मार्गदर्शक चिंतन-
आज का युग प्रतिस्पर्धा का है। अगर आपके अन्दर प्रतिस्पर्धा की सामर्थ्य नहीं तो समझ लेना निश्चित ही आप पिछड़ने वाले हैं। आपके जीवन में भी प्रतिस्पर्धा अवश्य हो मगर सिर्फ उस काम की जोकि आप से सम्पन्न हो सकें।
देखा-देखी की प्रतिस्पर्धा आपके किसी काम की नहीं। देखा-देखी की प्रतिस्पर्धा आपको तनाव, अशांति, असंतुलित और एक अव्यवस्थित जीवन के अलावा कुछ और नहीं दे सकती।
इस दुनिया में ज्यादातर लोग एक नये काम की शुरुआत तब करते हैं जब वो किसी को उस काम को करते देखते हैं। यह बिन सोची समझी प्रतिस्पर्धा उनको ख़ुशी की मंजिल तक कभी नहीं पहुँचने देती है।
बिन सोचे समझे किसी भीड़ का हिस्सा होना मूर्खता नहीं तो और क्या है ? इसलिए प्रतिस्पर्धा रखो मगर सिर्फ उन क्षेत्रों में जिनमें आप बिना तनाव के एक लम्बी दौड़ दौड़कर अपने उद्देश्य तक पहुँचने की सामर्थ्य रखते हों।
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