Wednesday 7 June 2017

जानिए जीवन में कैसे सुखी रहा जा सकता है..

मार्गदर्शक चिंतन-

भोगी के लिए वन में भी भय है और योगी के लिए घर में भी वन जैसा आनंद है। जिसका मन विकार मुक्त हो चुका है वो हर जगह , हर घड़ी आनन्द अनुभव करता है। जैसे पतंग उड़ाने वाला आकाश में बहुत ऊपर तक पतंग ले जाता है पर डोरी अपने हाथ में रखता है 
थोड़ी सी भी उलझने पर पतंग को वापिस अपने पास खींच लेता है। भगवान् श्री कृष्ण अर्जुन को गीता में कहते हैं कि वैसे ही जो पुरुष विवेक रुपी डोर से इन्द्रियों रुपी पतंग को वश में करके अनासक्त होकर कर्म करता है, वह कभी भी नहीं उलझता। 
आसक्ति भाव से किये जाने वाले कर्म ही दुःख का कारण बनते हैं। दुःख वाहर से प्रगट नहीं होता , वह भीतर से प्रगट होता है। समस्या बाहर नहीं भीतर है। समाधान भीतर ही मिलेगा, जब भी मिलेगा। अपने मन को समझाकर ही सुखी हुआ जा सकता है।

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