मार्गदर्शक चिंतन-
वैराग्य का मतलब दुनिया को छोड़ना कदापि नहीं अपितु दुनिया के लिए छोड़ना है। वैराग्य अर्थात एक ऐसी विचारधारा जब कोई व्यक्ति मै और मेरे से ऊपर उठकर जीने लगता है।
समाज को छोड़कर चले जाना वैराग्य नहीं है अपितु समाज को जोड़कर समाज के लिए जीना वैराग्य है। किसी वस्तु का त्याग वैराग्य नहीं है अपितु किसी वस्तु के प्रति अनासक्ति वैराग्य है।
जब किसी वस्तु को बाँटकर खाने का भाव किसी के मन में आ जाता है तो सच मानिये यही वैराग्य है। दूसरों के दुःख से दुखी होना और अपने सुख को बाँटने का भाव जिस दिन आपके मन में आने लग जाता है, उसी दिन गृहस्थ में रहते हुए आप सच्चे वैरागी बन जाते हो।
कृष्ण
गोविन्द गोपाल गाते चलो,मन
को विषयों से हरदम हटाते
चलो।
कृष्ण दर्शन तो देंगे कभी ना कभी,ऐसा विश्वास मन में जमाते चलो॥
कृष्ण दर्शन तो देंगे कभी ना कभी,ऐसा विश्वास मन में जमाते चलो॥
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