मार्गदर्शक चिंतन-
परमात्मा तो प्रत्येक पल मौजूद हैं, तुम अपनी बात करो कि प्रार्थना करते समय तुम मौजूद हो कि नहीं। प्रार्थना सच्ची और दिल से होती है तो प्रभु खम्भे से भी प्रगट हो जाते हैं।
प्रभु को खोजने की जरूरत नहीं है अपने को खोने की जरूरत है। खोजी जिस दिन स्वयं खो जाता है उस दिन परमात्मा स्वयं आ जाते हैं।
परमात्मा तो मिले हुए हैं तुम्हें खबर नहीं है। वो तो नित्य हैं, कण-कण में हैं पर अज्ञान के कारण तुम्हें दूरी प्रतीत होती है। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कुछ दिया नहीं था केवल स्मरण कराया था।
पानी
में मीन प्यासी सखी मोहे सुन-सुन
आवे हांसी।
प्राप्त
को क्या प्राप्त करना ?
संतों
के चरणों में बैठकर प्रेम और
भक्ति प्राप्त करके आनंद लेना
है बस।
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