मार्गदर्शक चिंतन-
चाणक्य ने बड़ी महत्वपूर्ण बात कही है जब तक तुम दौड़ने का साहस ना जुटाओगे तुम्हारे लिए जीतना बड़ा मुश्किल होगा। साहसी और प्रयोगधर्मी व्यक्ति को ही जीवन में बहुत कुछ मिला करता है।
संसार में बहुत लोग असफल हो जाने के डर से प्रतिस्पर्धा में नही पड़ते। यह कहना कि प्रभु ने जो दिया है मै उसमें सन्तुष्ट हूँ। यह संतोष नहीं कमजोरी है, भय है, नकारात्मक संतोष है। अपने आप को विकसित करने से रोक देने जैसा है, फूल को खिलने से रोक देने जैसा है।
मेहनत और कर्म करने में पूरे असंतोषी रहो। प्रयास की सात्विक सीमाओं तक पहुँचो। कर्म के बाद जितना मिले, जैसा मिले, जब मिले, जहाँ मिले उसमें संतोष रखो और प्रभु पर भरोसा रखो। कर्म जरूर करते रहो, जीवन में नए रास्ते घर बैठे नहीं मिलेंगे वो कर्म करते-करते नजर आयेंगे। भगवान् को कर्मशील भक्त ही प्रिय हैं।
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