इंद्र ने किन सरल मंत्रों के पाठ से पायी अक्षय राजलक्ष्मी की कृपा..
पद्मा, पद्मालया, पद्मवनवासिनी, श्री, कमला, हरिप्रिया, इन्दिरा, रमा, समुद्रतनया, भार्गवी और जलधिजा आदि नामों से पूजित देवी महालक्ष्मी वैष्णवी शक्ति हैं। ये सम्पूर्ण ऐश्वर्यों की अधिष्ठात्री और समस्त सम्पत्तियों को देने वाली हैं। इनकी कृपा के बिना मनुष्य में ऐश्वर्य का अभाव हो जाता है और इनकी कृपादृष्टि से गुणहीन मनुष्य को भी शील, विद्या, विनय, ओज, गाम्भीर्य और कान्ति आदि समस्त गुण प्राप्त हो जाते हैं। मनुष्य सम्पूर्ण विश्व का आदर और प्रेम प्राप्तकर श्रद्धा का पात्र बन जाता है।इन्द्र कृत महालक्ष्मी स्तोत्र से सम्बन्धित कथा
एक
बार देवराज इन्द्र ऐरावत हाथी
पर चढ़कर जा रहे थे। रास्ते
में दुर्वासा मुनि मिले। मुनि
ने अपने गले में पड़ी माला
निकालकर इन्द्र के ऊपर फेंक
दी। जिसे इन्द्र ने ऐरावत हाथी
को पहना दिया। तीव्र गंध से
आकर्षित होकर ऐरावत हाथी ने
सूंड से माला उतारकर पृथ्वी
पर फेंक दी। यह देखकर दुर्वासा
मुनि ने इन्द्र को शाप देते
हुए कहा–’इन्द्र!
ऐश्वर्य
के घमण्ड में तुमने मेरी दी
हुई माला का आदर नहीं किया।
यह माला नहीं,
लक्ष्मी
का धाम थी। इसलिए तुम्हारे
अधिकार में स्थित तीनों लोकों
की लक्ष्मी शीघ्र ही अदृश्य
हो जाएगी।’
महालक्ष्म्यष्टकम्
इन्द्र उवाच
नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते।
शंखचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।१।।
इन्द्र
बोले–श्रीपीठ पर स्थित और
देवताओं से पूजित होने वाली
हे महामाये। तुम्हें नमस्कार
है। हाथ में शंख,
चक्र
और गदा धारण करने वाली हे
महालक्ष्मि!
तुम्हें
प्रणाम है।
नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयंकरि।
सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।२।।
गरुड़
पर आरुढ़ हो कोलासुर को भय
देने वाली और समस्त पापों को
हरने वाली हे भगवति महालक्ष्मि!
तुम्हें
प्रणाम है।
सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयंकरि।
सर्वदु:खहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।३।।
सब
कुछ जानने वाली,
सबको
वर देने वाली,
समस्त
दुष्टों को भय देने वाली और
सबके दु:खों
को दूर करने वाली,
हे
देवि महालक्ष्मि!
तुम्हें
नमस्कार है।
सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनि।
मन्त्रपूते सदा देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।४।।
सिद्धि,
बुद्धि,
भोग
और मोक्ष देने वाली हे मन्त्रपूत
भगवति महालक्ष्मि!
तुम्हें
सदा प्रणाम है।
आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्तिमहेश्वरि।
योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।५।।
हे
देवि!
हे
आदि-अन्तरहित
आदिशक्ति!
हे
महेश्वरि!
हे
योग से प्रकट हुई भगवति
महालक्ष्मि!
तुम्हें
नमस्कार है।
स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्तिमहोदरे।
महापापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।६।।
हे
देवि!
तुम
स्थूल,
सूक्ष्म
एवं महारौद्ररूपिणी हो,
महाशक्ति
हो,
महोदरा
हो और बड़े-बड़े
पापों का नाश करने वाली हो।
हे देवि महालक्ष्मि!
तुम्हें
नमस्कार है।
पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणी।
परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।७।।
हे
कमल के आसन पर विराजमान
परब्रह्मस्वरूपिणी देवि!
हे
परमेश्वरि!
हे
जगदम्ब!
हे
महालक्ष्मि!
तुम्हें
मेरा प्रणाम है।
श्वेताम्बरधरे देवि नानालंकारभूषिते।
जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।८।।
हे
देवि तुम श्वेत वस्त्र धारण
करने वाली और नाना प्रकार के
आभूषणों से विभूषिता हो।
सम्पूर्ण जगत् में व्याप्त
एवं अखिल लोक को जन्म देने
वाली हो। हे महालक्ष्मि!
तुम्हें
मेरा प्रणाम है।
स्तोत्र पाठ का फल
महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं य: पठेद्भक्तिमान्नर:।
सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा।।९।।
जो
मनुष्य भक्तियुक्त होकर इस
महालक्ष्म्यष्टक स्तोत्र
का सदा पाठ करता है,
वह
सारी सिद्धियों और राजवैभव
को प्राप्त कर सकता है।
एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम्।
द्विकालं य: पठेन्नित्यं धन्यधान्यसमन्वित:।।१०।।
जो
प्रतिदिन एक समय पाठ करता है,
उसके
बड़े-बड़े
पापों का नाश हो जाता है। जो
दो समय पाठ करता है,
वह
धन-धान्य
से सम्पन्न होता है।
त्रिकालं य: पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम्।
महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा।।११।।
जो
प्रतिदिन तीन काल पाठ करता
है उसके महान शत्रुओं का नाश
हो जाता है और उसके ऊपर कल्याणकारिणी
वरदायिनी महालक्ष्मी सदा ही
प्रसन्न होती हैं।
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