Sunday 22 January 2017

जानिए कैसे होंगे प्रभु के साक्षात दर्शन...

नाम संकीर्तन की महिमा..

सबसे श्रेष्ट साधन है ध्यान और ध्यान का आधार है नाम-जप । नाम- जप चलता फ़िरता परमात्मा है । ध्यान तो दिन में दो घण्टे ही करना होता है, शेष समय में नाम जप ही सुलभ व श्रेष्ठ साधन है । इसमें भी अखण्ड नाम जप की महिमा तो अतुलनीय है । नाम – जप ईश्वरीय शक्ति का आहार है । जैसे हम अतिथि को प्रसन्न करने के लिए स्वादिष्ट पक्वान परोसते हैं, वैसे ही ईश्वर को, हमारी शक्तिस्वरूपा गुरुपरम्परा को रिझाने के लिए एकाग्रचित्त से, पूरे श्रद्धाभाव से, लय- तालपूर्वक किया गया नाम-जप बहुत श्रेष्ठ आध्यात्मिक भोजन है । जहां- जहां साधकों द्वारा अखण्ड नाम – जप होता है, ईश्वर व श्री सद्गुरुदेव का परिभ्रमण वहां अवश्यमेव होता है ।
यही नाम- जप जब एक लय व ताल में हो तो धुन कहलाता है । मधुर धुन सुनने – करने के लिए तो बड़े बड़े योगी भी लालायित रहते हैं । जहां ऐसी मर्मस्पर्शी धुन हो वहां वे अपनी तपस्या को भी कुछ समय स्थगित कर धुन में झूमने लगते हैं, धुन को आत्मसात करते रहते हैं । ऐसी धुन जब हमारे कानों द्वारा भीतर प्रविष्ट होती है तो हमारा मन मयूर नाचने लगता है, आनंद की फ़ुहार से हम सराबोर हो जाते हैं । जब हम नामधुन करते हैं तो प्रथम हमारी वाणी पवित्र होती है, इसके बाद अंतर्मन का शुद्धीकरण होता है जिससे हम सकारात्मक ऊर्जा के धनी बनते चले जाते है ।
नामधुन एक अलौकिक आनंद की जननी है। इसमें डूबने के लिए आवश्यक है कि जपकर्ता अपने आपको उसमें विलीन कर दे । हर चिन्ता व हर विचार को विराम दे दे। हर प्रकार की बातों से मुक्त हो जाए, यहां तक कि स्वयं के बारे में भी चिंतन करना छोड़ दें । अपने आसपास, आगे पीछे कौन है? क्या कर रहा है? यह भी ध्यान में न आए । आसपास के वातावरण से मुक्त होते ही अनुभव होने लगेगा कि हम परमात्मा की शरण में हैं और उसी के लिए गा रहे हैं । हमारी वाणी को उस तक पहुंचाना ही उपादेयता है । हम अपने लिए नहीं, दुनिया के लिए नहीं , बस अपने परमात्मा के लिए ही गा रहे हैं । हम अपनी वाणी और किसी को नहीं शिवस्वरूप, वासुदेवस्वरूप श्री सद्गुरुदेव को ही सुना रहे हैं ।
सच तो यह है कि जब ऐसी तल्लीनता और भाव आ जाएगा तब किसी भी क्षण खुली आंखों से उनके दर्शन हो जायेंगे । वही क्षण परमात्मा की अनुभूति करवाएगा। आप में एक विलक्षण दिव्यता का उदय होगा । वह दिव्यता आपके जीवन को आलोकित कर देगी । जीवन की सार्थकता सिद्ध हो जायेगी, परम्परा का प्रयोजन सिद्ध हो जाएगा, सद्गुरु की मेहर बरसने लगेंगी । आप एक अनूठे अहोभाव से परिपूरित हो जायेंगे । अब तक का सुना और सीखा सैद्धांतिक अध्यात्म प्रत्यक्ष घटित होने लगेगा।



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