जानिए कौन है भगवान कृष्ण का गुरु..
अर्जुन
ने एक बार भगवान श्री कृष्ण
से पूछा की "भगवन"
आपका
वास्तव में गुरु कौन हैं?
प्रभु
के मुख से अनायास ही निकल पड़ा
"गोपियां"
और
इतना कहते ही भगवान का हृदय
भर आया,"
आंखों
से अश्रुधारा बहने लगी l
और
मुख से कुछ न कहा गया l
भगवान
कहने लगे कि हे अर्जुन ’गोपां
मेरी सहायिका,
गुरु,
शिष्या,
दासी,
बान्धव,
स्त्री
हैं। अर्जुन मैं तुमसे सत्य
ही कहता हूँ कि गोपियां मेरी
क्या नहीं हैं अर्थात् मेरी
सब कुछ हैं। मेरी महिमा को,
मेरी
सेवा को,
मेरी
श्रद्धा को और मेरे मन के भीतरी
भावों को केवल ब्रज की गोपियां
ही जानती हैं,
अन्य
दूसरा कोई नहीं जानता।’
पुष्टिसम्प्रदाय में
श्रीवल्लभाचार्यजी ने भी
गोपियों को भगवान का गुरु माना
है। भगवान श्रीकृष्ण से फिर
पूछा गया–’प्रभु आप कभी हारे
हो ?’
भगवान
बोले कभी नही।’ अर्जुन ने कह
दिया कि फिर ’जरासन्ध ओर कालयवन
से डरकर क्यों भागे?
श्रीकृष्ण
ने कहा–’भागने ओर हारने में
फर्क है। सिंह जब शिकार करता
है तो उसे पकड़ने के लिए दस
कदम पीछे भी हटता है। जोर से
दौड़ने के लिए पीछे हटना ही
पड़ता है। यह तो विद्या है,
रणकौशल
है। हारने का अर्थ है–दूसरे
के अधीन हो जाना;
उसके
हाथ की कठपुतली बन जाना। हां,
में
हारा हूँ परन्तु गोपियों से
l
रसखान
जी कहते हैं कि
,"सेस, महेस, गनेस, दिनेस, सुरेसहु जाहि निरन्तर गावैं।
जाहिं अनादि, अनन्त, अखण्ड, अछेद, अभेद, सुबेद, बतावैं।।
नारद से सुक ब्यास रटैं, पचि हारे, तेऊ पुनि पार न पावैं।
ताहि अहीर की छोहरियां, छछिया भर छाछ पै नाच नचावै।।
अर्थात देवता,ओर महेश्वर स्वयं जिनका ध्यान करते हैं नारद आदि देवर्षि भी जिनकी महिमा का पार नही पाते उन भगवान श्री कृष्ण को ब्रज की गोपिया तुच्छ सी छाछ पर ही नाच नचाती है l ऐसी ही है भगवान और गोपियों के बीच की प्रेम भक्ति की डोर l अर्जुन ने फिर पूछ लिया – भगवन वेदों में आपको निर्लेप कहा गया है, क्या आप लक्ष्मी के बिना रह सकते हो? भगवान श्रीकृष्ण बोले–’अवश्य, इसमें क्या है, वह तो मेरी दासी है।’ आगे फिर पूछा–’क्या ब्रह्मा के बिना रह सकते हो? उन्होंने कहा–’मेरे प्रत्येक श्वास में अनन्त ब्रह्मा उत्पन्न होते हैं और प्रश्वास में बहुत से ब्रह्मा पेट में चले जाते हैं।’ ‘तो क्या जगत के बिना भी रह सकते हो?’ भगवान ने कहा–’जगत तो मेरी भ्रकुटि के संकेतमात्र से पैदा होता है और पलक झपकते ही समाप्त हो जाता है।’ फिर अर्जुन ने आगे कहा–’क्या वृन्दावन के बिना, क्या व्रजांगनाओं के बिना रह सकते हो?’ श्रीकृष्ण भावविह्वल हो गए और बोले–’नहीं! यह में कल्पना भी नहीं कर सकता । रहने की तो बात ही अलग है।’ स्वयं भगवान जिनकी बड़ाई करते हों, उन ब्रज की गोपियों की महिमा का कोई क्या वर्णन करेगा! हरे कृष्ण हरे कृष्ण ll मेरो प्यारो कन्हैया ll
,"सेस, महेस, गनेस, दिनेस, सुरेसहु जाहि निरन्तर गावैं।
जाहिं अनादि, अनन्त, अखण्ड, अछेद, अभेद, सुबेद, बतावैं।।
नारद से सुक ब्यास रटैं, पचि हारे, तेऊ पुनि पार न पावैं।
ताहि अहीर की छोहरियां, छछिया भर छाछ पै नाच नचावै।।
अर्थात देवता,ओर महेश्वर स्वयं जिनका ध्यान करते हैं नारद आदि देवर्षि भी जिनकी महिमा का पार नही पाते उन भगवान श्री कृष्ण को ब्रज की गोपिया तुच्छ सी छाछ पर ही नाच नचाती है l ऐसी ही है भगवान और गोपियों के बीच की प्रेम भक्ति की डोर l अर्जुन ने फिर पूछ लिया – भगवन वेदों में आपको निर्लेप कहा गया है, क्या आप लक्ष्मी के बिना रह सकते हो? भगवान श्रीकृष्ण बोले–’अवश्य, इसमें क्या है, वह तो मेरी दासी है।’ आगे फिर पूछा–’क्या ब्रह्मा के बिना रह सकते हो? उन्होंने कहा–’मेरे प्रत्येक श्वास में अनन्त ब्रह्मा उत्पन्न होते हैं और प्रश्वास में बहुत से ब्रह्मा पेट में चले जाते हैं।’ ‘तो क्या जगत के बिना भी रह सकते हो?’ भगवान ने कहा–’जगत तो मेरी भ्रकुटि के संकेतमात्र से पैदा होता है और पलक झपकते ही समाप्त हो जाता है।’ फिर अर्जुन ने आगे कहा–’क्या वृन्दावन के बिना, क्या व्रजांगनाओं के बिना रह सकते हो?’ श्रीकृष्ण भावविह्वल हो गए और बोले–’नहीं! यह में कल्पना भी नहीं कर सकता । रहने की तो बात ही अलग है।’ स्वयं भगवान जिनकी बड़ाई करते हों, उन ब्रज की गोपियों की महिमा का कोई क्या वर्णन करेगा! हरे कृष्ण हरे कृष्ण ll मेरो प्यारो कन्हैया ll
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