मार्गदर्शक चिंतन-
जहाँ पर दूसरों के साथ छल-कपट का व्यवहार किया जाता हो। जहाँ पर दूसरों को गिराने की योजनायें बनाई जाती हों और जहाँ पर दूसरों की उन्नति से ईर्ष्या की जाती हो, वह स्थान नरक नहीं तो और क्या है ? नरक अर्थात वह वातावरण जिसका निर्माण हमारी दुष्प्रवृत्तियों व हमारे दुर्गुणों द्वारा होता है। स्वर्ग अर्थात वह स्थान जिसका निर्माण हमारी सत्प्रवृत्तियों व हमारे सद आचरण द्वारा किया जाता है।
मरने के बाद हम कहाँ जायेंगे यह महत्वपूर्ण नहीं है अपितु हम जीते जी कहाँ जा रहे हैं ये महत्वपूर्ण है। मरने के बाद स्वर्ग की प्राप्ति जीवन की उपलब्धि हो ना हो मगर जीते जी स्वर्ग जैसे वातावरण का निर्माण कर लेना अवश्य जीवन की उपलब्धि है।
No comments:
Post a Comment