श्री
शुकदेवजी राजा परीक्षित्
से कहते हैं:-
सकृन्मनः
कृष्णापदारविन्दयोर्निवेशितं
तद्गुणरागि यैरिह।
न ते यमं पाशभृतश्च तद्भटान् स्वप्नेऽपि पश्यन्ति हि चीर्णनिष्कृताः॥
न ते यमं पाशभृतश्च तद्भटान् स्वप्नेऽपि पश्यन्ति हि चीर्णनिष्कृताः॥
जो
मनुष्य केवल एक बार श्रीकृष्ण
के गुणों में प्रेम करने वाले
अपने चित्त को श्रीकृष्ण के
चरण कमलों में लगा देते हैं,
वे
पापों से छूट जाते हैं,
फिर
उन्हें पाश हाथ में लिए हुए
यमदूतों के दर्शन स्वप्न में
भी नहीं होते।
अविस्मृतिः
कृष्णपदारविन्दयोः क्षिणोत्यभद्रणि
शमं तनोति च।
सत्वस्य शुद्धिं परमात्मभक्तिं ज्ञानं च विज्ञानविरागयुक्तम्॥
सत्वस्य शुद्धिं परमात्मभक्तिं ज्ञानं च विज्ञानविरागयुक्तम्॥
श्रीकृष्ण
के चरण कमलों का स्मरण सदा बना
रहे तो उसी से पापों का नाश,
कल्याण
की प्राप्ति,
अन्तः
करण की शुद्धि,
परमात्मा
की भक्ति और वैराग्ययुक्त
ज्ञान-विज्ञान
की प्राप्ति आप ही हो जाती है।
पुंसां
कलिकृतान्दोषान्द्रव्यदेशात्मसंभवान्।
सर्वान्हरित चित्तस्थो भगवान्पुरुषोत्तमः॥
सर्वान्हरित चित्तस्थो भगवान्पुरुषोत्तमः॥
भगवान
पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण जब
चित्त में विराजते हैं,
तब
उनके प्रभाव से कलियुग के सारे
पाप और द्रव्य,
देश
तथा आत्मा के दोष नष्ट हो जाते
हैं।
शय्यासनाटनालाप्रीडास्नानादिकर्मसु।
न विदुः सन्तमात्मानं वृष्णयः कृष्णचेतसः॥
न विदुः सन्तमात्मानं वृष्णयः कृष्णचेतसः॥
श्रीकृष्ण
को अपना सर्वस्व समझने वाले
भक्त श्रीकृष्ण में इतने तन्मय
रहते थे कि सोते,
बैठते,
घूमते,
फिरते,
बातचीत
करते,
खेलते,
स्नान
करते और भोजन आदि करते समय
उन्हें अपनी सुधि ही नहीं रहती
थी।
वैरेण
यं नृपतयः शिशुपालपौण्ड्र-
शाल्वादयो
गतिविलासविलोकनाद्यैः।
ध्यायन्त आकृतधियः शयनासनादौ तत्साम्यमापुरनुरक्तधियां पुनः किम्॥
ध्यायन्त आकृतधियः शयनासनादौ तत्साम्यमापुरनुरक्तधियां पुनः किम्॥
जब
शिशुपाल,
शाल्व
और पौण्ड्रक आदि राजा वैरभाव
से ही खाते,
पीते,
सोते,
उठते,
बैठते
हर वक्त श्री हरि की चाल,
उनकी
चितवन आदि का चिन्तन करने के
कारण मुक्त हो गए,
तो
फिर जिनका चित्त श्री कृष्ण
में अनन्य भाव से लग रहा है,
उन
विरक्त भक्तों के मुक्त होने
में तो संदेह ही क्या है?
एनः
पूर्वकृतं यत्तद्राजानः
कृष्णवैरिणः।
जहुस्त्वन्ते तदात्मानः कीटः पेशस्कृतो यथा॥
जहुस्त्वन्ते तदात्मानः कीटः पेशस्कृतो यथा॥
श्रीकृष्ण
से द्वेष करने वाले समस्त
नरपतिगण अन्त में श्री भगवान
के स्मरण के प्रभाव से पूर्व
संचित पापों को नष्ट कर वैसे
ही भगवद्रूप हो जाते हैं,
जैसे
पेशस्कृत के ध्यान से कीड़ा
तद्रूप हो जाता है,
अतएव
श्रीकृष्ण का स्मरण सदा करते
रहना चाहिए।
No comments:
Post a Comment