हुए तो भगवान श्री कृष्ण पांडवों के साथ गढ़ खादर के विशाल रेतीले मैदान पर आए। कार्तिक शुक्ल अष्टमी को पांडवों ने स्नान किया और कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी तक गंगा किनारे यज्ञ और प्रार्थना किया। इसके बाद रात में दिवंगत आत्माओं की शांति के लिए दीपदान करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की। इसलिए इस दिन गंगास्नान का और विशेष रुप से गढ़मुक्तेश्वर तीर्थ नगरी में आकर स्नान करने का भी विशेष महत्व मिलता है।
शैव मतानुसार मान्यता यह भी है कि कार्तिक पूर्णिमा को पूरे दिन व्रत रखकर रात्रि में वृषदान यानी बछड़ा दान करने से शिवपद की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति इस दिन उपवास करके भगवान शिव शंकर का भजन और गुणगान करता है उसे अग्निष्टोम नामक यज्ञ का फल प्राप्त होता है। इस पूर्णिमा को शैव मत में जितनी मान्यता मिली है उतनी ही वैष्णव मत में भी।
वैष्णव मत के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा को गोलोक के रासमण्डल में श्री कृष्ण ने श्री राधा का पूजन किया था। ब्रह्मांडों से परे जो सर्वोच्च गोलोक है वहां इस दिन राधा उत्सव मनाया जाता है तथा रासमण्डल का आयोजन होता है। कार्तिक पूर्णिमा को ही श्री हरि के बैकुण्ठ धाम में देवी तुलसी का मंगलमय पराकाट्य हुआ था। कार्तिक पूर्णिमा को देवी तुलसी ने पृथ्वी पर जन्म लिया था। प्राचीन से मान्यता है की कार्तिक पूर्णिमा को राधिका जी की प्रतिमा का दर्शन और वन्दन करने वाले मनुष्यों को जन्म के बंधन से मुक्ती मिल जाती है। इस दिन बैकुण्ठ के स्वामी श्री हरि को तुलसी पत्र का अर्पण भी शुभ माना जाता हैं। वैष्णव धर्म मे कार्तिक पूर्णिमा को श्री राधा और श्री कृष्ण का पूजन करना विशेष महत्व रखता है। पुराणों की कथाओं मे इसी दिन को भगवान विष्णु ने प्रलय काल में वेदों की रक्षा के लिए तथा सृष्टि को बचाने के लिए मत्स्य अवतार धारण किया था। कार्तिक पूर्णिमा को तुलसी या आंवलें के वृक्ष के नीचे पूजन करना चाहिए। कार्तिक मास में पराये अन्न, गाजर, दाल, चावल, मूली, बैंगन, घीया, तेल लगाना, तेल खाना, मदिरा, कांजी का त्याग करें। कार्तिक मास में अन्न का दान अवश्य करना चाहिए। इस पूर्णिमा को महाकार्तिकी के पर्व के नाम से भी जाना जाता है। यदि इस पूर्णिमा के दिन भरणी नक्षत्र हो तो इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। अगर रोहिणी नक्षत्र हो तो इस पूर्णिमा का महत्व कई गुणा बढ़ जाता है। इस दिन कृतिका नक्षत्र पर चन्द्रमा और बृहस्पति हों तो यह महापूर्णिमा कहलाती है। कृतिका नक्षत्र पर चन्द्रमा और विशाखा पर सूर्य हो तो ”पद्मक योग“ बनता है जिसमें गंगा स्नान करने से पुष्कर से भी अधिक उत्तम फल की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में वर्णित है कि कार्तिक पुर्णिमा के दिन पवित्र नदी व सरोवर एवं धर्म स्थान में जैसे, गंगा, यमुना, गोदावरी, नर्मदा, गंडक, कुरुक्षेत्र, अयोध्या, काशी में स्नान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन व्यक्ति जो कुछ दान करता है वह उसके लिए स्वर्ग में स्थान संरक्षित रहता है जो मृत्यु लोक त्यागने के बाद स्वर्ग में उसे पुनःप्राप्त होता है। सिख सम्प्रदाय में कार्तिक पूर्णिमा को गुरुनानक जयंती के दिन के रुप मे मनाते है। इस पर्व को प्रकाशोत्सव के रुप में भी मनाया जाता है। क्योंकि इस दिन सिख सम्प्रदाय के संस्थापक गुरु नानक देव का जन्म हुआ था। इस दिन सिख सम्प्रदाय के अनुयायी सुबह स्नान कर गुरुद्वारों में जाकर गुरुवाणी सुनते हैं और नानक जी के बताये रास्ते पर चलने की सौगंध लेते हैं। इसे गुरु पर्व भी कहा जाता है। इस तरह यह दिन एक नहीं बल्कि कई कारणों से सभी के लिए बहुत महत्व पूर्ण है|

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