Saturday 31 December 2016

मुक्ति ( मोक्ष) चाहिए तो करें ये सरल पाठ

श्रीहरि नाम की महिमा

भगवान विष्णु के संकीर्तन व स्तोत्र पाठ का विशेष महत्व है। इससे वाणी शुद्ध व बुद्धि सदाचारी होकर मनुष्य को सुख-शान्ति की प्राप्ति होती है। भगवान विष्णु का एक-एक नाम सम्पूर्ण वेदों से अधिक महिमावान माना गया है। भगवान विष्णु का नाम मनुष्यों के पापों का नाश करता, नवीन पुण्यों को जन्म देता, भोगों से विरक्ति पैदा कर गुरु-गोविन्द के चरणों की भक्ति को बढ़ाता और भगवान विष्णु के तत्त्व का ज्ञान कराता है। हरिनाम जन्म-मृत्युरूपी बीज को जलाकर मनुष्य को ब्रह्मानन्द में निमग्न कर देता है। जन्म-मृत्यु के घोर चक्र में पड़े जीव को भगवान की नाममाला का उच्चारण अवश्य करना चाहिए; क्योंकि भगवान एवं उनके नाम से स्वयं भय भी भयभीत रहता है। यक्ष, राक्षस, भूत-प्रेत, वेताल, डाकिनी आदि जो भी हिंसक भूतगण हैं, वे सब श्रीहरि नाम से भाग जाते हैं। अत: संसार में दु:ख का अनुभव करके जो उससे विरक्त होना चाहते हैं, उन्हें भगवान विष्णु की आराधना अवश्य करनी चाहिए। गूंगे से लेकर चाण्डाल तक इस नाममाला का पाठ कर सकते हैं।
भगवान श्रीहरि की नाममाला के महत्व को बताते हुए किसी भक्त ने क्या खूब कहा है–
हे ईश्वर !  आपकी नाममाला का उच्चारण करने की अभिलाषा करने मात्र से सम्पूर्ण पाप कांपने लग जाते हैं। प्राणियों के पाप-पुण्य के लेखक व यमराज के प्रधानमन्त्री श्रीचित्रगुप्त अपनी कलम को उठाते हुए आशंका करते हैं कि मैंने इस प्राणी का नाम तो पापियों की श्रेणी में लिख दिया है, परन्तु अब तो इसने नाममाला का आश्रय लिया है; अत: अब मुझे इसका नाम पापियों की श्रेणी से काट देना चाहिए; नहीं तो यमराजजी ही मुझ पर ही कहीं कुपित न हो जाएं क्योंकि यह मनुष्य तो अब अवश्य ही हरिधाम को जाएगा। श्रीहरिनाम माला का माहात्म्य इससे अधिक और क्या कहा जाए।

नित्य पाठ के लिए श्रीहरि नाममाला स्तोत्र

गोविन्दं गोकुलानन्दं गोपालं गोपिवल्लभम् ।
गोवर्धनोद्धरं धीरं तं वन्दे गोमतीप्रियम् ॥ १॥
नारायणं निराकारं नरवीरं नरोत्तमम् ।
नृसिंहं नागनाथं च तं वन्दे नरकान्तकम् ॥ २॥
पीताम्बरं पद्मनाभं पद्माक्षं पुरुषोत्तमम् ।
पवित्रं परमानन्दं तं वन्दे परमेश्वरम् ॥ ३॥
राघवं रामचन्द्रं च रावणारिं रमापतिम् ।
राजीवलोचनं रामं तं वन्दे रघुनन्दनम् ॥ ४॥
वामनं विश्वरूपं च वासुदेवं च विठ्ठलम् ।
विश्वेश्वरं विभुं व्यासं तं वन्दे वेदवल्लभम् ॥ ५॥
दामोदरं दिव्यसिंहं दयालुं दीननायकम् ।
दैत्यारिं देवदेवेशं तं वन्दे देवकीसुतम् ॥ ६॥
मुरारिं माधवं मत्स्यं मुकुन्दं मुष्टिमर्दनम् ।
मुञ्जकेशं महाबाहुं तं वन्दे मधुसूदनम् ॥ ७॥
केशवं कमलाकान्तं कामेशं कौस्तुभप्रियम् ।
कौमोदकीधरं कृष्णं तं वन्दे कौरवान्तकम् ॥ ८॥
भूधरं भुवनानन्दं भूतेशं भूतनायकम् ।
भावनैकं भुजंगेशं तं वन्दे भवनाशनम् ॥ ९॥
जनार्दनं जगन्नाथं जगज्जाड्यविनाशकम् ।
जामदग्न्यं परं ज्योतिस्तं वन्दे जलशायिनम् ॥ १०॥
चतुर्भुजं चिदानन्दं मल्लचाणूरमर्दनम् ।
चराचरगतं देवं तं वन्दे चक्रपाणिनम् ॥ ११॥
श्रियःकरं श्रियोनाथं श्रीधरं श्रीवरप्रदम् ।
श्रीवत्सलधरं सौम्यं तं वन्दे श्रीसुरेश्वरम् ॥ १२॥
योगीश्वरं यज्ञपतिं यशोदानन्ददायकम् ।
यमुनाजलकल्लोलं तं वन्दे यदुनायकम् ॥ १३॥
शालिग्रामशिलाशुद्धं शंखचक्रोपशोभितम् ।
सुरासुरैः सदा सेव्यं तं वन्दे साधुवल्लभम् ॥ १४॥
त्रिविक्रमं तपोमूर्तिं त्रिविधाघौघनाशनम् ।
त्रिस्थलं तीर्थराजेन्द्रं तं वन्दे तुलसीप्रियम् ॥ १५॥
अनन्तमादिपुरुषं अच्युतं च वरप्रदम् ।
आनन्दं च सदानन्दं तं वन्दे चाघनाशनम् ॥ १६॥
लीलया धृतभूभारं लोकसत्त्वैकवन्दितम् ।
लोकेश्वरं च श्रीकान्तं तं वन्दे लक्षमणप्रियम् ॥ १७॥
हरिं च हरिणाक्षं च हरिनाथं हरप्रियम् ।
हलायुधसहायं च तं वन्दे हनुमत्पतिम् ॥ १८॥
हरिनामकृतामाला पवित्रा पापनाशिनी ।
बलिराजेन्द्रेण चोक्त्ता कण्ठे धार्या प्रयत्नतः ॥
॥ इति महाबलिप्रोक्तं श्रीहरि नाममाला स्तोत्रम् सम्पूर्णम्॥

स्तोत्र पाठ का फल

राजा महाबलि के द्वारा रचित भगवान विष्णु के पवित्र नामों की माला, जो मनुष्य कण्ठ में धारण कर लेता है, अर्थात् उठते, बैठते, सोते या काम करते समय भी पाठ करता रहता है; उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और समस्त लौकिक कामनाओं के साथ मोक्ष की प्राप्ति होती है।



क्या होते हैं पुण्य कर्म...

मार्गदर्शक चिंतन-

पुण्य कर्मों का अर्थ केवल वे कर्म नहीं जिनसे आपको लाभ होता हो अपितु वो कर्म हैं जिनसे दूसरों का भला भी होता है। पुन्य कर्मों का करने का उद्देश्य मरने के बाद स्वर्ग को प्राप्त करना ही नहीं अपितु जीते जी जीवन को स्वर्ग बनाना भी है।
स्वर्ग के लिए पुन्य करना बुरा नहीं मगर परमार्थ के लिए पुण्य करना ज्यादा श्रेष्ठ है। शुभ भावना के साथ किया गया प्रत्येक कर्म ही पुण्य है और अशुभ भावना के साथ किया गया कर्म पाप है।
जो कर्म भगवान को प्रिय होते हैं, वही कर्म पुण्य भी होते हैं। हमारे किसी आचरण से, व्यवहार से, वक्तव्य से या किसी अन्य प्रकार से कोई दुखी ना हो। हमारा जीवन दूसरों के जीवन में समाधान बने समस्या नहीं, यही चिन्तन पुन्य है और परमार्थ का मार्ग भी है।

Thursday 29 December 2016

जानिए 64 योगिनियों की महिमा...इनके बिना अधूरी रहती है मां देवी की महिमा..

चौसठ_योगिनियो के नाम और मंत्र !! 
आदिशक्ति का सीधा सा सम्बन्ध है इस शब्द का जिसमे प्रकृति या ऐसी शक्ति का बोध होता जो उत्पन्न करने और पालन करने का दायित्व निभाती है जिसने भी इस शक्ति की शरण में खुद को समर्पित कर दिया उसे फिर किसी प्रकार कि चिंता करने कि कोई आवश्यकता नहीं वह परमानन्द हो जाता है चौंसठ योगिनियां वस्तुतः माता आदिशक्ति कि सहायक शक्तियों के रूप में मानी जाती हैं जिनकी मदद से माता आदिशक्ति इस संसार का राज काज चलाती हैं एवं श्रष्टि के अंत काल में ये मातृका शक्तियां वापस माँ आदिशक्ति में पुनः विलीन हो जाती हैं और सिर्फ माँ आदिशक्ति ही बचती हैं फिर से पुनर्निर्माण के लिए !बहुत बार देखने में आता है कि लोग वर्गीकरण करने लग जाते हैं और उसी वर्गीकरण के आधार पर साधकगण अन्य साधकों को हीन - हेय दृष्टि से देखने लग जाते हैं क्योंकि उनकी नजर में उनके द्वारा पूजित रूप को वे मूल या प्रधान समझते हैं और अन्य को द्वितीय भाव से देखते हैं जबकि ऐसा उचित नहीं है हर साधक का दुसरे साधक के लिए सम भाव होना चाहिए मैं
किन्तु नैतिक दृष्टिकोण और अध्यात्मिकता के आधार पर यदि देखा जाये तो न तो कोई उच्च है न कोई हीन हम आराधना करते हैं तो कोई अहसान नहीं करते यह सिर्फ अपनी मानसिक शांति और संतुष्टि के लिए और अगर कोई दूसरा करता है तो वह भी इसी उद्देश्य कि पूर्ती के लिए !अब अगर हम अपने विषय पर आ जाएँ तो इस मृत्यु लोक में मातृ शक्ति के जितने भी रूप विदयमान हैं सब एक ही विराट महामाया आद्यशक्ति के अंग,भाग , रूप हैं साधकों को वे जिस रूप की साधना करते हैं उस रूप के लिए निर्धारित व्यवहार और गुणों के अनुरूप फल प्राप्त होता है।चौंसठ योगिनियां वस्तुतः माता दुर्गा कि सहायक शक्तियां है जो समय समय पर माता दुर्गा कि सहायक शक्तियों के रूप में काम करती हैंएवं दुसरे दृष्टिकोण से देखा जाये तो यह मातृका शक्तियां तंत्र भाव एवं शक्तियों से परिपूरित हैं और मुख्यतः तंत्र ज्ञानियों के लिए प्रमुख आकर्षण का केंद्र हैं !
जिन नामों का अस्तित्व मिलता है वे इस प्रकार हैं :-. बहुरूपा
. तारा
. नर्मदा
. यमुना
. शांति
. वारुणी
. क्षेमकरी
. ऐन्द्री
. वाराही
१०. रणवीरा
११. वानरमुखी
१२. वैष्णवी
१३. कालरात्रि
१४. वैद्यरूपा
१५. चर्चिका
१६. बेताली
१७. छिनमास्तिका
१८. वृषभानना
१९. ज्वाला कामिनी
२०. घटवारा
२१. करकाली
२२. सरस्वती
२३. बिरूपा
२४. कौबेरी
२५. भालुका
२६. नारसिंही
२७. बिराजा
२८. विकटानन
२९. महालक्ष्मी
३०. कौमारी
३१. महामाया
३२. रति
३३. करकरी
३४. सर्पश्या
३५. यक्षिणी
३६. विनायकी
३७. विन्द्यावालिनी
३८. वीरकुमारी
३९. माहेश्वरी
४०. अम्बिका
४१. कामायनी
४२. घटाबारी
४३. स्तुति
४४. काली
४५. उमा
४६. नारायणी
४७. समुद्रा
४८. ब्राह्मी
४९. ज्वालामुखी
५०. आग्नेयी
५१. अदिति
५२. चन्द्रकांति
५३. वायुबेगा
५४. चामुंडा
५५. मूर्ति
५६. गंगा
५७. धूमावती
५८. गांधारी
५९. सर्व मंगला
६०. अजिता
६१. सूर्य पुत्री
६२. वायु वीणा
६३. अघोरा
६४. भद्रकाली
चौंसठ योगिनी मंत्र :-
. ॐ काली नित्य सिद्धमाता स्वाहा
. ॐ कपलिनी नागलक्ष्मी स्वाहा
. ॐ कुला देवी स्वर्णदेहा स्वाहा
. ॐ कुरुकुल्ला रसनाथा स्वाहा
. ॐ विरोधिनी विलासिनी स्वाहा
. ॐ विप्रचित्ता रक्तप्रिया स्वाहा
. ॐ उग्र रक्त भोग रूपा स्वाहा
. ॐ उग्रप्रभा शुक्रनाथा स्वाहा
. ॐ दीपा मुक्तिः रक्ता देहा स्वाहा
१०. ॐ नीला भुक्ति रक्त स्पर्शा स्वाहा
११. ॐ घना महा जगदम्बा स्वाहा
१२. ॐ बलाका काम सेविता स्वाहा
१३. ॐ मातृ देवी आत्मविद्या स्वाहा
१४. ॐ मुद्रा पूर्णा रजतकृपा स्वाहा
१५. ॐ मिता तंत्र कौला दीक्षा स्वाहा
१६. ॐ महाकाली सिद्धेश्वरी स्वाहा
१७. ॐ कामेश्वरी सर्वशक्ति स्वाहा
१८. ॐ भगमालिनी तारिणी स्वाहा
१९. ॐ नित्यकलींना तंत्रार्पिता स्वाहा
२०. ॐ भेरुण्ड तत्त्व उत्तमा स्वाहा
२१. ॐ वह्निवासिनी शासिनि स्वाहा
२२. ॐ महवज्रेश्वरी रक्त देवी स्वाहा
२३. ॐ शिवदूती आदि शक्ति स्वाहा
२४. ॐ त्वरिता ऊर्ध्वरेतादा स्वाहा
२५. ॐ कुलसुंदरी कामिनी स्वाहा
२६. ॐ नीलपताका सिद्धिदा स्वाहा
२७. ॐ नित्य जनन स्वरूपिणी स्वाहा
२८. ॐ विजया देवी वसुदा स्वाहा
२९. ॐ सर्वमङ्गला तन्त्रदा स्वाहा
३०. ॐ ज्वालामालिनी नागिनी स्वाहा
३१. ॐ चित्रा देवी रक्तपुजा स्वाहा
३२. ॐ ललिता कन्या शुक्रदा स्वाहा
३३. ॐ डाकिनी मदसालिनी स्वाहा
३४. ॐ राकिनी पापराशिनी स्वाहा
३५. ॐ लाकिनी सर्वतन्त्रेसी स्वाहा
३६. ॐ काकिनी नागनार्तिकी स्वाहा
३७. ॐ शाकिनी मित्ररूपिणी स्वाहा
३८. ॐ हाकिनी मनोहारिणी स्वाहा
३९. ॐ तारा योग रक्ता पूर्णा स्वाहा
४०. ॐ षोडशी लतिका देवी स्वाहा
४१. ॐ भुवनेश्वरी मंत्रिणी स्वाहा
४२. ॐ छिन्नमस्ता योनिवेगा स्वाहा
४३. ॐ भैरवी सत्य सुकरिणी स्वाहा
४४. ॐ धूमावती कुण्डलिनी स्वाहा
४५. ॐ बगलामुखी गुरु मूर्ति 
४६. ॐ मातंगी कांटा युवती स्वाहा
४७. ॐ कमला शुक्ल संस्थिता स्वाहा
४८. ॐ प्रकृति ब्रह्मेन्द्री देवी स्वाहा
४९. ॐ गायत्री नित्यचित्रिणी स्वाहा
५०. ॐ मोहिनी माता योगिनी स्वाहा
५१. ॐ सरस्वती स्वर्गदेवी स्वाहा
५२. ॐ अन्नपूर्णी शिवसंगी स्वाहा
५३. ॐ नारसिंही वामदेवी स्वाहा
५४. ॐ गंगा योनि स्वरूपिणी स्वाहा
५५. ॐ अपराजिता समाप्तिदा स्वाहा
५६. ॐ चामुंडा परि अंगनाथा स्वाहा
५७. ॐ वाराही सत्येकाकिनी स्वाहा
५८. ॐ कौमारी क्रिया शक्तिनि स्वाहा
५९. ॐ इन्द्राणी मुक्ति नियन्त्रिणी स्वाहा
६०. ॐ ब्रह्माणी आनन्दा मूर्ती स्वाहा
६१. ॐ वैष्णवी सत्य रूपिणी स्वाहा
६२. ॐ माहेश्वरी पराशक्ति स्वाहा
६३. ॐ लक्ष्मी मनोरमायोनि स्वाहा
६४. ॐ दुर्गा सच्चिदानंद स्वाहा