राधा
जी की अष्ट सखियाँ
,
,राधारानी भगवान कृष्ण की प्राणप्रिया है. ब्रज मंडल की अधिष्ठाती देवी है. उनकी कृपा के बिना कोई ब्रज में प्रवेश नहीं कर सकता है. जिस पर राधा रानी की कृपा कर दें वो ना चाहते हुए भी ब्रज में पहुँच जाता है.
,
,राधारानी भगवान कृष्ण की प्राणप्रिया है. ब्रज मंडल की अधिष्ठाती देवी है. उनकी कृपा के बिना कोई ब्रज में प्रवेश नहीं कर सकता है. जिस पर राधा रानी की कृपा कर दें वो ना चाहते हुए भी ब्रज में पहुँच जाता है.
सारी
गोपियाँ उनकी कायरूपा व्यूहा
है.उनकी
कांति से सब प्रकट हुई है.
उनकी
सखियों मे कई यूथ है.
गोपियों
के "किंकरी",
"मंजरी",
"सहचरी",
ये
अलग-अलग
यूथ है.
सब
की आराध्य श्री राधारानी जी
है.
राधा
जी के यूथ में मुख्यआठ सखियाँ
कही गई,
जो
राधा रानी जी की अष्टसखिया
कहलाती है.
राधा
जी की अष्ट सखियों के नाम
हैं.
1.ललिता जी, 2.विशाखा जी, 3.चित्रा जी, 4.चंपकलता, 5.सुदेवी, 6.तुंगविद्या, 7.इंदुलेखा, 8.रंगदेवी,
1.ललिता जी, 2.विशाखा जी, 3.चित्रा जी, 4.चंपकलता, 5.सुदेवी, 6.तुंगविद्या, 7.इंदुलेखा, 8.रंगदेवी,
इनकी
एक एक सेविका भी है,
जो
मंजरी कहलाती हैं.
मंजरियों
के नाम हैं :-
1.रूप
मंजरी,
2.जीव
मंजरी,
3.अनंग
मंजरी,
4.रस
मज़ारी,
5.विलास
मंजरी,
6.राग
मंजरी,
7.लीला
मंजरी,
8.कस्तूरी
मंजरी
राधा
की सखियाँ दो प्रकार की हैं-
सम
स्नेहा और असम स्नेहा।
जिनका राधा और कृष्ण के प्रति समान स्नेह है, वे सम स्नेहा है, जैसे ललिता-विशाखा।
जिनका राधा और कृष्ण के प्रति समान स्नेह है, वे सम स्नेहा है, जैसे ललिता-विशाखा।
असम
स्नेहा दो प्रकार की हैं-
कृष्ण
स्नेहाधिका,
जिनका
राधा की अपेक्षा कृष्ण के
प्रति स्नेह अधिक है,
जैसे
धनिष्ठादि और
राधा स्नेहाधिका, जिनका कृष्ण की अपेक्षा राधा के प्रति स्नेह अधिक है।
राधा स्नेहाधिका 'मञ्जरी' कहलाती हैं। यह रूप मञ्जरी आदि।*
राधा स्नेहाधिका, जिनका कृष्ण की अपेक्षा राधा के प्रति स्नेह अधिक है।
राधा स्नेहाधिका 'मञ्जरी' कहलाती हैं। यह रूप मञ्जरी आदि।*
मञ्जरियों
का राधा स्नेहाधिक्यमय स्थायी
भाव 'भावोल्लासारति'
कहलाता
है। कृष्ण के प्रति उनकी रति
उसका संचारी भाव है। मञ्जरियों
की विशेषता है उनकी विलक्षण
भावशुद्धि। सखियाँ राधा के
अतिशय आग्रह से कभी-कभी
श्रीकृष्ण का अंग-संग
स्वीकार भी कर लेती हैं। पर
मञ्जरियाँ राधाकृष्ण-सेवानन्दरस-माधुर्य
आस्वादन में इतना तल्लीन रहती
हैं कि वे राधाकृष्ण के अनुरोध
पर भी कभी स्वप्न में भी
कृष्ण-अंग-संग
की बाँछा नहीं रखतीं।
पुराण
ब्रह्मवैवर्त्त में अष्ट
सखियों के नाम किंचित परिवर्तनों
से इस प्रकार मिलते हैं.
चन्द्रावलि,
विशाखा,
ललिता,
श्यामा,
पद्मा,
शैव्या
भद्रिका,
तारा,
विचित्रा,
गोपाली,
धनिष्ठा
और पालिकादि।
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