Thursday 22 December 2016

किस से रखें अपने भले की आशा...

मार्गदर्शक चिंतन-

आशा दुखदायी अवश्य होती है मगर वो जो सिर्फ दूसरों से रखी जाती है। अथवा वो जो अपनी सामर्थ्य से ज्यादा रखी जाती है और इससे भी ज्यादा दुखदायी निराशा होती है जो कभी कभी स्वयं से हो जाती है।
दूसरों से ज्यादा आश रखोगे तो जीवन पल-पल कष्टदायी हो जायेगा और अगर स्वयं से ही निराश हो जाओगे तो जीवन जीने का सारा रस चला जायेगा। याद रखना सीढियाँ तो दूसरों के सहारे भी चढ़ी जा सकती हैं मगर ऊचाईयाँ तक पहुँचाने वाली सीढियाँ स्वयं ही चढ़नी पड़ेंगी।
वहाँ आप किसी से आशा नहीं रख सकते कि कोई आपका हाथ पकड़ ले, कोई सहायता कर दे। स्वयं से कभी निराश मत होना। स्वयं पर भरोसा रखकर निरंतर समर्पण से लगे रहोगे तो एक दिन लक्ष्य को पाने में जरूर सफल हो जाओगे।

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