Tuesday 1 November 2016

क्या है श्रीमदभागवत महापुराण का रहस्य...

श्रीमदभागवत महापुराण की महिमा..
पुज्य गुरुदेव कहा करते है की जब तक अध्यात्म का दीपक मनुष्य के ह्रदय मे जागृत नही होगा तब तक मनुष्य अशांत रहेगा -- सब जीवन मे आनंद चाहते है लेकिन जिस तरफ आनंद है उस तरफ तो जीव जा ही नही रहा-- क्योकि सूर्य के ताप का अनुभव सूर्य के सन्मुख होने पर होता है उसी प्रकार जीवन मे आनंद भी तब आयेगा जब मनुष्य भगवान के सन्मुख हो जाएगा--किंतु मनुष्य भगवान से विमुख है ईसलिए अशांत है-- "विमुख राम सुख पाव न कोई"--तो कहने का अभिप्राय: की भागवत हमे उस आनंदस्वरुप परमात्मा के सन्मुख कर देती है---ओर जीवन मे आनंद प्रदान करती है--
 भागवत मे ओर भगवान मे कोई भेद नही है-- भागवत स्वयं कृष्ण का ही शब्दस्वरुप है--" तेनेयं वांङमयी मूर्ति प्रत्यक्षा वर्तते हरे:-" अर्थात् भागवत तो भगवान की साक्षात् वांङमयी मूर्ति ही है--
ओर भागवत के माहात्म मे एक ओर प्रमाण दिया गया है की--"मेनिरे भगवद्रूपं शास्त्रं भागवतं कलौ"- अर्थात् ये भागवत साक्षात् भगवद्रूप (कृष्णरुप) है--एकादश स्कंध मे भगवान ने अपनी आठ प्रकार की मूर्तियो के विषय मे बताया है ओर नौवीं मूर्ति साक्षात् भागवत है-- '"श्रीमद्भागवताख्योयं प्रत्यक्ष: कृष्ण एव हि""
 भागवत केवल पुराण ही नही बल्कि पुराणो का भी सम्राट है-- जिस तरह कोई राजा अपने सिंहासन पर विराजमान रहता है ओर सेवक आस- पास खडे होकर राजा की सेवा करते है उसी प्रकार से पुराणो मे भागवत के विषय मे कहा गया की भागवत पुराण सब पुराणो का सम्राट है-- ब्रह्म वैवर्त पुराण ओर पद्मपुराण ये दोनो पुराण भागवत की सेवा मे चमर लेकर खडे है ओर ब्रह्माण्ड पुराण भागवत की सेवा मे छत्र लेकर खडे है-- अन्य भी सब पुराण भागवत की सेवा मे खडे है--क्योकि भागवत साक्षात् कृष्ण है ईसलिए ईन बातो से स्पष्ट है की भागवत पुराण अन्य सब पुराणो का भी सम्राट है --
"सर्व वेदेतिहासानां सारं सारं समुद्धृतम्"--अर्थात् भागवत मे समस्त वेद ओर ईतिहास का सार संग्रहीत हूआ है -- देखो विचारणीय बात है की मनुष्य वृक्ष से ज्यादा उसके फल मे ममता रखता है क्योकि फल सार है ओर फल का रस पाकर उसे अच्छा लगता है-- उसी प्रकार भागवत भी समस्त वेद ओर ईतिहास का सार रुपि फल है जिसमे केवल रस ही रस भरा है ईसलिए जीवन मे रस भी भागवत को पान करने से प्राप्त होगा-- "यस्यां वै श्रूयमाणायां कृष्णे परमपुरुषे --
भक्तिरुत्पद्यते पुंस: शोकमोहभयापहा"--अर्थात् भागवत के श्रवण मात्र से भगवान कृष्ण के प्रति भक्ति जागृत हो जाती है ओर ह्रदय से शोक,मोह,भय सब निकल जाते है--कुछ लोगो के मन मे जिज्ञासा उठती है की मनुष्य ने कथा को बहुत बार सुना है लेकिन फिर भी जीवन अशांत रहता है --एसा क्यो??-- तो पुज्य गुरुदेव कहा करते है की सेब का रस लेने के लिए सेब को खाना पडेगा उसी प्रकार अगर जीवन मे भागवत रस प्राप्त करना है तो भागवत को पीना ही पडेगा-- गोकर्ण जी महाराज ने जब सर्वप्रथम धुंधकारी के लिए कथा की थी तो कथा के बाद केवल धुंधकारी के लिए विमान आया था-- तो गोकर्ण जी महाराज ने विष्णुदूतो से पुछा की "कथा तो सबने सूनी है लेकिन विमान केवल धुंधकारी के लिए ही क्यो आया??-- तो विष्णुदूतो ने कहा की गोकर्ण जी कथा सबने सुनी लेकिन उन सबके श्रवण मे भेद था ओर धुंधकारी ने पुर्ण एकाग्रचित्त होकर कथा सुनी है ईसलिए केवल धुंधकारी के लिए विमान आया-- तो कहने का अभिप्राय: की कथा को सुनने के साथ साथ उस कथा को पीना भी है,मनन करके जीवन मे उतारना है--भोजन को खाने से ही भूख मिटती है उसी प्रकार कथा को पीने से ही शांति आयेगी ,आनंद आयेगा--
 जहां जहां भागवत कथा होती है वहां भगवान अवश्य जाते है---ओर ईस बात को स्वयं उद्धव जी ने स्कंदपुराण मे कहा है की-- " श्रीमद्भागवतं शास्त्रं यत्र भागवतैर्यदा --
कीर्त्यते श्रूयते चापि श्रीकृष्णस्तत्र निश्चितम्--"- अर्थात् जहां जहां भक्तो के श्रीमुख से भागवत का गान होता है वहां निश्चित् रुप से श्री कृष्ण रहते है-- "श्रीमद्भागवतं यत्र श्लोकं श्लोकार्द्धमेव च --
तत्रापि भगवान्कृष्णो बल्लवीभिर्विराजते"-- जहां भागवत का एक श्लोक ,आधा श्लोक भी गाया जाए वहां कृष्ण अपनी समस्त नायिकाओ के साथ विराजते है--कुछ जिज्ञासुओ के मन मे ये जिज्ञासा जरुर उठती होगी तो भागवत के श्लोको की ईतनी महिमा क्यो है?? तो देखो जैसे अग्नि जब लोहे को लाल कर देती है तो लोहे के अंदर भी अग्नि के गुण आ जाते है ओर फिर लोहा भी दाहक शक्ति प्राप्त कर लेता है उसी प्रकार से भागवत के प्रत्येक श्लोक मे भगवान अपनी समस्त शक्तियो के साथ बैठे है ईसलिए भगवान की शक्ति प्राप्त करके श्लोको की भी महिमा बढ गयी-- ईसलिए श्लोको की महिमा है-- "स्वकीयं यद् भवेत् तेज: तच्च भागवतेदधात्--- तिरोधाय प्रविष्टोयं श्रीमद् भागवतार्णवम्"--
 भागवत के माहात्म मे लिखा है की " जन्मांतरे भवेत् पुण्यं तदा भागवतं लभेत्"- अर्थात् जन्मो जन्मो के पुण्य जब एकत्र हो तब भागवत सुनने को मिलती है--यहां एक विशेष बात ध्यान देने योग्य है की भगवान गीता मे कहते है मै यज्ञ,दान आदि पुण्यो से नही मिलता बल्कि मै केवल अनन्यभक्ति से मिलता हूं--तो " जन्मांतरे भवेत् पुण्यं"- यहां जिन पुण्यो की बात हो रही है वो पिछले जन्मो मे किये गये यज्ञ,तप,दान आदि पुण्यो के विषय मे नही कहा जा रहा क्योकि भागवत साक्षात् कृष्ण है ओर कृष्ण भक्ति से मिलते है तो पुर्वजन्मो मे की गयी भक्ति साधना का ही ये परिणाम है की हमे भागवत सुनने को मिली-- वल्लभाचार्य जी अपनी टीका मे ईस श्लोक के विषय मे लिखते है की "भगवत भागवत परिचर्या जन्यं पुण्यं" अर्थात् पुर्वजन्मो मे की गयी भगवान ओर भक्तो की सेवा के ही परिणामस्वरुप भागवत सुनने को मिलती है-- ईसी बात को उद्धव जी स्कंदपुराण मे कहते है की " अनेकजन्मसंसिद्ध: श्रीमद्भागवतं भवेत्"- अर्थात् अनेको जन्मो की साधना करने के परिणाम मे ये भागवत श्रवण करने का सौभाग्य प्राप्त होता है--
"श्रीमद्भागवती वार्ता सुराणां अपि दूर्लभा"-- ये श्रीमद्भागवत रुपि रस तो देवताओ को भी दूर्लभ है--एक बार देवतालोग अमृत का कलश लेकर शुकदेव जी महाराज के पास आऐ ओर शुकदेव जी महाराज से कहने लगे की आप हमसे ये अमृत ले लो ओर बदले मे भागवत रुपि कथामृत दे दो-- शुकदेव जी हंसे ओर बोले की " क्व कथा क्व सुधा लोके ,क्व कांच: क्व मणिर्महान्--"-अरे देवताओ.! ईस कथामृत के आगे तो तुम्हारा स्वर्ग का अमृत भी बहूत तुच्छ है-- जिस तरह मणि के आगे कांच बिलकुल तुच्छ है यानि मणि की बराबरी कांच नही कर सकता उसी प्रकार तुम्हारा स्वर्ग का अमृत ईस भागवत रुपि अमृत की बराबरी नही कर सकता--मनुष्य कभी घाटे का सौदा नही करता-- एसा कभी नही होता की मनुष्य किसी को 1000 का नोट देकर उससे 10 का नोट वापिस ले-- घाटे का सौदा कोई मनुष्य नही करना चाहता-- ईसलिए शुकदेव जी महाराज ने कहा की तुम भागवत का सौदा करने आये हो ईसलिए तुम्हे भागवत रुपि रस नही मिल सकता--जरा विचार करें की जिस अमृत को प्राप्त करने के देवताओ ने समुंद्र मंथन किया ओर समुंद्र मंथन के प्रसंग मे भगवान ने चार अवतार लिये --तो उस अमृत को भी शुकदेव जी ने कथा की तुलना मे तुच्छ बता दिया- क्योकि स्वर्ग का अमृत निर्भय नही कर सकता,,स्वर्ग का अमृत चिंता,तनाव,अशांति,दुख को खत्म नही कर सकता ओर भागवत रुपि अमृत जीवन मे प्रेमानंद प्रदान करता है ईसलिए भागवत की महिमा है-
" सदा सेव्या सदा सेव्या श्रीमद्भागवती कथा "-

 (जब तक जियो ,तब तक पीयो) अर्थात् कथा को हमेशा पीते रहो-- "पिबत भागवतं रसमालयं"-- क्योकि जिस तरह लोहे मे चुंबकीय शक्ति लाने के लिए लोहे की कील के ऊपर तार लपेटकर उसमे विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो जितनी देर तक तारो से विद्युत धारा प्रवाहित होती रहेगी उतनी देर तक वो लोहे की कील चुम्बक का कार्य करती है उसी प्रकार मनुष्य भी लगातार जब कथामृत की धारा को अपने जीवन मे बहाता रहेगा तो ह्रदय मे प्रभु के प्रति आकर्षण शक्ति नित्य बनी रहेगी-- ओर अगर कथामृत पान करना मनुष्य छोड देगा तो माया मे फंसने का खतरा बना रहता है ईसलिए कहा गया की" सदा सेव्या सदा सेव्या श्रीमद्भागवती कथा"--बोलिए श्रीमद्भागवत महापुराण की जय--सद्गुरुदेव भगवान की जय-- जय जय श्री राधे

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