Tuesday 7 March 2017

क्या है सच्ची साधना ( पूजा )..

मार्गदर्शक चिंतन-

 यद्यपि साधना का लक्ष्य चित्त की अशांति को दूर कर परम शांति की प्राप्ति करना ही है मगर किसी दूसरे के कष्टों को देखकर अशांत हो जाना यह भी साधना की परम स्थिति है।
 
साधना किसी कर्म विशेष का नाम नहीं, मन के भाव परिवर्तन का नाम है। वह प्रत्येक कर्म साधना ही है जो मै और मेरे से ऊपर उठकर दूसरों के भले के लिए किया जाता है। स्व-सुख की भावना का पर-सुख में परिवर्तन ही साधना है।
 
एक भोजनालय का स्वामी जीवन भर दूसरों को भोजन खिलाता है तथा एक कपड़े का व्यापारी जीवन भर दूसरों को पहनने को कपडे देता है। लेकिन इनके यह कर्म साधना नहीं अपितु साधारण कर्म हैं। क्योंकि इन कर्मों का उद्देश्य दूसरों को नहीं अपितु स्वयं सुख प्राप्त करना ही है। 
 
जब दूसरों को सुखी करने के उद्देश्य से इन कर्मों को किया जाता है तो तब यही कर्म सामान्य कर्म ना होकर सतकर्म हो जाते हैं।

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