उद्देश्यों
की पवित्रता से मिलती है
महानता..
कान्यकुब्ज देश के राजा कौशिक एक दिन अपने दल-बल समेत आखेट के लिए वन की ओर गए। लौटते समय वशिष्ट ऋषि के आश्रम में कौशिक का ठहरना हुआ। राजा और उनकी विशाल सेना की वशिष्ठ ने भरपूर आवभगत की। कौशिक को आश्चर्य हुआ कि इन घने जंगल में एक त्यागी- तपस्वी ऋषि के पास इतने साधन कहां से आए। पूछने पर वशिष्ट ने अपनी नंदिनी गाय के बारे में बताया। हर इच्छा की पूर्ति करने वाली ये गाय की अधिक उपयोगिता है, इसलिए आप इसे मुझे दे दीजिए और बदले में जो मांग लीजिए। वशिष्ट ने इंकार कर दिया। कौशिक अपनी सेना के बल पर नंदिनी को छीनने की योजना बनाने लगे। ये देख नंदिनी ने अपनी सेना खड़ी की और कौशिक को हरा दिया। पराजय से अपमानित कौशिक राज-पाट त्यागकर तपस्या करने लगे। घोर तप के बाद उन्होंने भगवान शंकर से अग्नि अस्त्र पाया और फिर वशिष्ट के आश्रम पर हमला कर दिया। इस बार ऋषि के ब्रह्मदंड ने उसे हराया।
भगवान शंकर के दिए अस्त्र को भी नाकाम करने वाले वशिष्ठ की श्रेष्ठता का तब कौशिश को अहसास हुआ। वे पुन: तपस्या करने चल पड़े। उन्होंने घोर तप कर अपनी वासना और क्रोध पर विजय प्राप्त की और सात्विक गुणों को प्राप्त किया। कौशिक में आए इस सकारात्मक बदलाव से प्रसन्न होकर वशिष्ट ने उन्हें ब्रह्मर्षि की उपाधि से विभूषित किया। यही राजा आगे चलकर महार्षि विश्वामित्र कहलाए और त्रेतायुग में भगवान श्रीराम व लक्ष्मण के गुरु बने।
शिक्षा- जब मन निर्मल हो और साधना के उद्देश्य पवित्र हो तो इंसान महामानव बन जाता है। उसका नाम इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज होता है और वे आदर्श की एक मिसाउद्देश्यों की पवित्रता से मिलती है महानता
कान्यकुब्ज देश के राजा कौशिक एक दिन अपने दल-बल समेत आखेट के लिए वन की ओर गए। लौटते समय वशिष्ट ऋषि के आश्रम में कौशिक का ठहरना हुआ। राजा और उनकी विशाल सेना की वशिष्ठ ने भरपूर आवभगत की। कौशिक को आश्चर्य हुआ कि इन घने जंगल में एक त्यागी- तपस्वी ऋषि के पास इतने साधन कहां से आए। पूछने पर वशिष्ट ने अपनी नंदिनी गाय के बारे में बताया। हर इच्छा की पूर्ति करने वाली ये गाय की अधिक उपयोगिता है, इसलिए आप इसे मुझे दे दीजिए और बदले में जो मांग लीजिए। वशिष्ट ने इंकार कर दिया। कौशिक अपनी सेना के बल पर नंदिनी को छीनने की योजना बनाने लगे। ये देख नंदिनी ने अपनी सेना खड़ी की और कौशिक को हरा दिया। पराजय से अपमानित कौशिक राज-पाट त्यागकर तपस्या करने लगे। घोर तप के बाद उन्होंने भगवान शंकर से अग्नि अस्त्र पाया और फिर वशिष्ट के आश्रम पर हमला कर दिया। इस बार ऋषि के ब्रह्मदंड ने उसे हराया।
भगवान शंकर के दिए अस्त्र को भी नाकाम करने वाले वशिष्ठ की श्रेष्ठता का तब कौशिश को अहसास हुआ। वे पुन: तपस्या करने चल पड़े। उन्होंने घोर तप कर अपनी वासना और क्रोध पर विजय प्राप्त की और सात्विक गुणों को प्राप्त किया। कौशिक में आए इस सकारात्मक बदलाव से प्रसन्न होकर वशिष्ट ने उन्हें ब्रह्मर्षि की उपाधि से विभूषित किया। यही राजा आगे चलकर महार्षि विश्वामित्र कहलाए और त्रेतायुग में भगवान श्रीराम व लक्ष्मण के गुरु बने।
शिक्षा- जब मन निर्मल हो और साधना के उद्देश्य पवित्र हो तो इंसान महामानव बन जाता है। उसका नाम इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज होता है और वे आदर्श की एक मिसाल बन जाता है।हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे,हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
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