Tuesday 8 November 2016

कैसे कर्म करने से बचें...जिससे न होना पड़े शर्मिंदा

मार्गदर्शक चिंतन-

शर्म से जिन्दगी जिओ मगर शर्म की जिन्दगी नहीं। परस्पर सम्मान पूर्वक व्यवहार करते हुए, सबसे विनम्रता पूर्वक आचरण रखना और अपने से बड़ों के साथ नीची आवाज में बात करना, इसी का नाम तो शर्म से जिन्दगी जीना है।
इसके ठीक विपरीत अपने दुष्कृत्यों द्वारा समाज में तिरष्कृत रहना अथवा अपने दुर्व्यवहार व दुश्चरित्र के कारण पग-पग पर अपमानित रहना, ऐसी जिन्दगी जीना ही शर्म की जिन्दगी जीना है। विनय ही जीवन में विजय का मार्ग प्रशस्त करता है।
जो लोग शर्म से तथा विनय पूर्वक जीना जानते हैं , सफलता उनके द्वार को अवश्य खटखटाया करती है। स्वयं शर्म करना अच्छी बात है मगर दूसरे तुम पर शर्म करें ऐसे कर्म करने से बचना ही जीवन की महानता है।

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