दीपावली - स्वयं लक्ष्मी जी ने बताया कि किन स्थानों पर नहीं आती हूं मैं..जानिए कहां रहती हैं लक्ष्मीजी
दीपावली
की रात्रि में विष्णुप्रिया
लक्ष्मी गृहस्थों के घरों
में विचरण कर यह देखती हैं कि
हमारे निवास-योग्य
घर कौन-कौन
से हैं? महाभारत
के अनुशासनपर्व में रुक्मिणीजी
के पूछने पर कि हे देवि!
आप
किन-किन
पर कृपा करती हैं,
स्वयं
लक्ष्मीजी कहती हैं–आमलक
फल (आंवला),
गोमय,
शंख,
श्वेत
वस्त्र,
चन्द्र,
सवारी,
कन्या,
आभूषण,
यज्ञ,
जल
से पूर्ण मेघ,
फूले
हुए कमल,
शरद्
ऋतु के नक्षत्र,
हाथी,
गायों
के रहने के स्थान,
उत्सव
मन्दिर,
आसन,
खिले
हुए कमलों से सुशोभित तालाब,
मतवाले
हाथी,
सांड,
राजा,
सिंहासन,
सज्जन
पुरुष,
विद्वान
ब्राह्मण,
प्रजापालक
क्षत्रिय,
खेती
करने वाले वैश्य तथा सेवापरायण
शूद्र मेरे प्रधान निवासस्थान
हैं।
लक्ष्मीजी
ने देवराज इन्द्र को बताया
कि–भूमि (वित्त),
जल
(तीर्थादि),
अग्नि
(यज्ञादि)
एवं
विद्या (ज्ञान)–ये
चार स्थान मुझे प्रिय हैं।
सत्य,
दान,
व्रत,
तपस्या,
पराक्रम
एवं धर्म जहां वास करते हैं,
वहां
मेरा निवास रहता है।
जिस
स्थान पर *
श्रीहरि,
श्रीकृष्ण
की चर्चा होती है,
* जहां
तुलसी शालिग्राम की पूजा,
* शिवलिंग
व दुर्गा का आराधन होता है
वहां पद्ममुखी लक्ष्मी सदा
विराजमान रहती हैं।
‘मैं उन
पुरुषों के घरों में निवास
करती हूँ जो
सौभाग्यशाली,
निर्भीक,
सच्चरित्र,
कर्तव्यपरायण,
अक्रोधी,
भक्त,
कृतज्ञ,
जितेन्द्रिय,
सदाचरण
में लीन व गुरुसेवा में निरत
रहते हैं।
इसी
प्रकार उन
स्त्रियों के घर मुझे प्रिय
हैं जो
*
क्षमाशील,
शीलवती,
सौभाग्यवती,
गुणवती,
पतिपरायणा,
सद्गुणसम्पन्ना
होती हैं व *
जिन्हें
देखकर सबका चित्त प्रसन्न हो
जाता है,
* जो
देवताओं,
गौओं
तथा ब्राह्मणों की सेवा में
तत्पर रहती हैं तथा *
घर
में धान्य के संग्रह में तत्पर
रहती हैं।
लक्ष्मीजी किन लोगों के घरों को छोड़कर चली जाती हैं
लक्ष्मीजी
ने देवराज इन्द्र से कहा–*
जो
पुरुष अकर्मण्य,
नास्तिक,
कृतघ्न,
दुराचारी,
क्रूर,
चोर,
गुरुजनों
के दोष देखने वाला है,
* बात-बात
में खिन्न हो उठते हैं,
* जो
मन में दूसरा भाव रखते हैं और
ऊपर से कुछ और दिखाते हैं,
ऐसे
मनुष्यों में मैं निवास नहीं
करती। *
जो
नखों से भूमि को कुरेदता और
तृण तोड़ता है,
* सिर
पर तेल लगाकर उसी हाथ से दूसरे
अंग का स्पर्श करता है,
* अपने
किसी अंग को बाजे की तरह बजाता
है,
* निरन्तर
बोलता रहता है,
* जो
भगवान के नाम का व अपनी कन्या
का विक्रय करता है,
* जहां
बालकों के देखते रहने पर उन्हें
बिना दिये ही लोग भक्ष्य पदार्थ
स्वयं खा जाते हैं,
* जिसके
यहां अतिथि को भोजन नहीं कराया
जाता,
* ब्राह्मणों
से द्वेषभाव रखता है,
* दिन
में शयन करता है,
उसके
घर से लक्ष्मी रुष्ट होकर चली
जाती है।
वे
स्त्रियां भी लक्ष्मीजी को
प्रिय नहीं हैं जो
*
अपवित्र,
चटोरी,
निर्लज्ज,
अधीर,
झगड़ालू
व अधिक सोती हैं,
* जो
अपनी गृहस्थी के सामानों की
चिन्ता नहीं करतीं,
* बिना
सोचे-बिचारे
काम करती हैं,
* पति
के प्रतिकूल बोलती हैं और *
दूसरों
के घरों में घूमने-फिरनें
में आसक्ति रखती हैं,
* घर
की मान-मर्यादा
को भंग करने वाली हैं,
* जो
स्त्रियां देहशुद्धि से रहित
व सभी (भक्ष्याभक्ष्य)
पदार्थों
को खाने के लिए तत्पर रहती
हों–उन्हें मैं त्याग देती
हूँ।
इन
दुर्गुणों के होने पर भले ही
कितनी ही लक्ष्मी-पूजा
की जाए,
उनके
घर में लक्ष्मीजी का निवास
नहीं हो सकता।
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