मार्गदर्शक चिंतन-
बाहरी शत्रु हमें उतना नुकसान नहीं पहुँचाते जितना भीतरी शत्रु पहुँचाते हैं। बाहर का युद्ध आवश्यक भी नहीं है। बाहर के शत्रुओं को तो जितना जल्दी आप मित्र बना लें या उनसे रिश्ते मधुर कर लें अथवा क्षमा माँग लें तो बहुत अच्छा होगा। इससे ना केवल आपको शान्ति प्राप्त होगी अपितु आपकी ऊर्जा अपने लक्ष्य पर केन्द्रित हो जाएगी।
स्वयं से लड़ो, अपनी अकर्मण्यता से लड़ो। अपनी उस आदत से लड़ो जो हर काम को कल पर टाल देती है। अपने उस हीनभाव से लड़ो जिसने आपके भीतर निराशा भर दी है।
सोचो ऐसा क्या है जिसे आप अपना बनाते हैं वो दूर क्यों हो जाता है ? अपने उस कड़बे स्वभाव से लड़ो जो किसी को आपका नहीं बनने देता।
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