मार्गदर्शक चिंतन..
ज्ञानी होना अच्छी बात है मगर प्रेमी होना उससे भी श्रेष्ठ। आप सम्पूर्ण जगत का ज्ञान रखते हैं यह उतना मूल्यवान नहीं जितना आप सम्पूर्ण जगत को प्रेम करते हैं। राम चरित मानस में आया है कि,
"सोह
ना राम प्रेम बिनु ग्यानू" ज्ञानी
होने पर यदि आपको प्रभु चरणों
में प्रेम नहीं है तो वह ज्ञान
शोभा हीन है। ज्ञानी के लिए
जगत में कोई अपना नहीं है प्रेमी
के लिए पूरा जगत ही उसका है।
ज्ञानी संसार से मुक्त होना
चाहता है मगर प्रेमी सारे
संसार को कृष्णमय मानकर उसकी
सेवा करना चाहता है।
ज्ञान में जीव परमात्मा को जानता है और प्रेम में परमात्मा जीव को जानते हैं। ज्ञान पुष्प है और प्रेम सुवास है। प्रेम में जियो, प्रेम ही साधना की पूर्णता है। प्रेम ही ज्ञान का शिखर है, योगी ना बन पाओ कोई बात नहीं मगर प्रेमी बन जाओ तो श्रीकृष्ण गोपियों की तरह एक दिन द्वार पर माखन मांगने आ जायेंगे।
ज्ञान में जीव परमात्मा को जानता है और प्रेम में परमात्मा जीव को जानते हैं। ज्ञान पुष्प है और प्रेम सुवास है। प्रेम में जियो, प्रेम ही साधना की पूर्णता है। प्रेम ही ज्ञान का शिखर है, योगी ना बन पाओ कोई बात नहीं मगर प्रेमी बन जाओ तो श्रीकृष्ण गोपियों की तरह एक दिन द्वार पर माखन मांगने आ जायेंगे।
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