मार्गदर्शक चिंतन-श्री
राधा रानी जी कृपा से परिपूर्ण
हैं। करुणा तो किसी के भी ह्रदय
में जागृत हो सकती है मगर कृपा
सब के बस की बात नहीं,
वह
तो हमारी किशोरी जू ही जानती
हैं। करुणा और कृपा के बीच के
भेद को थोडा समझ लेना होगा।
किसी गिरे हुए को देख कर मन में दया का भाव उत्पन्न होना, उसकी ऐसी दुर्दशा देख कर मन का व्यथित हो जाना, यह करुणा है। और उस गिरे हुए को हाथ पकड़ कर उठाना, उसकी यथासंभव सहायता करना और उसे अपने गंतव्य (लक्ष्य) तक पहुंचा देना, यह कृपा है।
भव सागर में पड़े इस जीव की दशा को देखकर कृपा सिन्धु श्री राधे रानी से रहा नहीं जाता और वह पात्र - कुपात्र के भेद को जाने बिना ही सब को पार लगा देतीं हैं। श्री राधा ही जीव के समस्त दुखों को मिटाने वाली है। विषय- वासना में लिपटे जीव को श्री कृष्ण तक पहुँचाने वाली सीढ़ी का नाम ही राधा है।
किसी गिरे हुए को देख कर मन में दया का भाव उत्पन्न होना, उसकी ऐसी दुर्दशा देख कर मन का व्यथित हो जाना, यह करुणा है। और उस गिरे हुए को हाथ पकड़ कर उठाना, उसकी यथासंभव सहायता करना और उसे अपने गंतव्य (लक्ष्य) तक पहुंचा देना, यह कृपा है।
भव सागर में पड़े इस जीव की दशा को देखकर कृपा सिन्धु श्री राधे रानी से रहा नहीं जाता और वह पात्र - कुपात्र के भेद को जाने बिना ही सब को पार लगा देतीं हैं। श्री राधा ही जीव के समस्त दुखों को मिटाने वाली है। विषय- वासना में लिपटे जीव को श्री कृष्ण तक पहुँचाने वाली सीढ़ी का नाम ही राधा है।
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