मार्गदर्शक चिंतन-
आज का मनुष्य समझदार कम और स्वार्थी ज्यादा हो गया इसलिए इसके कर्म भी अब समझदारी भरे नहीं अपितु स्वार्थ भरे ज्यादा होने लगे। शुभ कर्म तो आज का आदमी कर रहा है मगर इसका उद्देश्य बदल गया है। यह अब मंदिर अर्चना करने कम और याचना करने ज्यादा जाने लगा है।
समझदारी की बातें करने वाला यह आदमी अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए कहाँ तक जा सकता है, कुछ कहा नहीं जा सकता। निम्नता का कोई ऐसा गर्त नहीं जहाँ आज का आदमी अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए न पहुँचा हो।
स्वसुख के लिए किए जाने वाला प्रत्येक श्रेष्ठ कर्म भी स्वार्थ व परहित की दृष्टि से संपन्न प्रत्येक सामान्य कर्म भी परमार्थ है। स्वार्थ क्षणिक सुख है और परमार्थ शाश्वत आनंद। अत: स्वार्थ में नहीं परमार्थ में जीना सीखो।
No comments:
Post a Comment