मार्गदर्शक चिंतन-
परिवार से टूटने का अर्थ है अपनी संस्कृति व सभ्यता से भी टूट जाना। पत्ता तभी तक सलामत है जब तक वह पेड़ से जुड़ा है। पत्थर तभी तक सलामत है जब तक वह पहाड़ से जुड़ा है और व्यक्ति भी तभी तक जीवंत और ऊर्जावान है जब तक वह परिवार से जुड़ा है।
परिवार से अलग रहकर आपको स्वतंत्रता तो मिल जाएगी मगर आपके संस्कार भी चले जाएँगे। संस्कारों की पाठशाला का नाम ही तो परिवार है। संस्कार किसी पाठशाला में नहीं सिखाये जाते हैं। विज्ञान भी आपको आविष्कार सिखाता है, संस्कार नहीं, वो तो परिवार में अपने से बड़ों के आशीर्वाद से मिला करते हैं।
गुरु गोविन्द सिंह जी वीर शिवाजी व विवेकानंद जी का निर्माण किसी पाठशाला में नहीं अपितु अपने से बड़ों की चरणरज के तिलक करने से हुआ था।
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