Saturday 10 June 2017

कैसी हो भक्ति...

मार्गदर्शक चिंतन-

भक्ति भय से नहीं श्रद्धा और प्रेम से होती है। भय से की गई भक्ति में जीवन कभी भी पूर्णता को प्राप्त नहीं होता है। भय से प्रगट भक्ति में भाव तो कभी पैदा हो ही नहीं सकता। बिना भाव के भक्ति का पुष्प नहीं खिलता। 
श्रद्धा प्रगट होना अति आवश्यक है। श्रद्धावान को ही ज्ञान प्राप्त होता है। बिना श्रद्धा के आदमी धर्मभीरु बन जाता है। उसे हर समय यही डर लगा रहता है कि ये देवता, फलां देवता नाराज हो गया तो क्या होगा ? प्रारब्ध में जितना लिखा है वह तो तुम्हें प्राप्त होकर ही रहेगा। उसे कोई ना रोक पायेगा। 
भगवान तो सबके ऊपर कृपा करते हैं, कोई उनकी पूजा ना करे तो वो नाराज होंगे, इस अज्ञान का त्याग कर देना। उसने तुम्हें जन्म दिया है, जीवन दिया है, सब कुछ दिया है। क्या ये सब पर्याप्त नहीं है प्रभु से प्रेम करने के लिए ? भय के कारण नहीं भाव के कारण मंदिर जाओगे तो खिले-खिले लौटोगे

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