Monday 15 May 2017

जानिए सत्य,संत,शास्त्र और सत्संग की महिमा..

मार्गदर्शक चिंतन-

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आदमी पूरे जीवन सत्य की अपने हिसाब से व्याख्या करता रहता है। सत-संत, शास्त्र-सत्संग का अस्वीकार कर देने वाला तताकथित नास्तिक इसी वजह से सत्संग और कथा से दूर रहना चाहता है कहीं जीवन के प्रति बनाई हुई उसकी सोच खंडित- विखंडित ना हो जाये। 
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आदमी जैसा भी जीवन जीना चाहता है , उसके पक्ष में बहुत तर्क जुटा लेता है। तुम झूठे हो तो मन कहेगा कि सारी दुनिया झूठी है, सब झूठ से ही काम चला लेते हो। तुम बेईमान हो, तो मन कहेगा कि सारा संसार ही बेईमान है । यहाँ ईमानदार तो भूखे मर जाते हैं। 
मन रास्ता निकालने में बड़ा कुशल है। ये दुनिया के लोग तो तुम्हारा कुछ ना बिगाड़ पाएंगे। यह मन तो जन्मों-जन्मों से तुम्हें धोखा दे रहा है। जीवन की गलत व्याख्या कर-करके बार-बार उन्हीं गड्डों में गिरा रहा है। तुम बड़े हैरान होओगे कि इस मन ने गलत आचरण के पक्ष में तर्क देकर तुम्हें जितना बर्बाद किया है, किसी ने नहीं किया।
इन चार का आश्रय किये बिना जीवन का उद्देश्य और सही गलत का निर्णय कभी ना कर पाओगे। "" सत्य, संत, शास्त्र और सत्संग।

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