मार्गदर्शक चिंतन-
बात बड़ी सामान्य और छोटी सी लेकिन समझने लायक है। सब जानते हैं कि भगवान विष्णु जी ही माँ लक्ष्मी के स्वामी हैं।
अर्थात् सरल अर्थों में समझा जाए तो वह ये कि, जिस भी धन और संपत्ति को हम अपना समझ बैठे हैं, उसके वास्तविक पति तो केवल और केवल स्वयं भगवान नारायण ही हैं।
जिस प्रकार लक्ष्मी पर अपना एकाधिकार जताने के प्रयास में दुर्बुद्धि रावण को अपना सर्वनाश देखना पड़ा, ठीक इसी प्रकार प्रभु द्वारा प्रदत्त संपत्ति का सदुपयोग न कर उसे अपना समझकर भोग और विलासिता में व्यय करना अपनी अल्प बुद्धि का परिचय देते हुए अपने विनाश को निमंत्रण देना ही है।
जिस दिन लक्ष्मी पर हमारी भोग दृष्टि पड़ जाती है उस दिन पहले सन्मत्ति और फिर संपत्ति का हरण प्रभु द्वारा कर लिया जाता है। इसलिए सम्पत्ति को प्रभु कार्य में, नारायण की सेवा में और परमार्थ में ख़र्च करना ही उसकी सार्थकता है।
अतः
याद रहे -
संपत्ति
सब रघुपति की...
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