Monday 31 October 2016

( भगवान का सर्वाधिक प्रिय कौन है)???

( भगवान का सर्वाधिक प्रिय कौन है)???
प्राय: संसार मे एसा देखा जाता है की मनुष्य की परमात्मा के प्रति श्रद्धा तो होती है लेकिन परमात्मा के भक्तो के प्रति,संतो के प्रति ,दीन-दुखियो के प्रति श्रद्धा नही होती--भगवान एसे व्यक्तियो से कभी प्रसन्न नही होते जो भगवान का तो पुजन करते है लेकिन भक्तो से द्वेष करते है-- दूर्वासा जी भी बहुत अच्छे भक्त थे लेकिन देखो कैसे भक्त अम्बरीष के प्रति अपराध करने पर उनको जगह जगह रक्षा के लिए जाना पडा ओर अंत मे जब भगवान के पास दूर्वासा जी गये ओर उनसे कहा की प्रभु सुदर्शन चक्र मेरा पीछा कर रहा है- ईसलिए मेरी रक्षा कीजिये- तो भगवान ने भी यही कहा की अगर तुने मेरा अपराध किया होता तो मै क्षमा कर देता लेकिन तुने मेरे भक्त का अपराध किया है ईसलिए जब तक अम्बरीष से जाकर क्षमा याचना नही करोगे तब तक मै तुम्हारी रक्षा नही कर सकता क्योकि मै भक्तो के आधीन हूं-- तो कहने का अभिप्राय: केवल ईतना है की हमारी परमात्मा के प्रति भी श्रद्धा हो ओर अन्य सब प्राणियो के प्रति भी दयाभाव हो -- क्योकि सबमे भगवान बैठे है ईसलिए ईस भावना से सबकी सेवा करनी चाहिये--
चलिये अब प्रमाणो द्वारा ईस विषय पर चर्चा करते है-- भागवत मे ग्यारहवे स्कंध मे दूसरे योगिश्वर ने राजा निमि से कहा की-- " अर्चामेव हरये पूजां य: श्रद्धयेहते---
न तद्भक्तेषु चान्येषु स भक्त: प्राकृत: स्मृत:--- अर्थात् जो भक्त परमात्मा की पुजा मे तो श्रद्धा रखता है लेकिन भगवान के भक्तो के प्रति,दीन-दुखियो के प्रति सेवा भाव अर्थात् श्रद्धा नही रखता तो वो भक्त कनिष्ठ भक्त है-- कनिष्ठ यानि निम्न श्रेणी का है--
ओर सबसे उत्तम भक्त का लक्षण बताते हूए कहा गया की-- " सर्वभुतेषु य: पश्येद् भगवद्भावमात्मन:--
भूतानि भगवत्यात्मन्येष भागवतोत्तम:-- अर्थात् जो सबमे भगवद् भावना करे अर्थात् जो सबमे भगवान को देखते हुए सबके प्रति सेवा भाव रखे वही सबसे उत्तम भक्त है-- यानि ईस श्लोक के माध्यम से सबको एक प्रेरणा दी जा रही है की अगर प्रभु का प्रिय बनना है तो सब प्राणियो मे भगवान को देखते हूए सबकी सेवा करनी चाहिये--पुज्य गुरुदेव भी कहा करते है की सेवा सबकी करो लेकिन मन प्रभु मे आसक्त रखो -- माता पिता दो बातो से बहुत प्रसन्न होते है-- पहली बात तो ये की बच्चे उनकी आज्ञा का पालन करें ओर दूसरी बात ये की मां बाप अपने बच्चो मे जिस स्वभाव को देखना चाहते है वो स्वभाव अगर बच्चो मे आ जाए तो माता पिता को बहुत प्रसन्नता होती है-- उसी प्रकार भगवान की आज्ञा का पालन ओर भगवान हमसे जिस स्वभाव की उम्मीद करते है वो स्वभाव हमारा बन जाए तो हम भी परमात्मा के सर्वाधिक प्रिय बन जाएगें-- अब देखो भगवान की भागवत मे क्या आज्ञा है"मद्भक्तपूजाभ्यधिका"- अर्थात् भगवान कहते है की मेरे भक्त की पुजा मुझसे बढकर करो-- ओर संसार वाले क्या करते है -- संतो के प्रति तो द्वेष करते है,भक्तो की निंदा करते है ओर मंदिरो मे खूब भगवान को भोग लगाते है-- तो एसा करने से भगवान को प्रसन्नता नही होती-- अगर हम भक्त की सेवा ठीक तरह से नही कर पा रहे तो कम से कम हमारी भावना तो अशुद्ध ना हो -- कम से कम हम भक्तो मे श्रद्धा तो रखें-- ईसलिए भगवान कहते है की " सर्वभूतेषु मन्मति:-" सबमे भगवद्बुद्धि हो ,अर्थात् सबमे भगवान बैठे है ये भावना रखकर भजन करना है--भगवान हमसे कैसा स्वभाव चाहते है ईस विषय मे भगवान गीता के बारहवें अध्याय मे कितनी सुंदर बात बताते हूए कह रहे है की " अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्र: करुण एव च-
निर्ममो निरंहकार समदु:खसु:ख क्षमी--
सन्तुष्ट: सततं योगी यतात्मा दृढनिश्चय:--
मय्यार्पितमनोबुद्धिर्यो मद्भक्त: स मे प्रिय:---
गीता के ईस श्लोक मे पहली ही बात भगवान ने ये कह दी की " अद्वेष्टा सर्वभूतानां"-- अर्थात् किसी से भी द्वेष मत करो-- ईसलिए भगवान का प्रिय बनने के लिए द्वेष तो त्यागना ही पडेगा-- सबमे भगवान बैठे है ईस भावना से सबके प्रति शुद्ध भाव हमारे अंदर होना चाहिये--ओर ईसके बाद ईस श्लोक मे एक ओर सबसे बढिया गुण बताया की " क्षमी"-- हमे क्षमावान बनना है-- सम: मानापमानयो:-- अर्थात् मान ,अपमान मे भी मन भटक ना पाये ईसलिए निन्दा स्तुति ,मान - अपमान मे सम रहते हुए भजन करना है--" मय्यार्पितमनोबुद्धिर्यो -- मन बुद्धि भगवान ने लगा रहना चाहिये --तो एसा करने वाले भक्त से भगवान बहुत प्रेम करते है --ओर भी बहुत सारे स्वभाव भगवान ने बारहवें अध्याय मे बताये है--तो कहने का अभिप्राय: की कुछ लोग भगवान मे तो श्रद्धा रखते है लेकिन भक्तो की निंदा करते है ,भक्तो से द्वेष करते है -- तो एसे लोगो से भगवान प्रसन्न नही होते क्योकि भगवान अपने भक्तो के आधीन है-- देखो अगर कोई भाई अपने दुसरे भाई की खूब सेवा करता है तो माता पिता बहुत प्रसन्न होते है उसी प्रकार हम सब भगवान के अंश है ओर भगवान हमारे माता पिता है ईसलिए जब हम दुसरो की सच्चे भाव से सेवा करेंगे तो भगवान भी बहूत प्रसन्न होते है-- बोलिए श्रीमद्भागवत महापुराण की जय-- सद्गुरुदेव भगवान की जय-- जय जय श्री राधे

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