नाम संकीर्तन की महिमा..
सबसे श्रेष्ट साधन
है ध्यान और ध्यान का आधार है
नाम-जप । नाम- जप
चलता फ़िरता परमात्मा है ।
ध्यान तो दिन में दो घण्टे ही
करना होता है, शेष
समय में नाम जप ही सुलभ व श्रेष्ठ
साधन है । इसमें भी अखण्ड नाम
जप की महिमा तो अतुलनीय है ।
नाम – जप ईश्वरीय शक्ति का
आहार है । जैसे हम अतिथि को
प्रसन्न करने के लिए स्वादिष्ट
पक्वान परोसते हैं, वैसे
ही ईश्वर को, हमारी
शक्तिस्वरूपा गुरुपरम्परा
को रिझाने के लिए एकाग्रचित्त
से, पूरे श्रद्धाभाव
से, लय- तालपूर्वक
किया गया नाम-जप
बहुत श्रेष्ठ आध्यात्मिक
भोजन है । जहां- जहां
साधकों द्वारा अखण्ड नाम –
जप होता है, ईश्वर
व श्री सद्गुरुदेव का परिभ्रमण
वहां अवश्यमेव होता है ।
यही
नाम-
जप
जब एक लय व ताल में हो तो धुन
कहलाता है । मधुर धुन सुनने
– करने के लिए तो बड़े बड़े योगी
भी लालायित रहते हैं । जहां
ऐसी मर्मस्पर्शी धुन हो वहां
वे अपनी तपस्या को भी कुछ समय
स्थगित कर धुन में झूमने लगते
हैं,
धुन
को आत्मसात करते रहते हैं ।
ऐसी धुन जब हमारे कानों द्वारा
भीतर प्रविष्ट होती है तो
हमारा मन मयूर नाचने लगता है,
आनंद
की फ़ुहार से हम सराबोर हो जाते
हैं । जब हम नामधुन करते हैं
तो प्रथम हमारी वाणी पवित्र
होती है,
इसके
बाद अंतर्मन का शुद्धीकरण
होता है जिससे हम सकारात्मक
ऊर्जा के धनी बनते चले जाते
है ।
नामधुन
एक अलौकिक आनंद की जननी है।
इसमें डूबने के लिए आवश्यक
है कि जपकर्ता अपने आपको उसमें
विलीन कर दे । हर चिन्ता व हर
विचार को विराम दे दे। हर प्रकार
की बातों से मुक्त हो जाए,
यहां
तक कि स्वयं के बारे में भी
चिंतन करना छोड़ दें । अपने
आसपास,
आगे
पीछे कौन है?
क्या
कर रहा है?
यह
भी ध्यान में न आए । आसपास के
वातावरण से मुक्त होते ही
अनुभव होने लगेगा कि हम परमात्मा
की शरण में हैं और उसी के लिए
गा रहे हैं । हमारी वाणी को उस
तक पहुंचाना ही उपादेयता है
। हम अपने लिए नहीं,
दुनिया
के लिए नहीं ,
बस
अपने परमात्मा के लिए ही गा
रहे हैं । हम अपनी वाणी और किसी
को नहीं शिवस्वरूप,
वासुदेवस्वरूप
श्री सद्गुरुदेव को ही सुना
रहे हैं ।
सच
तो यह है कि जब ऐसी तल्लीनता
और भाव आ जाएगा तब किसी भी क्षण
खुली आंखों से उनके दर्शन हो
जायेंगे । वही क्षण परमात्मा
की अनुभूति करवाएगा। आप में
एक विलक्षण दिव्यता का उदय
होगा । वह दिव्यता आपके जीवन
को आलोकित कर देगी । जीवन की
सार्थकता सिद्ध हो जायेगी,
परम्परा
का प्रयोजन सिद्ध हो जाएगा,
सद्गुरु
की मेहर बरसने लगेंगी । आप एक
अनूठे अहोभाव से परिपूरित हो
जायेंगे । अब तक का सुना और
सीखा सैद्धांतिक अध्यात्म
प्रत्यक्ष घटित होने लगेगा।
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