➖➖➖➖➖➖➖ᄏदुर्गा सप्तशती स्वयं में ही एक सिद्ध तंत्रोक्त ग्रन्थ है जिसका प्रत्येक श्लोक स्वयं सिद्ध है।
ᄏबहुत से लोग रोजाना या नवरात्री में दुर्गा सप्तशति का पाठ अपनी ऊर्जा और अपनी उर्जित तरंगो को बढ़ने के लिए करते है।
ᄏमगर बहुत से उसे केवल एक किताब की तरह पढ़ लेते है मगर उसकी कभी सामान्य जानकारी भी जानना उचित नहीं समझते है।
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ᄏदुर्गा सप्तशती के बारे में स्वयं ब्रह्माजी इस पृथ्वी के समस्त पेड़ो की कलम और सातो महासागरों की स्याही भी बनाकर लिखे तो भी उसका वर्णन नहीं किया जा सकता
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दुर्गासप्तशती का लेखन मार्कंडेय पुराण से लेकर कीया गया है।
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"दुर्गा सप्तशती'' शक्ति उपासना का श्रेष्ठ ग्रंथ है |
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'दुर्गा सप्तशती'के सात सौ श्लोकों को तीन भागों
▶प्रथम चरित्र (महाकाली),
▶मध्यम चरित्र (महालक्ष्मी) तथा
▶उत्तर चरित्र (महा सरस्वती) में विभाजित किया गया है।
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प्रत्येक चरित्र में सात-सात देवियों का स्तोत्र में उल्लेख मिलता है
▶ᄏ प्रथम चरित्र में - काली, तारा, छिन्नमस्ता, सुमुखी, भुवनेश्वरी, बाला, कुब्जा,
▶ᄏद्वितीय चरित्र में - लक्ष्मी, ललिता, काली, दुर्गा, गायत्री, अरुन्धती, सरस्वती तथा
▶ᄏतृतीय चरित्र में- ब्राह्मी, माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, नारसिंही तथा चामुंडा (शिवा) इस प्रकार कुल 21 देवियों के महात्म्य व प्रयोग इन तीन चरित्रों में दिए गये हैं।
ᄏ नन्दा, शाकम्भरी, भीमा ये तीन सप्तशती पाठ की महाशक्तियां
ᄏतथा दुर्गा, रक्तदन्तिका व भ्रामरी को सप्तशती स्तोत्र का बीज कहा गया है।
तंत्र में शक्ति के तीन रूप प्रतिमा, यंत्र तथा बीजाक्षर माने गए हैं। शक्ति की साधना हेतु इन तीनों रूपों का पद्धति अनुसार समन्वय आवश्यक माना जाता है।
ᄂᄌप्तशती के सात सौ श्लोकों को तेरह अध्यायों में बांटा गया है
➖प्रथम चरित्र में केवल पहला अध्याय,
➖मध्यम चरित्र में दूसरा, तीसरा व चौथा तथा
➖शेष सभी अध्याय
उत्तर चरित्र में रखे गये हैं।
ᄂᆰ्प्रथम चरित्र में महाकाली का बीजाक्षर रूप ऊँ 'एं है।
?¢ᄂᆴमध्यम चरित्र (महालक्ष्मी) का बीजाक्षर रूप 'हृी' तथा
?¢ᄂᄂती
?゚マᄏ?¢ᄂワ्ञान गंगा?゚ルマ?゚ヤヤ
▶अन्य तांत्रिक साधनाओं में 'ऐं' मंत्र सरस्वती का,
'हृीं' महालक्ष्मी का तथा
'क्लीं' महाकाली बीज है।
तीनों बीजाक्षर ऐं ह्रीं क्लीं किसी भी तंत्र साधना हेतु आवश्यक तथा आधार माने गए है
?゚ルマ?'दुर्गा सप्तशती' के सात सौ श्लोकों का प्रयोग विवरण इस प्रकार से है।
?゚ブज्ञान गंगा?゚ルマ?゚ヤヤ
?¢ᄂᆰ्रयोगाणां तु नवति मारणे मोहनेऽत्र तु।
उच्चाटे सतम्भने वापि प्रयोगाणां शतद्वयम्॥
?¢ᄂᆴध्यमेऽश चरित्रे स्यातृतीयेऽथ चरित्र के।
विद्धेषवश्ययोश्चात्र प्रयोगरिकृते मताः॥
?¢ᄂマवं सप्तशत चात्र प्रयोगाः संप्त- कीर्तिताः॥
?¢ᄂᄂत्मात्सप्तशतीत्मेव प्रोकं व्यासेन धीमता॥
?¬ヨᄊअर्थात इस सप्तशती में मारण के नब्बे, मोहन के नब्बे, उच्चाटन के दो सौ, स्तंभन के दो सौ तथा वशीकरण और विद्वेषण के साठ प्रयोग दिए गये हैं।
इस प्रकार यह कुल 700 श्लोक 700 प्रयोगों के समान माने गये हैं।
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