मार्गदर्शक चिंतन-
कर्म यदि भौतिक सुख साधनों की प्राप्ति के लिए किया जाता है तो वह रोग कहलाता है। और वही कर्म यदि ईश्वर प्राप्ति के लिए किया जाता है तो वह योग बन जाता है।
योग का अर्थ कर्म विशेष तो नहीं हाँ लक्ष्य विशेष जरूर है। कर्म क्या किया यह महत्वपूर्ण नहीं अपितु क्यों किया यह महत्वपूर्ण है।
भागवत जी में गोपियों का रोना भी योग बन गया तो महाभारत में अर्जुन का लड़ना व रामायण में शबरी का भगवान को झूठे बेरों का भोग लगाना ही योग बन गया। लक्ष्य भोग है तो प्रत्येक कर्म रोग है और लक्ष्य अगर ईश्वर है तो फिर प्रत्येक कर्म योग है।
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