Wednesday 30 November 2016

जानिए भगवान विष्णु के दिव्य स्वरुप की महिमा

कौन हैं भगवान विष्णु ?

इस चित्रण में विष्णु को एक इंसान के रूप बनाया गया था, या भारतीय प्राचीन ऋषियों द्वारा मानव जाति के लिए इस परम निरपेक्ष चेतना को समझने के लिए यह चित्र नियोजित किया गया था, । हम इस चित्रण के प्रत्येक पहलू का विश्लेषण करते हैं:

1. विष्णु लीलाधर हैं - सत् (विष्णु -परम निरपेक्ष चेतना) स्वयं को चित् (शिव - कूटस्थ चेतना ) और आनंद (ब्रम्हा - ब्रम्ह चेतना) में विभाजित करता है, अतः विष्णु और शिव दोनो ही पारब्रम्ह हैं, परन्तु अन्तर इतना ही है कि वह सत् जो ब्रम्ह () में निहित होते हुए भी असलंग्न है कूटस्थ कहलाता है और जो ब्रम्ह की परिधि में नही है, परम कहलाता है। सच तो यह है कि सर्वस्व भेदरहित चैतन्य है। सत् ही लीला का जनक है इसलिए पुराणों में विष्णु को लीलाधर का नाम भी मिला है।
2.
विष्णु के दो हाथ आगे एवं दो पीछे - अर्थात परम चेतना द्वारा सम्पन्न द्वंदरूपी कार्य (सृष्टि) प्राकट्य (सामने) और अप्राकट्य (पीछे) भी हैं। यानि अपरा एवं परा प्रकृति।
3.
विष्णु – अर्थात सर्वव्यापी।
4.
विष्णु का नीला वर्ण - अर्थात ब्रम्ह तत्व को धारण करना। इसलिए सनातन धर्म में भगवान का वर्ण नीला या श्यामल दिखाते हैं। नीले, स्याही और बैंगनी रंग की आवृत्तियां इद्रंधनुष में सूक्ष्मतर होती हैं। अतः इनको देवत्व दर्शाने में प्रयोग करते हैं। जीव के भ्रूमध्य में जब नीली ज्योति का दर्शन होने लगता है तो वह सच्चिदानंद के द्वार पर पहुँच जाता है यानि आनंदमय स्वरूप को प्राप्त होता है।
5.
विष्णु का हाथ के सहारे नेत्र मूंदे लेटना - अर्थात परमेश्वर की चेतना ही लीला रचती है। वह चेतना कभी सोती नही है अपितु सदैव जागरुक रहती है।. समस्त दृश्रयम् और अदृश्रयम्, परम निराकार चेतना की ही अभिव्यक्ति है, जो हर साकार रुपी सक्षम अणु में व्याप्त है।
6.
विष्णु का अनन्त या शेषनाग की कुडंलिनी पर लेटना - अर्थात परमेश्वर की चेतना में निहित माया ही अनन्त लीला है एवं उसके ऊपर ही चेतना का वास है। उस परम निराकार चेतना की सृष्टिकल्प-अभिव्यक्ति के अंत में, शेष रहती है मात्र सुप्तावस्थित मायाशक्ति, जो भावी सृष्टिकल्प के प्रतिपादन हेतु, अभिन्न चेतनारूपी कुंडलित स्थितज शक्ति होती है।
7.
शेषनाग का सहस्त्रमुखी फन विष्णु के ऊपर - सृष्टिकल्प के आरम्भ में सहस्त्रमुखी (अनंतरूपी) माया पुनः चैतन्यावस्था में आकर विष्णु का आवरण बन जाती है।
8.
विष्णु का वाहन गरुड़ पक्षी - गरुड़ सर्पों (माया के अनन्तरूप) का विनाशक एवं पक्षीराज माना जाता है। परम निराकार चेतना गरुड़ पर विराजमान होती है, अर्थात जो व्यक्ति मायाजनित अज्ञान का नाश कर, उसके ऊपर ऊँची स्थायी उड़ान भरना सीख जाता है, परम चेतना उसपर सवार रहती है।
9.
विष्णु अर्धनारीश्वर नही हैं - अर्थात परम निरपेक्ष चेतना का अविभाजित सत् एवं अव्यक्त मूर्तरूप।
10.
विष्णु के अवतार होना - अर्थात परम निरपेक्ष और निराकार चेतना साकार रूप में अवतरित होती है। वह परमेश्वर दोनों, निराकार और साकार है।
11.
विष्णु की पत्नी लक्ष्मी - अर्थात चैतन्यता का “स्थिर भाव” जो सृष्टि का पालनकर्ता है और सृष्टि का यथोचित् “पालना” है।
12.
विष्णु का क्षीरसागर के मध्य वैकुंठ में वास करना - परम चेतना से उद्भूत होती है माया और उससे उद्भूत होता है परम ज्योतिर्मय सागर या एैसा समझे कि ज्योतिर्मय सागर ही माया का मूलतः आधार है; प्रकाश ही हर पदार्थ का मूल है।, जिस पर माया प्रकट होती है; और परम एकल चेतना सबके मध्य में, यानि सबकी जनक है। वैकुंठ यानि मन, बुद्धि और अहम् के परे, अचिन्त्य “विषय-विकार रहित” अवस्था।
13.
विष्णु के पीछे वाले हाथों में पंचजन्य शंख और सुदर्शन चक्र - अर्थात पंचप्राण,पंचतन्मंत्र एवं पंचमहाभूत और सुदर्शन चक्र अर्थात सृष्टिचक्र का आनंद स्वरूप। विष्णु के आगे वाले हाथों में गदा और कमल - अर्थात शक्ति और नित्यशुद्ध-आत्मा।
14.
विष्णु के दो कर्णफूल - द्वंद से ही चेतना की प्रकृति सुशोभित है।
15.
विष्णु के गले में बनफूलों की माला और कौस्तुभ - प्रकृति ही चेतना को सुशोभित करती है एवं कौस्तुभ यानि हमारी हर शुद्ध इच्छा परम चेतना के हृदय में वास करती है और उसका पूर्ण होना सुनिश्चित है।
16.
विष्णु के सतांन नही - अर्थात चित् और आनंद, सत् से उत्पन्न नही होते हैं, अपितु सत् के विभाज्य स्वरूप हैं।

क्या है जीवन आनंद का महामंत्र

मार्गदर्शक चिंतन-ऐसी बात नहीं है कि आदमी दुखों व क्लेशों से मुक्त नहीं होना चाहता हो। वह अतिशीघ्र इन द्वंदों से छुटकारा और जीवन में परिवर्तन चाहता है मगर मन बदलकर नहीं मन्त्र बदलकर। आज का आदमी हर समस्या के लिए मन्त्र चाहता है। 
मन्त्र में भी उसे ज्यादा विश्वास नहीं है मगर वो उस समाधान से बचना चाहता है जो यथार्थ में होना चाहिए। आदमी की चतुराई तो देखो, पूरा दिन बैठे- बैठे बात निकालकर निकाल देता है और फिर कहता फिरता है कि हमें कोई ऐसा मन्त्र या दवा बतादे जिससे दिन में भूख लग जाये और रात में नींद आ जाए।
इसका एक ही मन्त्र है और वो है " परिश्रम " उन लोगों से जाकर पता करो जो सड़क पर बड़ी गहरी नीद में सोते हैं। वो किसी मन्त्र का जप नही करते, उनका दिन भर का परिश्रम ही उनकी भूख व नींद का कारण है। अतः मन बदलने का प्रयास करो मन्त्र बदलने का नहीं।

Tuesday 29 November 2016

कैसे मिलता है कर्मों का फल..

*कर्मफल का विधान*.....?
?​​​?​​​ भगवान ने नारद जी से कहा आप भ्रमण करते रहते हो कोई ऐसी घटना बताओ जिसने तम्हे असमंजस मे डाल दिया हो...
नारद जी ने कहा प्रभु
अभी मैं एक जंगल से आ रहा हूं, वहां एक गाय दलदल में फंसी हुई थी। कोई उसे बचाने वाला नहीं था।
तभी एक चोर उधर से गुजरा, गाय को फंसा हुआ देखकर भी नहीं रुका, उलटे उस पर पैर रखकर दलदल लांघकर निकल गया। आगे जाकर उसे सोने की मोहरों से भरी एक थैली मिल गई। थोड़ी देर बाद वहां से एक वृद्ध साधु गुजरा। उसने उस गाय को बचाने की पूरी कोशिश की। पूरे शरीर का जोर लगाकर उस गाय को बचा लिया लेकिन मैंने देखा कि गाय को दलदल से निकालने के बाद वह साधु आगे गया तो एक गड्ढे में गिर गया और उसे चोट लग गयी । भगवान बताइए यह कौन सा न्याय है।
भगवान मुस्कुराए, फिर बोले नारद यह सही ही हुआ। जो चोर गाय पर पैर रखकर भाग गया था, उसकी किस्मत में तो एक खजाना था लेकिन उसके इस पाप के कारण उसे केवल कुछ मोहरे ही मिलीं।
वहीं उस साधु को गड्ढे में इसलिए गिरना पड़ा क्योंकि उसके भाग्य में मृत्यु लिखी थी लेकिन गाय के बचाने के कारण उसके पुण्य बढ़ गए और उसकी मृत्यु एक छोटी सी चोट में बदल गई। इंसान के कर्म से उसका भाग्य तय होता है। अब नारद जी संतुष्ट थे |
*
सार :....*सदा अच्छे कर्म मे ही प्रवत्त रहना चाहिए ।..

कैसा हो गुरु और शिष्य का नाता

मार्गदर्शक चिंतन-

श्रीमद भागवत जी में श्री शुकदेव जी कहते हैं अपनों से श्रेष्ठों की हमारे जीवन निर्माण में भूमिका हो तभी वो बड़े कहलाने लायक हैं।
वे गुरु, गुरु नहीं - पिता, पिता नहीं - माता, माता नहीं - पति, पति नहीं - स्वजन, स्वजन नही और तो और आपके द्वारा पूजित वो देव भी देव नहीं हैं। जो आपके सदगुणों से सींचकर, चरित्र को सुधारकर एक दिन प्रभु नारायण के चरणों में स्थान ना दिला सकें। 
नर सेवा और पर सेवा के अलावा कोई दूसरी सीढ़ी नहीं जो नर से नारायण तक जाती हो। कोई सिखाने वाला और दिखाने वाला हो, वाकी ऊंचाइयों को प्राप्त करना कोई असम्भव काम नहीं है।

हर पत्थर की तकदीर बदल सकती है।
पर शर्त, उसे सलीके से संवारा जाये ॥

Monday 28 November 2016

कैसे मिलेगी हनुमानजी की पूर्ण कृपा

हनुमान जी की पूजा के नियम
जब कोई भक्त हनुमानजी को सच्चे मन से समर्प्रित होकर याद करता है तब आसानी से हनुमानजी उस पर प्रसन्न हो जाते है | हम्हे यह जानना चाहिए की वो अपने भक्तो से क्या क्या चाहते है | जैसा की हम जानते है की वो राम के परम भक्त है और खुद वानर है अत: प्रभु राम की भक्ति और वानरों को गुड चन्ने और केले का प्रसाद खिलाना , अचूक उपाय है हनुमान जी को खुश करने का | इसके अलावा 
हनुमान जी को सिंदूर लगाना भी सबसे प्रिय पूजा के भागो में से एक है |श्री हनुमान पूजा हनुमान जी अपने माँ पिता के बड़े लाडले थे अत: माँ अंजना और पिता केसरी के जयकारे से भी हनुमान अति शिग्रह प्रसन्न होते है |

आइये जाने हनुमानजी को खुश करके उनकी विशेष कृपा पाने के कुछ नियम और कार्य
हर दिन भगवान श्री हनुमान की मूर्ति या तश्वीर या हो सके तो मंदिर में जा कर दर्शन करे |
सुबह जगने के बाद और रात्रि में सोने से पहले हनुमान चालीसा या हनुमान मंत्र का जाप करे |
दिन में कम से कम एक बार हनुमान चालीसा पूर्ण ध्यान और समझते हुए पढ़े |
यदि हो सके तो पूर्ण रूप से मांसारी खाना और मादक पेय त्याग दे |
हनुमान भक्त को श्री राम और माँ जानकी की भी पूजा करनी चाहिए |
हो सके तो मंगलवार और शनिवार को हनुमान जी का व्रत करना चाहिए |
हर मंगलवार या शनिवार को हनुमान मंदिर में बालाजी की लाल मूर्ति पर सिंदूर 
चढ़ाना चाहिए उसके बाद जनेऊ पहनानी चाहिए फिर उन्हें गुड चन्ना या केले का प्रसाद चढ़ा कर हो सके तो वानरों को यह प्रसाद खिलाना चाहिए |


इस तरह इन बातो का ध्यान और पालन करते हुए आप बालाजी महाराज की विशेष कृपा के पात्र बन सकते है | समर्पण और धैर्य ही उचित कुंजी है हनुमान कृपा द्वार खोलने के लिए |

कैसे दूर होगा भविष्य का भय...

मार्गदर्शक चिंतन-भविष्य का भय सदैव केवल उनके लिए सताता है जो वर्तमान में भी संतुष्ट नहीं। जिस व्यक्ति को वर्तमान में संतुष्ट रहना आ गया फिर ऐसा कोई दूसरा कारण ही नहीं कि उसे भविष्य की चिंता करनी पड़े।
हमारे जीवन की सारी प्रतिस्पर्धाएँ कवेल वर्तमान जीवन के प्रति हमारी असंतुष्टि को ही दर्शाती हैं। व्यक्ति जितना संतोषी होगा उसकी प्रतिस्पर्धाएँ भी उतनी ही कम होंगी। अक्सर लोग़ भविष्य को सुखमय बनाने के पीछे वर्तमान को दुखमय बना देते हैं।
लेकिन तब वो जीवन के इस शाश्वत नियम को भी भूल जाते हैं कि भविष्य कभी नहीं आता, वह जब भी आयेगा वर्तमान बनकर ही आयेगा। याद रखना जिया सदैव वर्तमान में ही जाता है। अत: वर्तमान के भाव मे जियो ताकि भविष्य का भय मिट सके।

Sunday 27 November 2016

जानिए किस रुद्राक्ष से मिलेगी आपको शिव कृपा..

.. रुद्राक्ष क्या है ... एवं, इसके
क्या महत्व हैं...?

जैसा कि हम सभी जानते हैंs कि... रुद्राक्ष के बिना भगवान् भोलेनाथ की चर्चा अधूरी ही जान पड़ती है... परन्तु, दरअसल रुद्राक्ष है क्या ...इसके बारे में बहुत कम लोगों को ही ज्ञात है...!रुद्राक्ष दो शब्दों से मिलकर बना है ..... और, इसका संधिविच्छेद
होता है.... रुद्र+अक्ष...!अर्थात .... रुद्र अर्थात भगवान शंकर व अक्ष अर्थात आंसू....
मान्यता है कि.....भगवान शिव के नेत्रों से जल की कुछ
बूंदें भूमि पर गिरने से महान रुद्राक्ष अवतरित हुआ और भगवान
शिव की आज्ञा पाकर वृक्षों पर रुद्राक्ष फलों के रूप में
प्रकट हो गए।
यह माना जाता है कि.... रुद्राक्ष अड़तीस प्रकार के
हैं, जिनमें कत्थई वाले बारह प्रकार के
रुद्राक्षों की उत्पत्ति सूर्य के नेत्रों से, श्वेतवर्ण के
सोलह प्रकार के रुद्राक्षों की उत्पत्ति चन्द्रमा के
नेत्रों से तथा कृष्ण वर्ण वाले दस प्रकार के
रुद्राक्षों की उत्पत्ति अग्नि के नेत्रों से
होती है।
आइए जानें कि ....रुद्राक्षों के दिव्य तेज से आप कैसे दुखों से
मुक्ति पा कर सुखमय जीवन जीते हुए शिव
कृपा पा सकते हैं
हमारे धर्म ग्रथ कहते हैं कि ....यथा च दृश्यते लोके रुद्राक्ष: फलद: शुभ:
न तथा दृश्यते अन्या च मालिका परमेश्वरि:।।
अर्थात संसार में रुद्राक्ष की माला की तरह
अन्य कोई दूसरी माला फलदायक और शुभ
नहीं है।
उसी तरह....श्रीमद्-देवीभागवत में लिखा है :रुद्राक्षधारणाद्य श्रेष्ठं न किञ्चिदपि विद्यते।
अर्थात संसार में रुद्राक्ष धारण से बढ़कर श्रेष्ठ कोई
दूसरी वस्तु नहीं है।
ध्यान रहे कि ....रुद्राक्ष
की दो जातियां होती हैं- रुद्राक्ष एवं
भद्राक्ष
रुद्राक्ष के मध्य में भद्राक्ष धारण करना महान फलदायक होता है।
भिन्न-भिन्न संख्या में पहनी जाने
वाली रुद्राक्ष की माला निम्न प्रकार से फल
प्रदान करने में सहायक होती है जो इस प्रकार है
1
रुद्राक्ष के सौ मनकों की माला धारण करने से मोक्ष
की प्राप्ति होती है।
2
रुद्राक्ष के एक सौ आठ मनकों को धारण करने से समस्त कार्यों में
सफलता प्राप्त होती है। इस माला को धारण करने
वाला अपनी पीढ़ियों का उद्घार करता है।
3
रुद्राक्ष के एक सौ चालीस
मनकों की माला धारण करने से साहस, पराक्रम और
उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
4
रुद्राक्ष के बत्तीस दानों की माला धारण
करने से धन, संपत्ति एवं आयु में वृद्धि होती है।
5
रुद्राक्ष के 26 मनकों की माला को सर पर धारण
करना चाहिए।
6
रुद्राक्ष के 50 दानों की माला कंठ में धारण करना शुभ
होता है।
7
रुद्राक्ष के पंद्रह मनकों की माला मंत्र जप तंत्र
सिद्धि जैसे कार्यों के लिए उपयोगी होती है।
8
रुद्राक्ष के सोलह मनकों की माला को हाथों में धारण
करना चाहिए।
9
रुद्राक्ष के बारह दानों को मणि बंध में धारण करना शुभदायक
होता है।
10
रुद्राक्ष के 108, 50 और 27 दानों की माला धारण
करने या जाप करने से पुण्य
की प्राप्ति होती है।
अब अगर हम आस्था से इतर ....इसकी वैज्ञानिकता की बात करें तो....निश्चय ही आपको खुद के हिन्दू होने एवं अपने धर्म
ग्रंथों पर गर्व होगा....क्योंकि... वैज्ञानिक परीक्षणों से ज्ञात हुआ है कि...रुद्राक्ष में ""प्रभावशाली विद्युत् -चुंबकीय
तत्व ( Electro Magnatic Property ) होते
हैं ...जो अनियमित ह्रदय को नियमित करने में
काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.... और, इसके कोई
विपरीत प्रभाव भी नहीं है...!शायद इसीलिए.... अगल-अगल अवस्था में , रुद्राक्ष के
अलग -अलग मनका निर्धारित किये गए हैं.... साथ
ही.... रुद्राक्ष को .... *अंगूठी में लगा कर*पहनने अथवा *रात्रि में शयन करते समय धारण करने से निषेध*किया गया है...!खैर....वैज्ञानिकता से परिपूर्ण आस्था को आगे बढ़ाते हुए ... रुद्राक्ष के
बारे निःसंकोच कहा जा सकता है कि....जो व्यक्ति पवित्र और शुद्ध मन से भगवान शंकर
की आराधना करके रुद्राक्ष धारण करता है, उसके
सभी कष्ट दूर हो जाते है..
और, मान्यता तो यहाँ तक है कि..... इसके दर्शन मात्र से
ही पापों का क्षय हो जाता है.....
इसीलिए , जिस घर में रुद्राक्ष
की पूजा की जाती है,वहां लक्ष्मी जी का वास रहता है...
रुद्राक्ष...... भगवान शंकर की एक अमूल्य और
अदभुत देन है और, यह भगवान् भोलेनाथ को अत्यंत प्रिय है.....इसीलिए , इसके स्पर्श तथा इसके द्वारा जप करने से
ही समस्त पाप से निवृत्त हो जाते है और लौकिक-परलौकिक एवं भौतिक सुख
की प्राप्ति होती है...
.

क्या है जीवन में भोजन का महत्व..

मार्गदर्शक चिंतन-केवल स्वाद के लिए खाना मूर्खता, जीने के लिए खाना आवश्यकता और आत्मोन्नति के लिए खाना ही साधना है। माना कि भोजन के अभाव में जीवन जीने की कल्पना व्यर्थ है लेकिन केवल भोजन को ही जीवन मान लेना जीवन के साथ अनर्थ है। 
सही अर्थों में भोजन बना रहे इसलिए जीवन नहीं, अपितु जीवन बना रहे इसलिए भोजन है। शास्त्र कहते हैं - जिस दिन हमारे जीवन जीने का उद्देश्य परसुख से स्वसुख हो जाता है उसी दिन हम जीवन जीने के वास्तविक अर्थ से भी भटक जाते हैं।
अतः केवल स्वाद के लिए खाना भोजन को व्यर्थ बर्बाद करना, जीने के लिए खाना भोजन का उपयोग करना व पर सेवा की इच्छा रखते हुए अपने कल्याण के लिए खाना भोजन का सदुपयोग है।

Saturday 26 November 2016

भगवान कृष्ण ने झूठी पत्तल उठाकर क्या दिया संदेश

सेवा का आदर्श
एक बार युधिष्ठिर ने राजसूर्य यज्ञ करवाया। बहुत-से लोगों को आमंत्रित किया। भगवान श्रीकृष्ण भी आए। उन्होंने युधिष्ठिर से कहा - "सब लोग काम कर रहे हैं। मुझे भी कोई काम दे दीजिए।" युधिष्ठिर ने उनकी ओर देखकर कहा - "आपके लिए हमारे पास कोई काम नहीं है।श्रीकृष्ण बोले - "लेकिन मैं बेकार नहीं रहना चाहता। मुझे कुछ--कुछ काम तो दे ही दीजिए।"युधिष्ठिर ने कहा - "मेरे पास तो कोई काम है नहीं। यदि आपको कुछ करना ही हो तो अपना काम आप स्वयं तलाश कर लीजिए।"श्रीकृष्ण बोले - "ठीक है मैंने अपना काम खोज लिया।"युधिष्ठिर ने उत्सुकता से पूछा - "क्या काम खोज लिया?"कृष्ण ने कहा - "मैं सबकी जूठी पत्तलें उठाऊंगा और सफाई करूंगा।" यह सुनकर युधिष्ठिर अवाक् रह गए। कृष्ण ने वही किया। सेवा से बढ़कर और क्या हो सकता है।