Monday 1 May 2017

क्या है जीवन का धर्म..

मार्गदर्शक चिंतन-

धर्म जीभ का नहीं जीवन का विषय है और धर्म सुनने का नहीं गुनने का विषय है। धर्म चर्चा (कहने) का नहीं अपितु चर्या (करने) का विषय है। मंदिर में जाना यह धर्म की माँग नहीं है अपितु जीवन का मंदिर हो जाना यह धर्म की माँग है। 
धर्म अर्थात जीवन जीने की वो आदर्शमय शैली जहाँ प्रत्येक क्षण त्याग, समर्पण और करुणा के भाव जन्म लेते हैं। जहाँ शत्रु के प्रति भी दया और सब ईश्वर का रूप नजर आने लगते हैं।
धर्म एक ऐसी स्वनिर्मित नाव है जिसमे सवार होकर इस संसार रुपी जलाशय की आनन्दमय यात्रा की जा सकती है। केवल पूजा करते समय झुकना यह धर्म का आदेश नहीं है, सबके सामने झुकना यह धर्म का सन्देश है।
अतः धर्म में जियो, धर्ममय जीओ और धर्म के लिए जियो ताकि आप सच्चे अर्थों में इंसान बन सको।

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