Monday 16 October 2017

क्या है बांटकर खाने का लाभ...

मार्गदर्शक चिंतन-

आचार्य चाणक्य कहते हैं
, जिस प्रकार संग्रह करने पर मधुमक्खी को पैर पटक कर रोना पड़ता है, ठीक इसी प्रकार पदार्थों में आसक्ति रखने वाले मनुष्य का भी यही हाल होता है। संग्रह ही तो जीवन के संघर्ष का कारण और आसक्ति ही जीवन में निशक्ति का कारण है।
आसक्ति में फंसा मनुष्य उसी प्रकार असहाय बन जाता है, जिस प्रकार एक छोटे से महावत के आगे विशालकाय हाथी और कोमल कमल पुष्प के अन्दर, बांस को भी भेदने की सामर्थ्य रखने वाला भंवरा।
यह प्रकृति अगर देना जानती है तो अपने तरीके से वापस लेना भी अवश्य जानती है। इसलिए बंटकर खाना नहीं अपितु बांटकर खाना सीखो, यही तो मानव बनने की कसौटी भी है।

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