मार्गदर्शक चिंतन-
जिस प्रकार वृक्ष जितना बड़ा होगा उसके बीज से अंकुरित होने की यात्रा भी उतनी ही लंबी होगी। ठीक इसी प्रकार जीवन के संकल्प जितने श्रेष्ठ होंगे उनको साकार रूप में आने में उतना ही समय लगेगा।
शुभ संकल्प रुपी बीज ऐसे ही फलित नहीं हो जाऐंगे इसके लिए इसे परिश्रम रुपी जल से सिंचन करना पड़ेगा और संकल्प रुपी खाद डालनी पड़ेगी। कुसंग रुपी खर पतवार से इसकी रक्षा करनी पड़ेगी और झंझावट रुपी घोर निराशा से इसे बचाना भी पड़ेगा।
इतना सब कुछ तो आपको करना ही पड़ेगा उसके बाद आपके सामने जो कुछ होगा वह मात्र एक बीज नहीं अपितु एक विशाल वृक्ष होगा जिसकी शीतल छाया तले लोग विश्राम व मधुर फलों से तृप्ति पा रहे होंगे। तब आपको मिल रहा होगा एक परम धन्यता का आभास और जीवन की सार्थकता का आनंद।
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