Wednesday 4 October 2017

जानिए महारास में भगवान कृष्ण ने अपनी बंसी से किस शब्द का नाद किया..

महारास रहस्य..
शरद पूर्णिमा वह पावन दिवस जब भगवान श्रीकृष्ण ने वृन्दावन में असंख्य गोपिकाओं के साथ "महारासरचाया था। शास्त्रों में कहा गया कि "रसो वै स:"अर्थात परमात्मा रसस्वरूप है अथवा जो रस तत्व हैवही परमात्मा है।
श्रीकृष्ण द्वारा उसी आनंद रूप रस का गोपिकाओं के मध्य वितरण ही तो "रासहै। यानि एक ऐसा महोत्सव जिसमें स्वयं ब्रह्म द्वारा जीव को अपने ब्रह्म रस में डुबकी लगाने का अवसर प्रदान किया जाता है। जीवन के अन्य सभी सांसारिक रसों का त्याग कर जीव द्वारा ब्रह्म के साथ ब्रह्मानन्द के आस्वादन का सौभाग्य ही "महारासहै। 
काम तभी तक जीव को सताता है जब तक जीव जगत में रहेजगदीश की शरण लेते ही उसका काम स्वतः गल जाता है। अतः "महारासजीव और जगदीश का मिलन ही है। इसीलिए श्रीमद् भागवत जी में कहा गया कि जो काम को मिटाकर राम से मिला देवही "महारासहै। महारास के समय भगवान ने जब बेणुनाद किया तो..उसमें क्लीं शब्द का नाद किया...क्लीं भगवान कृष्ण का बीज मंत्र है...इसके साथ ही यह काम बीज मंत्र भी है...काम ( इच्छा ) यानि भगवान से मिलन की तीव्र इच्छा जगाने वाला है क्लीं बीज मंत्र...यही वजह है कि क्लीं बीज मंत्र का नाद सुनते ही...सारी गोपियों के मन में भगवान कृष्ण से मिलने की तीव्र इच्छा जाग्रत हुई...वे जिस अवस्था में थीं..उसी अवस्था में सबकुछ छोडकर उस परम ब्रह्म नाद की ओर खिंची चली आयीं....जब जीव सबकुछ त्याग कर प्रभु से मिलने के लिए निकल पड़ता है तो भगवान भी उसे अंगीकार करते हैं...महारास की लीला आत्मा के परमात्मा से मिलन की दिव्य लीला है...

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