Thursday 22 December 2016

जानिए भगवान कृष्ण के जन्म का रहस्य..

भगवान कृष्ण के जन्म के समय किस देवता ने कहां और किस रुप में लिया जन्म..

किस देवता का कहां और किस रूप में जन्म

ब्रह्माजी ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा–भूतल पर किसके लिए कहां निवासस्थान होगा? कौन देवता किस रूप में अवतार लेगा और वह किस नाम से ख्याति प्राप्त करेगा–यह बताइए? भगवान श्रीकृष्ण ने कहा–’कश्यप’ के अंश से ‘वसुदेव’ और ‘अदिति’ के अंश से ‘देवकी’ होंगी। मैं स्वयं वसुदेव और देवकी के यहां प्रकट होऊंगा। श्रीमद्भागवत के अनुसार–वे साक्षात् परम पुरुष भगवान वसुदेव के घर प्रकट होंगे, उनकी सेवा के लिए तथा उनके साथ ही उनकी प्रियतमा (श्रीराधाजी) की सेवा के लिए देवांगनाएं भी वहां जन्म धारण करें।
वसुदेवगृहे साक्षाद् भगवान् पुरुष: पर:
जनिष्यते तत्प्रियार्थं सम्भवन्तु सुरस्रिय:।।
भगवान श्रीकृष्ण ने योगमाया को आदेश दिया–मेरे कलास्वरूप ये ‘शेष’ (भगवान अनन्त) देवकी के गर्भ से आकृष्ट हो रोहिणी के गर्भ से जन्म लेंगे। तुम देवकी के उस गर्भ को ले जाकर रोहिणी के उदर में रख देना। उस गर्भ का संकर्षण होने से उनका नाम ‘संकर्षण’ होगा।
वसु ‘द्रोण’ व्रज में ‘नन्द’ होंगे और इनकी पत्नी ‘धरादेवी’ ‘यशोदा’ कहलाएंगी। ‘सुचन्द्र’ ‘वृषभानु’बनेंगे तथा इनकी पत्नी ‘कलावती’ पृथ्वी पर ‘कीर्ति’ के नाम से प्रसिद्ध होंगी; इन्हीं के यहां‘श्रीराधा’ का प्राकट्य होगा।
भगवान श्रीकृष्ण के सखा ‘सुबल’ और ‘श्रीदामा’ नन्द और उपनन्द के घर जन्म धारण करेंगे। इनके अलावा श्रीकृष्ण के ‘स्तोककृष्ण’, ‘अर्जुन’ एवं ‘अंशु’ आदि सखा नौ नन्दों के यहां प्रकट होगें। व्रजमण्डल में जो छ: वृषभानु हैं, उनके घर में श्रीकृष्ण के सखा–विशाल, ऋषभ, तेजस्वी और वरूथप अवतीर्ण होंगे।
गर्गसंहिता में वर्णन आता है कि गोलोकधाम में भगवान श्रीकृष्ण के निकुंजद्वार पर जो नौ गोप हाथ नें बेंत लिए पहरा देते थे, वे ही नौ गोप भगवल्लीला में सहयोग देने के लिए व्रज में ‘नौ नन्द’के रूप में अवतरित हुए। इसी प्रकार गोलोकधाम में निकुंजवन में जो गायों का पालन करते थे, वे भी लीला में सहयोग देने के लिए ‘उपनन्द’ के रूप में अवतरित हुए। व्रजमण्डल के सबसे बड़े माननीय गोप पर्जन्यजी के नौ पुत्र हुए–धरानन्द, ध्रुवनन्द, उपनन्द, अभिनन्द, नन्द, सुनन्द, कर्मानन्द, धर्मानन्द और बल्लभ–वे ही नौ नन्द हैं। नौ नन्दों में श्रीनन्दरायजी की विशेष महिमा है।

नन्द, उपनन्द और वृषभानु

ब्रह्माजी ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा–’नन्द’, ‘उपनन्द’ तथा ‘वृषभानु’ किसको कहते हैं? भगवान श्रीकृष्ण ने कहा–नौ लाख गायों के स्वामी को ‘नन्द’ कहा जाता है। पांच लाख गौओं का स्वामी ‘उपनन्द’ पद को प्राप्त करता है। ‘वृषभानु’ उसे कहते हैं जिसके अधिकार में दस लाख गौएं रहतीं हैं। जिनके यहां एक करोड़ गौओं की रक्षा होती है, वह ‘नन्दराज’ कहलाता है। पचास लाख गौओं के स्वामी को ‘वृषभानुवर’ कहते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण ने दिव्यरूपधारिणी पार्वती’ से कहा–तुम सृष्टि-संहारकारिणी महामाया हो, तुम अंशरूप से नन्द के व्रज में जाओ और वहां नन्द के घर यशोदा के गर्भ से जन्म धारण करो। मानवगण पृथ्वी पर नगर-नगर में में तुम्हारी पूजा करेंगे। पृथ्वी पर प्रकट होते ही मेरे पिता वसुदेव यशोदा के सूतिकागृह में मुझे स्थापित कर तुम्हें ले आएंगे और कंस के स्पर्श करते ही तुम पुन: शिव के समीप चली जाओगी और मैं भूतल का भार उतारकर अपने धाम में आ जाऊंगा।

भगवान श्रीकृष्ण की पटरानियां

भगवान ने साक्षात ‘लक्ष्मी’ से कहा–तुम नाना रत्नों से सम्पन्न राजा भीष्मक के राजभवन में जाओ और वहां विदर्भदेश की महारानी के उदर से जन्म धारण करो। मैं स्वयं कुण्डिनपुर में जाकर तुम्हारा पाणिग्रहण करूंगा, इनका नाम ‘रुक्मिणी’ होगा।
पार्वती अपने आधे अंश से जाम्बवती’ के रूप में प्रकट होंगी। यज्ञपुरुष की पत्नी ‘दक्षिणा’‘लक्ष्मणा’ होंगी। गोलोक में जो ‘विरजा’ नाम की नदी है, वही ‘कालिन्दी’ के नाम वाली पटरानी होंगी। देवी ‘लज्जा’ ‘भद्रा’ बनेंगी। समस्त पापों का नाश करने वाली ‘गंगा’ ‘मित्रविन्दा’ नाम धारण करेंगी। वेदमाता सावित्री नग्नजित् की पुत्री सत्या के नाम से प्रसिद्ध होंगी। वसुधा सत्यभामाहोंगी। पूर्व समय में मेरे जितने अवतार हो चुके हैं, उनकी रानियां रमा का अंश रहीं हैं। वे भी मेरी रानियों में सोलह हजार की संख्या में प्रकट होंगी।
सरस्वती शैव्या होंगी। सूर्यपत्नी संज्ञा रत्नमाला और स्वाहा एक अंश से सुशीला के रूप में अवतीर्ण होंगी। छ: मुख वाले स्कन्द (कार्तिकेय) से भगवान श्रीकृष्ण ने जाम्बवती के गर्भ से जन्म ग्रहण करने को कहा। ‘कामदेव’ रुक्मिणी’ के गर्भ से ‘प्रद्युम्न’ रूप में उत्पन्न होंगे। कामदेव की पत्नी रति शम्बरासुर के घर में मायावती होंगी।
प्रद्युम्न के घर ब्रह्मा का अवतार होगा जो ‘अनिरुद्ध’ कहे जाएंगे। भारती शोणितपुर में जाकर बाणासुर की पुत्री होगी।
धर्मराज’ पाण्डुपुत्र ‘युधिष्ठिर’ होंगे। ‘वायु’ के अंश से ‘भीमसेन’ का और ‘इन्द्र’ के अंश से ‘अर्जुन’का प्रादुर्भाव होगा। ‘अश्विनीकुमारों’ के अंश से ‘नकुल और सहदेव’ प्रकट होंगे। ‘सूर्य’ का अंश‘कर्ण’ होगा और साक्षात् ‘यमराज’ ‘विदुर’ होंगे। ‘कलि’ का अंश ‘दुर्योधन’, ‘समुद्र’ (क्षीरसागर) का अंश ‘शान्तनु’, ‘शंकर’ का अंश ‘अश्वत्थामा’ और ‘अग्नि’ का अंश ‘द्रोण’ होंगे। ‘चन्द्रमा’ का अंश ‘अभिमन्यु’ के रूप में प्रकट होगा। ‘वसु देवता’ ‘भीष्म’ होंगे। ‘दिवोदास’ ‘शल’ के रूप में एवं ‘भग’ नाम के सूर्य ‘धृतराष्ट्र’ के रूप में अवतीर्ण होंगे। ‘पूषा’ नाम के देवता ‘पाण्डु’ होंगे। ‘कमला’ के अंश से ‘द्रौपदी’ होंगी, जिनका प्रादुर्भाव यज्ञकुण्ड से होगा। ‘शतरूपा’ के अंश से ‘सुभद्रा’ होंगी जिनका जन्म देवकी के गर्भ से होगा। ‘अग्नि’ के अंश से ‘धृष्टद्युम्न’ का जन्म होगा।
प्राण’ नामक वसु ‘शूरसेन’ और ध्रुव नामक वसु ‘देवक’ होंगे। ’वसु’ नाम के वसु ‘उद्धव’ के रूप में होंगे। ‘दक्ष प्रजापति’ ‘अक्रूर’ के रूप में अवतार लेंगे। ‘कुबेर’ ‘हृदीक’ नाम से, जल के देवता ‘वरुण’ ‘कृतवर्मा’ नाम से और ‘मरुत देवता’ ‘उग्रसेन’ के नाम से प्रसिद्ध होंगे। ‘राजा अम्बरीष’‘युयुधान’ और ‘भक्त प्रह्लाद’ ‘सात्यकि’ के नाम से प्रकट होंगे। समस्त देवताओं के अंश भूतल पर जाएं, वे राजकुमार होकर युद्ध में मेरे सहायक बनेंगे। इस प्रकार तुम सब देवता मेरी आज्ञा के अनुसार अपने अंशों और स्रियों के साथ यदुवंशी, कुरुवंशी व अन्य वंशों के राजाओं के कुल में प्रकट होओ।

श्रुतियों व विभिन्न प्रकार की स्त्रियों का व्रज में गोपीरूप में अवतरण

भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रह्माजी से कहा–गोलोकवासिनी गोपियां–जो यहां द्वारपालिका हैं, श्रृंगार साधनों की व्यवस्था करने वाली हैं, गोलोक के श्रीवृन्दावन की देखरेख करने वाली व गिरिगोवर्धन पर रहने वाली, कुंजवन को सजाने वाली, निकुंज में रहने वाली आद–इन सभी गोपियों को व्रज में पधारना होगा। इनके अतिरिक्त अनेक युगों में जो श्रुतियां, दण्डकवन के ऋषि-मुनि, अयोध्या की महिलाएं, यज्ञ में स्थापित की हुई सीता, जनकपुर और कोसलदेश की निवासिनी स्त्रियां तथा पुलिन्दकन्याएं, जिन्हें मैं वर दे चुका हूं, वे सब मेरे प्रिय व्रज में पधारेंगी। ब्रह्माजी ने भगवान से पूछा कि इन स्त्रियों ने ऐसा कौन-सा कार्य किया जिसके कारण ये व्रज में निवास करेंगी जो योगियों के लिए भी दुर्लभ है। तब भगवान ने सभी गोपियों के पुण्य और उन्हें मिले वरदानों का ब्रह्माजी को वर्णन किया
श्रुतिरूपा गोपी–पूर्वकाल में श्रुतियों ने श्वेतद्वीप में जाकर परमब्रह्म का मधुर स्वर में स्तवन किया। भगवान ने प्रसन्न होकर उनसे वर मांगने को कहा। श्रुतियों ने कहा–ज्ञानीपुरुष जिसे केवल ‘आनन्दमात्र’ बताते हैं, अपने उसी रूप का हमें दर्शन कराइए। भगवान ने उन्हें अपने दिव्य गोलोकधाम के दर्शन कराकर दूसरा और कोई वर मांगने को कहा। श्रुतियों ने कहा–आपके करोड़ों कामदेव के समान मनोहर रूप को देखकर हमारे अन्दर कामिनी-भाव आ गया है, अत: हम आपका संग पाकर आपकी सेवा करना चाहती है। तब भगवान ने कहा–सारस्वत-कल्प बीतने पर सभी श्रुतियां व्रज में गोपियां होओगी। भूमण्डल पर भारतवर्ष में मेरे माथुरमण्डल के अन्तर्गत वृन्दावन में रासमण्डल के भीतर मैं तुम्हारा प्रियतम बनूंगा। तुम्हारा मेरे प्रति सुदृढ़ प्रेम होगा, जो सब प्रेमों से बढ़कर है।
जनकपुर की स्त्रियां रूपी गोपी–त्रेतायुग में श्रीराम ने सीताजी के स्वयंवर में जाकर धनुष तोड़ा और जनकनन्दिनी सीताजी से विवाह किया। उस अवसर पर जनकपुर की स्त्रियां श्रीराम को देखकर प्रेमविह्वल हो गयीं और उन्होंने एकान्त में श्रीराम से प्रार्थना की कि आप हमारे परम प्रियतम हो जाएं। तब श्रीराम ने कहा–द्वापर के अंत में मैं तुम्हारी इच्छा पूरी करुंगा, तुम लोग श्रद्धा-भक्ति के साथ तीर्थ, दान, जप, सदाचार का पालन करती रहो। तुम्हें व्रज में गोपी होने का सुअवसर प्राप्त होगा।
कोसलप्रदेश व अयोध्या की स्त्रियां रूपी गोपी–श्रीसीता से विवाह के बाद जब श्रीराम अयोध्या लौट रहे थे तब कोसलप्रदेश की स्त्रियों ने भी राजपथ से जाते हुए श्रीराम को देखा और उनकी सुन्दरता पर मोहित होकर मन-ही-मन उन्हें पति के रूप में वरण कर लिया। सर्वज्ञ श्रीराम ने भी उन्हें मन-ही-मन वर देते हुए कहा–’तुम सभी व्रज में गोपियां होओगी और उस समय मैं तुम्हारी इच्छा पूर्ण करुंगा।’ श्रीराम श्रीसीताजी के साथ अयोध्या पधारे तो वहां की स्त्रियां भी सरयूतट पर श्रीराम के प्रेम में विह्वल होकर तपस्या करने लगीं, तब उन्हें भी भगवान ने आकाशवाणी द्वारा कहा–’द्वापर के अंत में यमुना किनारे श्रीवृन्दावन में मैं तुम्हारे मनोरथ पूर्ण करूंगा।’
दण्डकवन के मुनि रूपी गोपी— दण्डकवन में जब श्रीराम, श्रीसीताजी व श्रीलक्ष्मण सहित तपस्वीवेष में विचरण कर रहे थे तब वहां के मुनियों ने उनके रूप पर मोहित होकर श्रीराम से प्रार्थना की–’जिस प्रकार सीता आपके प्रेम को प्राप्त हैं, वैसा ही प्रेम हम भी चाहते हैं।’ एकपत्नीव्रती श्रीराम ने मुनियों से कहा–यह वर कठिन व दुर्लभ है क्योंकि मैं मर्यादा की रक्षा में तत्पर हूँ। अत: तुम्हें मेरे वर के कारण द्वापर के अंत में व्रज में जन्म धारण करना होगा और वहीं मैं तुम्हारे इस मनोरथ को पूर्ण करुंगा।
भीलों की स्त्रियां रूपी गोपियां–पंचवटी में तपस्वी वेष में श्रीराम को देखकर भीलों की स्त्रियां प्रेमविह्वल हो गयीं और उनके चरणों की धूलि को अपने मस्तक पर रखकर प्राण त्यागने लगीं तब श्रीराम ने उनसे कहा–तुम व्यर्थ ही प्राण त्यागना चाहती हो। द्वापर के अंत में वृन्दावन में मैं तुम्हारा मनोरथ पूर्ण करुंगा।
यज्ञ-सीता रूपी गोपियां–श्रीसीताजी के त्याग के बाद जब-जब श्रीराम यज्ञ करते थे तब-तब सीताजी की सुवर्ण प्रतिमा बनायी जाती थी इसलिए श्रीराम के महल में यज्ञ-सीताओं का एक समूह एकत्र हो गया। एक बार वे सभी चैतन्य होकर श्रीराम के पास जाकर बोली–’हमारा नाम भी मिथिलेशकुमारी सीता है। हम तो आपकी सेवा करने वाली हैं; फिर हमें आप ग्रहण क्यों नहीं करते? यज्ञ करते समय हम आपकी अर्धांगिनी बनकर निरन्तर कार्यों का संचालन करती रही हैं। आप स्त्री का हाथ पकड़कर उसे त्यागते हैं, तो आपको पाप का भागी होना पड़ेगा।’ श्रीराम बोले–’मैं तुम्हें स्वीकार नहीं कर सकता। मैंने ‘एकपत्नीव्रत’ धारण कर रखा है। एकमात्र सीता ही मेरी सहधर्मिणी है। इसलिए तुम सभी द्वापर के अंत में वृन्दावन में पधारना, वहीं तुम्हारी मनोकामना पूर्ण करुंगा।’ अत: वे यज्ञ-सीता भी व्रज में गोपियां बनीं।
वैकुण्ठ में विराजने वाली रमादेवी की सखियां, श्वेतद्वीप में रहने वाली स्त्रियां, समुद्र से प्रकट लक्ष्मीजी की सखियां व लोकाचल पर्वत पर निवास करने वाली देवियां–ये सभी भगवान श्रीहरि के वरदान से व्रज में गोपियां होंगी। मत्स्यावतार में भगवान के मत्स्यरूप पर मुग्ध होने वाली समुद्र की कन्याओं को भगवान ने व्रज में गोपी होने का वरदान दिया। बहुत-सी अप्सराएं जो भगवान के नारायणमुनि रूप पर मोहित हो गयीं उन्हें भी भगवान नारायण ने व्रज में गोपी होने का वर दिया। भगवान वामन को देखकर उन्हें पाने के लिए सुतल देश की स्त्रियों ने तप किया, वे भी वृन्दावन में गोपियां बनीं। भगवान यज्ञनारायण को देखकर जो देवांगनाएं प्रेम में निमग्न हो गयीं और हिमालय पर्वत पर जाकर तपस्या करने लगीं, वे भी व्रज में गोपियां होंगी।
जिन नागकन्याओं ने शेषावतार भगवान को देखकर पति बनाने की इच्छा से तप किया वे सब बलदेवजी के साथ रासविहार के लिए व्रज में उत्पन्न हुईं। जालंधर नगर की स्त्रियां भी वृन्दापति भगवान श्रीहरि का दर्शन कर मन-ही-मन संकल्प करने लगीं कि ये भगवान श्रीहरि ही हमारे स्वामी हों। उस समय आकाशवाणी हुई कि तुम सब भगवान श्रीहरि की आराधना करो; फिर वृन्दा की ही भांति तुम भी वृन्दावन में भगवान की प्रिया गोपी होओगी। इसके अतिरिक्त बर्हिष्मती नगर में रहने वाली स्त्रियां धरणी देवी रूपी गौ के वरदान से वृन्दावन में गोपी हुईं।
भगवान धन्वन्तरि के पृथ्वी से अन्तर्धान होने पर सम्पूर्ण औषधियां बहुत दु:खी हुईं। औषधियों ने स्त्रीवेष धारण कर भगवान श्रीहरि की तपस्या आरम्भ कर दी। तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ने उनसे वर मांगने को कहा। भगवान श्रीहरि का दर्शन करके वे सब उन पर मुग्ध हो गईं और भगवान से पतितुल्य आराध्य होने के लिए कहा। भगवान ने उन्हें वर देते हुए कहा– ’औषधिरूपा स्त्रियों ! द्वापर के अंत में तुम सभी लतारूप से वृन्दावन में रहोगी और वहां रास में मैं तुम्हारा मनोरथ पूर्ण करुंगा।’
भगवान श्रीकृष्ण ने सभी देवताओं से कहा–भूतल का भार उतारकर श्रीराधा और गोप-गोपियों के साथ मेरा पुन: गोलोक में आगमन होगा। मेरे अंशभूत जो नित्य परमात्मा नारायण हैं, वे लक्ष्मी और सरस्वती के साथ वैकुण्ठलोक को पधारेंगे। धर्म और मेरे अंशों का निवासस्थान श्वेतद्वीप में होगा और सभी देवी-देवता अपने-अपने धाम को पधारेंगे। ऐसा कहकर श्रीकृष्ण चुप हो गए।गणेशजी को छोड़कर शेष छोटे-बड़े सभी देवताओं और देवियों का कला द्वारा भूतल पर अवतरण होगा। ब्रह्मा, शिव, धर्म, शेषनाग, पार्वती, लक्ष्मी, सरस्वती आदि देवी-देवताओं व गोप-गोपियों ने भगवान श्रीकृष्ण का स्तवन कर प्रणाम किया।
इस प्रकार लीला-मंच तैयार हो गया, मंच-लीला की व्यवस्था करने वाले रचनाकार, निर्देशक एवं समेटने वाले भी तैयार हो गए। इस मंच पर पधारकर, विभिन्न रूपों में उपस्थित होकर अपनी-अपनी भूमिका निभाने वाले पात्र भी तैयार हो गए। काल, कर्म, गुण एवं स्वभाव आदि की रस्सी में पिरोकर भगवान श्रीकृष्ण ने इन सबकी नकेल अपने हाथ में रखी। यह नटवर नागर श्रीकृष्ण एक विचित्र खिलाड़ी हैं। कभी तो मात्र दर्शक बनकर देखते हैं, कभी स्वयं भी वह लीला में कूद पड़ते हैं और खेलने लगते हैं। यह लीला कब से प्रारम्भ हुई है, कुछ पता नहीं। कब तक चलेगी, इसका भी कोई निर्णय नहीं। कभी प्रलय करके एक बार सारा खेल समेट भी लिया जाए, तो पुन: सृष्टि रचना का वही पुराना क्रम चालू हो जाता है।


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