नारी से नारायणी की यात्रा का पर्व ही नवरात्र है। यह पर्व नारी के जीवन के उच्चतम स्तर को रेखांकित करता है। दुनिया में कुछ लोग भले ही नारी को भोग की वस्तु या उसे अपने से कमतर आंकते हों। मगर एक नारी चाहे तो कौन सा पद प्राप्त नहीं कर सकती ? माँ दुर्गा के चरित्र को देखो।
माँ का जन्म दिव्य है इसलिए इतने देवताओं को होते हुए वो पूज्या नहीं हुईं अपितु उनके कर्म दिव्य हैं इसलिए वो पूज्या हुईं। परहित और परोपकार की भावना से जो कर्म करता है, देर से ही सही समाज उसको पूजता अवश्य है।
जगत की तो छोड़ो जगदीश प्राप्ति की भी जब गोपियों ने ठान ली और कृष्ण प्राप्ति के लिए माँ भगवती की शरण में गईं तो गोविन्द को भी प्राप्त कर लिया। माँ के कात्यायनी स्वरूप की गोपियों ने आराधना की। नवरात्र के 6वे दिन आज माँ कात्यायनी की ही पूजा की जाती है।
माँ का जन्म दिव्य है इसलिए इतने देवताओं को होते हुए वो पूज्या नहीं हुईं अपितु उनके कर्म दिव्य हैं इसलिए वो पूज्या हुईं। परहित और परोपकार की भावना से जो कर्म करता है, देर से ही सही समाज उसको पूजता अवश्य है।
जगत की तो छोड़ो जगदीश प्राप्ति की भी जब गोपियों ने ठान ली और कृष्ण प्राप्ति के लिए माँ भगवती की शरण में गईं तो गोविन्द को भी प्राप्त कर लिया। माँ के कात्यायनी स्वरूप की गोपियों ने आराधना की। नवरात्र के 6वे दिन आज माँ कात्यायनी की ही पूजा की जाती है।
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