मार्गदर्शक चिंतन-
पुण्य कर्मों का अर्थ केवल वे कर्म नहीं जिनसे आपको लाभ होता हो अपितु वो कर्म हैं जिनसे दूसरों का भला भी होता है। पुन्य कर्मों का करने का उद्देश्य मरने के बाद स्वर्ग को प्राप्त करना ही नहीं अपितु जीते जी जीवन को स्वर्ग बनाना भी है।
स्वर्ग के लिए पुन्य करना बुरा नहीं मगर परमार्थ के लिए पुण्य करना ज्यादा श्रेष्ठ है। शुभ भावना के साथ किया गया प्रत्येक कर्म ही पुण्य है और अशुभ भावना के साथ किया गया कर्म पाप है।
जो कर्म भगवान को प्रिय होते हैं, वही कर्म पुण्य भी होते हैं। हमारे किसी आचरण से, व्यवहार से, वक्तव्य से या किसी अन्य प्रकार से कोई दुखी ना हो। हमारा जीवन दूसरों के जीवन में समाधान बने समस्या नहीं, यही चिन्तन पुन्य है और परमार्थ का मार्ग भी है।
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