Sunday 30 April 2017

क्या है भाग्य और कर्म में अंतर..

मार्गदर्शक चिंतन-

भाग्यवादी अर्थात वे लोग जो यह सोचते हैं कि इस जिन्दगी में जो भी प्राप्त होना होगा हो ही जायेगा। पुरुषार्थवादी अर्थात वे लोग जो यह सोचते हैं और मानते भी हैं कि जिन्दगी में ऊँचा मुकाम किस्मत से नहीं अपितु मेहनत से प्राप्त होता है।
भाग्य आपको ऊँचे कुल में या किसी समृद्ध परिवार जन्म अवश्य दिला सकता है लेकिन जीवन में समृद्धि, उन्नति, सम्मान यह सब केवल परिश्रम से ही सम्भव है।
भाग्य से आपको नाव मिल सकती है मगर बिना पुरुषार्थ किये आप नदी पार नहीं कर सकते। भाग्य एक अवसर है और पुरुषार्थ उसका सदुपयोग। बिना कर्म किये तो भाग्य में लिखा हुआ भी वापिस चला जाता है। परिश्रम ही सफलता की माँग है।
मंजिल तो मिल ही जायेगी भटक कर ही सही।
गुमराह तो वो हैं जो घर से निकले ही नहीं॥



Saturday 29 April 2017

क्या है वैराग्य का सही अर्थ...

मार्गदर्शक चिंतन-

वैराग्य का मतलब दुनिया को छोड़ना कदापि नहीं अपितु दुनिया के लिए छोड़ना है। वैराग्य अर्थात एक ऐसी विचारधारा जब कोई व्यक्ति मै और मेरे से ऊपर उठकर जीने लगता है। 
समाज को छोड़कर चले जाना वैराग्य नहीं है अपितु समाज को जोड़कर समाज के लिए जीना वैराग्य है। किसी वस्तु का त्याग वैराग्य नहीं है अपितु किसी वस्तु के प्रति अनासक्ति वैराग्य है।
जब किसी वस्तु को बाँटकर खाने का भाव किसी के मन में आ जाता है तो सच मानिये यही वैराग्य है। दूसरों के दुःख से दुखी होना और अपने सुख को बाँटने का भाव जिस दिन आपके मन में आने लग जाता है, उसी दिन गृहस्थ में रहते हुए आप सच्चे वैरागी बन जाते हो।
कृष्ण गोविन्द गोपाल गाते चलो,मन को विषयों से हरदम हटाते चलो।
कृष्ण दर्शन तो देंगे कभी ना कभी,ऐसा विश्वास मन में जमाते चलो॥

Thursday 27 April 2017

क्या है अमरत्व का अर्थ..

मार्गदर्शक चिंतन-

अमर हो जाने का अर्थ आयु का बढ़ जाना नहीं है अपितु कीर्ति का चारों तरफ फ़ैल जाना है। आदमी मर कर भी अमर हो सकता है और जीते जी भी मर सकता है।
जो जीवन समाज के लिए अनुपयोगी बन जाता है उसका जीवन उस जड़ वृक्ष से भी तुच्छ है जो फल ना दे कम से कम छाया तो प्रदान करता है। फूल की आयु ज्यादा लम्बी नहीं होती। वह कुछ समय के लिए खिलता है और अपना सौन्दर्य बिखेरकर चला जाता है। 
जितना समय आप परमार्थ में जीते हैं उतनी आयु आपकी स्वतः अमर हो जाती है और दूसरों के लिए किया गया वो कर्म भी लोगों के दिल में रहता है। जितना जीओ मै और मेरे से ऊपर उठकर जिओ। यही अमरता है।
ना गन्दगी पसंद है ना बन्दगी पसंद है।
दूध सी धुली-धुली फूल सी खिली- खिली 

Wednesday 26 April 2017

कैसे बनाएं दूसरों के दिल में जगह..

मार्गदर्शक चिंतन-

आज हमने इमारतें तो खूब ऊँची-ऊँची बना ली हैं मगर हमारा मन बहुत छोटा हो गया है। निसंदेह आज का युग एक प्रतिस्पर्धा का युग है और ऊँचे मकानों की प्रतिस्पर्धा में आज ऊँचे मानवों का निर्माण अवरूद्ध हो गया है। आज हमने घरों की दीवारें ही बड़ी नहीं कर दी हैं अपितु दिलों की दूरियाँ भी बड़ी कर ली हैं।
कैसे भी हो सुख संपदा होनी चाहिए ? भले उसके लिए हमें कितनों को भी कष्ट पहुँचाना पड़ जाये। हमारे अन्दर से आवाज आनी ही बंद हो गई कि यह गलत है और यह सही। अपने दिल को इतना बड़ा बनाओ कि उसमें अपने पराए सब समां जायें। अपने कद को इसलिए ऊँचा न बना लेना कि सब आपको देख सकें अपितु इसलिए ऊँचा बना लेना कि आप सबको देख सकें।
बहुत ही आसान है जमीं पर मकान बना लेना।
दिल में जगह बनाने में,जिंदगी गुजर जाया करती है॥

दिल में बने रहना ही सच्ची शौहरत है।
वरना मशहूर तो,कत्ल करके भी हुआ जा सकता है॥

Tuesday 25 April 2017

क्या है दान का मतलब..धन के बिना कैसे करें दान..

मार्गदर्शक चिंतन-

सामान्यतया आदमी दान का मतलब किसी को धन देने से लगा लेता है। धन के अभाव में भी आप दान कर सकते हैं। तन और मन से किया गया दान भी उससे कम श्रेष्ठ नहीं।
किसी भूखे को भोजन, किसी प्यासे को पानी, गिरते हुए को संभाल लेना, किसी रोते बच्चे को गोद में उठा लेना, किसी अनपढ़ को इस योग्य बना देना कि वह स्वयं हिसाब किताब कर सके और किसी वृद्ध का हाथ पकड़ उसके घर तक छोड़ देना यह भी किसी दान से कम नहीं है।
हम किसी को उत्साहित कर दें, आत्मनिर्भर बना दें या साहसी बना दें, यह भी दान है। अगर आप किसी को गिफ्ट का ना दे पायें तो मुस्कान का दान दें, आभार भी काफी है। किसी के भ्रम-भय का निवारण करना और उसके आत्म-उत्थान में सहयोग करना भी दान है।
किसी रोज प्यासे को पानी क्या पिला दिया।
लगा जैसे प्रभु ने अपना पता बता दिया॥

रोशनी करने का ढंग बदलना है।
चिराग नहीं जलाने, चिराग बन कर जलना है॥

Monday 24 April 2017

दौलतवान से ज्यादा दयावान बनें..

मार्गदर्शक चिंतन-

किसी से बदला लेना बहुत आसान है मगर किसी का बदला चुकाना बहुत ही मुश्किल। उन्हें भुलाना अच्छी बात नहीं जो विपत्ति में आपका साथ दिया करते हैं। पैसों पर ज्यादा घमंड मत करना उनसे सिर्फ बिल चुकाया जा सकता है बदला नहीं।
सब कुछ होने पर भी यदि आपको संतोष नहीं है तो फिर आपको अभाव सतायेगा और सब कुछ मिलने पर भी यदि आप चुप नहीं रह सकते तो फिर आपको स्वभाव सतायेगा। यदि फिर आपके मन में अपने पास बहुत कुछ होने का अहम आ गया तो सच मानो फिर आपको आपका ये कुभाव सतायेगा।
दौलतवान न बन सको तो कोई बात नहीं, दिलवान और दयावान बन जाओ, आनंद ही आनंद चारों तरफ हो जायेगा।
जिन्दगी बदलने के लिए लड़ना पड़ता है।
और आसान करने के लिए समझना पड़ता है।

छोटा बनके रहोगे तो मिलेगी हर रहमत प्यारों 
बड़ा होने पर तो माँ भी गोद से उतार देती है॥

Sunday 23 April 2017

जानिए कौन है भगवान कृष्ण का गुरु..

जानिए कौन है भगवान कृष्ण का गुरु..
अर्जुन ने एक बार भगवान श्री कृष्ण से पूछा की "भगवन" आपका वास्तव में गुरु कौन हैं? प्रभु के मुख से अनायास ही निकल पड़ा "गोपियां" और इतना कहते ही भगवान का हृदय भर आया," आंखों से अश्रुधारा बहने लगी l और मुख से कुछ न कहा गया l भगवान कहने लगे कि हे अर्जुन ’गोपां मेरी सहायिका, गुरु, शिष्या, दासी, बान्धव, स्त्री हैं। अर्जुन मैं तुमसे सत्य ही कहता हूँ कि गोपियां मेरी क्या नहीं हैं अर्थात् मेरी सब कुछ हैं। मेरी महिमा को, मेरी सेवा को, मेरी श्रद्धा को और मेरे मन के भीतरी भावों को केवल ब्रज की गोपियां ही जानती हैं, अन्य दूसरा कोई नहीं जानता।’ पुष्टिसम्प्रदाय में श्रीवल्लभाचार्यजी ने भी गोपियों को भगवान का गुरु माना है। भगवान श्रीकृष्ण से फिर पूछा गया–’प्रभु आप कभी हारे हो ?’ भगवान बोले कभी नही।’ अर्जुन ने कह दिया कि फिर ’जरासन्ध ओर कालयवन से डरकर क्यों भागे? श्रीकृष्ण ने कहा–’भागने ओर हारने में फर्क है। सिंह जब शिकार करता है तो उसे पकड़ने के लिए दस कदम पीछे भी हटता है। जोर से दौड़ने के लिए पीछे हटना ही पड़ता है। यह तो विद्या है, रणकौशल है। हारने का अर्थ है–दूसरे के अधीन हो जाना; उसके हाथ की कठपुतली बन जाना। हां, में हारा हूँ परन्तु गोपियों से l रसखान जी कहते हैं कि
,"
सेस, महेस, गनेस, दिनेस, सुरेसहु जाहि निरन्तर गावैं।
जाहिं अनादि, अनन्त, अखण्ड, अछेद, अभेद, सुबेद, बतावैं।।
नारद से सुक ब्यास रटैं, पचि हारे, तेऊ पुनि पार न पावैं।
ताहि अहीर की छोहरियां, छछिया भर छाछ पै नाच नचावै।।
अर्थात देवता,ओर महेश्वर स्वयं जिनका ध्यान करते हैं नारद आदि देवर्षि भी जिनकी महिमा का पार नही पाते उन भगवान श्री कृष्ण को ब्रज की गोपिया तुच्छ सी छाछ पर ही नाच नचाती है l ऐसी ही है भगवान और गोपियों के बीच की प्रेम भक्ति की डोर l अर्जुन ने फिर पूछ लिया – भगवन वेदों में आपको निर्लेप कहा गया है, क्या आप लक्ष्मी के बिना रह सकते हो? भगवान श्रीकृष्ण बोले–’अवश्य, इसमें क्या है, वह तो मेरी दासी है।’ आगे फिर पूछा–’क्या ब्रह्मा के बिना रह सकते हो? उन्होंने कहा–’मेरे प्रत्येक श्वास में अनन्त ब्रह्मा उत्पन्न होते हैं और प्रश्वास में बहुत से ब्रह्मा पेट में चले जाते हैं।’ ‘तो क्या जगत के बिना भी रह सकते हो?’ भगवान ने कहा–’जगत तो मेरी भ्रकुटि के संकेतमात्र से पैदा होता है और पलक झपकते ही समाप्त हो जाता है।’ फिर अर्जुन ने आगे कहा–’क्या वृन्दावन के बिना, क्या व्रजांगनाओं के बिना रह सकते हो?’ श्रीकृष्ण भावविह्वल हो गए और बोले–’नहीं! यह में कल्पना भी नहीं कर सकता । रहने की तो बात ही अलग है।’ स्वयं भगवान जिनकी बड़ाई करते हों, उन ब्रज की गोपियों की महिमा का कोई क्या वर्णन करेगा! हरे कृष्ण हरे कृष्ण ll मेरो प्यारो कन्हैया ll

Saturday 22 April 2017

कैसे बचें बुराई से...

मार्गदर्शक चिंतन-

बुरा करना ही गलत नहीं है अपितु बुरा सुनना भी गलत है। अतः बुरा करना घातक है और बुरा सुनना पातक (पाप) है। प्रयास करो दोनों से बचने का।
विचारों का प्रदूषण वो प्रदूषण है जिसे मिटाना विज्ञान के लिए भी संभव नही है। इसका कारण हमारी वो आदतें हैं जिन्हें किसी की बुराई सुनने में रस आने लगता है। बुराई को सुनना, बुराई को चुनना जैसा ही है।
जो हम रोज सुनते हैं, देखते हैं , वही हम भी होने लग जाते हैं। अतः उन लोगों से अवश्य ही सावधान रहने की जरुरत है जिन्हें दूसरों की बुराई करने का शौक चढ़ गया हो।
जैसा करोगे संग- बैसा चढ़ेगा रंग।

तजौ रे मन हरि विमुखन को संग।
जिनके संग कुमति मति उपजे,परत भजन में भंग।

Thursday 20 April 2017

अच्छे परिणाम के लिए कैसे करें वस्तुओं का प्रयोग..

मार्गदर्शक चिंतन-

वस्तुयें बुरी नहीं होती, उनका उपयोग बुरा होता है। विवेकवान पुरुष जिस वस्तु का उपयोग अच्छे कार्य के लिए करते हैं वहीँ विवेकहीन पुरुष उसी वस्तु का उपयोग बुरे कार्य के लिए करते हैं।
इस दुनिया में वुद्धि के तीन स्तर पर आदमी जीवन जीता है। उसी के अनुसार कर्म करता है। माचिस की एक तीली से एक विवेकवान जहाँ मन्दिर में दीप जलाकर पूजा करता है, वहीँ अँधेरे में दीया जलाकर लोगों को गिरने से भी बचाता है। 
एक सामान्य वुद्धि वाला मनुष्य धूम्रपान के लिए उसका उपयोग करता है। एक कुवुद्धि किसी का घर जलाने के लिए माचिस जलाता है।
माचिस की तीली का कोई दोष नहीं है। दोष हमारी समझ, हमारी वुद्धि का है। अतः कोई भी वस्तु उपयोगी- अनुपयोगी नहीं है, हम अपनी समझ द्वारा उसे ऐसा बना देते हैं।

Wednesday 19 April 2017

क्या है अच्छे-बुरे की परिभाषा..

मार्गदर्शक चिंतन-

आज के समय में एक अच्छे या बुरे की परिभाषा उसके कार्यों से नहीं अपितु निजी विचारों के आधार पर होती है। अलग-अलग विचारों के आधार पर कुछ लोग जिसे अच्छा कहने में लगे हैं, उसी को कुछ लोग बुरा भी कह रहे हैं।
एक झूठे आदमी के लिए हम तब अच्छे हैं जब हम उसकी हाँ में हाँ मिलाकर उसका साथ दें और उसी के लिए तब हम बड़े बुरे बन जाते हैं जब हम झूठ में उसका साथ देना बन्द कर देते हैं।
हम एक गलत काम करने वाले आदमी की नजरों में तब तक बुरे हैं जब तक कि हम गलत कार्यों में उसका साथ नहीं दे देते। हम जिस दिन से उसका साथ देना शुरू कर देंगे उसी दिन से उसकी नजरों में हमारी परिभाषा एक अच्छे आदमी की हो जाएगी।
अत: आपकी अच्छाई भी कई लोगों को रास नहीं आयेगी और बुराई का तो कहना ही क्या ? इसलिए जब आप "क्या कहेंगे लोग" पर ध्यान ही नहीं देंगे तो फिर "क्यों कहेंगे लोग ? आपका काम है सही रास्ते पर चलना, बेहिचक, बेपरवाह।

Tuesday 18 April 2017

जानिए क्या है एक श्रेष्ठ और सच्चे मित्र का गुण..

मार्गदर्शक चिंतन-

जो बुराई में आपका साथ दे वो आपका मित्र नहीं हो सकता। किसी का साथ देना ही मित्रता का गुण नहीं है अपितु किसी को गलत कार्य करने से रोकना यह एक श्रेष्ठ मित्र का गुण है।
सही काम में किसी का साथ दो ना दो यह अलग बात है मगर किसी के बुरे कार्यों में साथ देना यह अवश्य गलत बात है। अगर आपके मित्र आपको गलत कार्यों से रोकते हैं तो समझ लेना आप दुनियाँ के खुशनसीब लोगों में से एक हैं।
बुरे समय में अवश्य मित्र का साथ दो, बुरे कार्यों में कदापि नहीं। कष्ट में अवश्य मित्र का साथ दो कष्ट पहुँचाने में कदापि नहीं। दुःख के क्षणों में अवश्य मित्र का साथ दो, किसी को दुखी करने के लिए कदापि नहीं।
मित्र का अर्थ है कि जो आपके लिए भले ही रुचिकर ना हो मगर हितकर अवश्य हो। जिसे आपका वित्त प्यारा न हो, हित प्यारा हो समझ लेना वो आपका सच्चा मित्र है।

Monday 17 April 2017

किस प्रतिस्पर्धा से मिलती है खुशी..

मार्गदर्शक चिंतन-

आज का युग प्रतिस्पर्धा का है। अगर आपके अन्दर प्रतिस्पर्धा की सामर्थ्य नहीं तो समझ लेना निश्चित ही आप पिछड़ने वाले हैं। आपके जीवन में भी प्रतिस्पर्धा अवश्य हो मगर सिर्फ उस काम की जोकि आप से सम्पन्न हो सकें। 
देखा-देखी की प्रतिस्पर्धा आपके किसी काम की नहीं। देखा-देखी की प्रतिस्पर्धा आपको तनाव, अशांति, असंतुलित और एक अव्यवस्थित जीवन के अलावा कुछ और नहीं दे सकती।
इस दुनिया में ज्यादातर लोग एक नये काम की शुरुआत तब करते हैं जब वो किसी को उस काम को करते देखते हैं। यह बिन सोची समझी प्रतिस्पर्धा उनको ख़ुशी की मंजिल तक कभी नहीं पहुँचने देती है। 
बिन सोचे समझे किसी भीड़ का हिस्सा होना मूर्खता नहीं तो और क्या है ? इसलिए प्रतिस्पर्धा रखो मगर सिर्फ उन क्षेत्रों में जिनमें आप बिना तनाव के एक लम्बी दौड़ दौड़कर अपने उद्देश्य तक पहुँचने की सामर्थ्य रखते हों।

Sunday 16 April 2017

जानिए स्वभाव में मधुरता से क्या होता है लाभ..

मार्गदर्शक चिंतन-

जहाँ पर स्वभाव में मधुरता न हो वहाँ पर पद-प्रतिष्ठा कोई मायने नहीं रखती और जिसका स्वभाव मीठा है उसे मान-सम्मान के लिए किसी पद-प्रतिष्ठा पर निर्भर नहीं रहना पड़ता। स्वभाव ही किसी आदमी की व्यक्तिगत पहचान है। प्रभाव से आप किसी को नहीं जीत सकते, अच्छे स्वभाव से सबको जीता जा सकता है।
यहाँ पर अच्छे आदमी की संज्ञा सिर्फ उसे दी जाती है, जिसका स्वभाव अच्छा हो। बड़ों से सम्मान के साथ और छोटों से प्रेम पूर्वक बात करना यह श्रेष्ठ स्वभाव के दो प्रमुख गुण हैं। अपने स्वभाव को इतना कोमल बनाओ कि किसी भी आदमी को आपसे बात करने में संकोच न हो।
कठोर व्यवहार जीवन के प्रगति पथ पर एक बाधा है। छोटी-छोटी बातों को लेकर दूसरों पर कटाक्ष करते रहना यह भी अच्छी बात नहीं है। आज का आदमी अपने हाव-भाव की बड़ी परवाह करता है मगर अपने स्वभाव की नहीं।
अत: अपने स्वभाव को अच्छा रखो ताकि आप सबके प्रिय बन सकें। चेहरा कितना भी सुन्दर क्यों ना हो स्वभाव ही प्रभाव डालता है।

Saturday 15 April 2017

शुभ कार्य करने में देरी क्यों न करें..

मार्गदर्शक चिंतन-

शुभ कार्यों के लिए भी समय का इंतजार करना यह अच्छी बात नहीं। शुभस्य शीघ्रं का आदेश हमारे शास्त्रों ने हमें दिया है कोई जरूरी नहीं आपके विचार जितने शुद्ध आज हैं वह कल भी रहेंगे। समय की तो छोड़ो विचार भी सदैव आपका साथ नहीं देते हैं। 
इसलिए शुभ के लिए विलम्ब नहीं अपितु शुभ को अविलम्ब करना चाहिए। शुभ कार्य का अर्थ मात्र वे कर्म नहीं जिनसे आपको लाभ हो अपितु वे कर्म हैं जिनसे आपका लोक-परलोक सुधर जाता है और आप पुन्य के भागी बनते है। आपके माध्यम से किसी का भला होता है। 
चाहने मात्र से शुभ कार्यों का अवसर नहीं मिला करता मगर अवसर मिलने पर उन्हें चाहा अवश्य जा सकता है। अवसर मिले तो शुभ को शीघ्र करो।