Monday 8 May 2017

क्या है त्याग की महिमा..

मार्गदर्शन चिंतन-

गीता में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से त्याग की चर्चा करते हुए कहते हैं कि जो कर्म हमें करने चाहियें जैसे दान-पुन्य, परोपकार सेवा आदि। अगर मनुष्य मोह के कारण इन कर्मों का त्याग करता है तो ये तामस त्याग है।
कर्मों को दुःख रूप समझकर उनके परिणाम से भयभीत होकर और शारीरिक व मानसिक कष्टों से बचने के लिए किया गया त्याग राजस त्याग है।
कर्मों का पूर्णतया त्याग कभी भी संभव नहीं, मगर कर्मों के फलों का त्याग अवश्य संभव है। जिस मनुष्य के द्वारा शास्त्रों की आज्ञा का निर्वहन करते हुए मात्र कर्तव्य पालन के उद्देश्य से आसक्ति और फल का त्याग करते हुए कर्म किया जाता है वही सात्विक और सच्चा त्याग माना है।

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