Monday 11 September 2017

कहां मिलेगा सर्वोच्च, सर्वोत्त्म आनंद..

मार्गदर्शक चिंतन-

आनन्द साधन से नहीं साधना से प्राप्त होता है। आंनद भीतर का विषय है, तृप्ति आत्मा का विषय है। मन को तो कितना भी मिल जाए , यह अपूर्णता का बार - बार अनुभव कराता रहेगा। जो अपने भीतर तृप्त हो गया उसे बाहर के अभाव कभी परेशान नहीं करते। 
केवल मानव जन्म मिल जाना ही पर्याप्त नहीं है अपितु हमें जीवन जीने की कला भी आना जरुरी है। पशु- पक्षी तो बिलकुल भी संग्रह नहीं करते फिर भी भी उन्हें जीवनोपयोगी सब कुछ प्राप्त होता है।
जीवन तो बड़ा आनंदमय है लेकिन हम अपनी इच्छाओं के कारण, वासनाओं के कारण इसे कष्ट प्रद और क्लेशमय बनाते हैं। प्रारब्ध में जितना लिखा है और जब मिलना लिखा है, उतना ही मिलेगा और उसी समय पर मिलेगा। कर्म जरूर करते रहें पर चिन्तित कदापि ना हों। जीवन के लिए जो जरुरी है उतना प्रकृति कारण से नहीं, करुणा से अपने आप दे देती है।

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